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अनुगूँज अभी तक जारी है…

अभिनव रचना
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एक विवेकानन्द हुये थे, अनुगूँज अभी तक जारी है ।
हर युवा विवेकानन्द बने, बस इसकी अब तैयारी है ॥
तिमिर तेज से किया तिरोहित, भरा नया आलोक,
ड्योढी पर कर दीप प्रज्जवलित, हरा मातु का शोक,
जन-जन, कण-कण आज देश का बस उसका आभारी है।
हर युवा विवेकानन्द बने, बस इसकी अब तैयारी है ॥
जब घोर अन्धकार में थी डूबी, रुदन कर रहीं भारतमाता ।
जब आतताईयों के अत्याचारों अन्ध-प्रशान्त खड़ा थर्राता ।
तब दूर क्षितिज से सारथि अरुण बन रविकिरण उतारी है ।
हर युवा विवेकानन्द बने, बस इसकी अब तैयारी है ॥
आलस्य और नैराश्य के गहन घन ने गगन घेरा था ।
उलूकों, श्वानों, काकों का जब हर डाल पर बसेरा था।
वेदान्त का तब शंखनाद कर, निकाली प्रभातफेरी है ।
हर युवा विवेकानन्द बने, बस इसकी अब तैयारी है ॥
विवर्ण मुख, विवृत वसना, अधर-कपोल रागहीन,
घण्टा-घड़ियाल-वंशी-वीणा-शंख-मृदंग हुये स्वरविहीन
नरेन्द्र ने विवेक-तार से माँ भारती की वीणा सँवारी है ।
हर युवा विवेकानन्द बने, बस इसकी अब तैयारी है ॥

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