Menu
blogid : 26533 postid : 4

सोशल मीडिया पर प्रवचन -प्रलय

sengarnama
sengarnama
  • 3 Posts
  • 1 Comment

बात चौंकने की नहीं ,रंच समय देने व विचार करने की है। वर्षा ऋतु अपनी चढान पर है।पूरे भारत में जल या पानी -प्रलय से हाहाकार मचा हुआ है।समूचे पहाड़ी ,समुद्र तटीय और मैदानी राज्यों में सामान्य जन जीवन अस्त -व्यस्त है। सैकड़ों जनधन,हजारों पशुधन और अरबों की संपत्ति बीते बर्षों की भाँति इस पानी प्रलय को भेंट चढ़ रही हैं।इस प्रलय प्रहार से भारत ही नहीं चीन ,जापान इत्यादि देश भयावह रूप से प्रकोपित हैं।परन्तु यदि थोड़े दिन पहले ही बीते ग्रीष्म की बात करें तो सर्वत्र जल संकट ,गिरते भू जलस्तर और जल संचयन की चर्चा थी।दोनों स्थितियों का मिलान करें तो यही परिणाम मिलता है कि जलवायु और ऋतुएँ हमारे अनुकूल नहीं संचलित हो रही हैं या कि मानव जलवायु या ऋतुओं के विपरीत आचरण कर रहा है जिससे हम प्राकृतिक आपदाओं से आए दिन दो चार हो रहे हैं।आजकल लोग जल प्रलय जैसा ही एक और  प्रलय, जिसे प्रवचन प्रलय कह सकते हैं , व्हाट्सप्प ,फेसबुक ,मेसेंजर ,ट्वीटर, टीवी इत्यादि पर, झेल रहे हैं। प्रत्यक्ष तथा परोक्ष मित्रों की मुफ्त वाली शुभेच्छाओं एवँ अन्यार्थी संदेशों ने नाकों दम कर रक्खा है।जो इस प्रवचन प्रलय से मानसिक तौर पर सकुशल बचा रहे ,सच मानिए उसपर ईश्वर की असीम अनुकम्पा है।

साधारणतया लोग अपने मित्रों एवँ सम्बन्धियों को आत्मीयता या शुभेच्छा जताने अथवा  तत्काल सूचना पहुँच हेतु कविता, प्रवचन ,उद्धरण ,नीति वाक्य ,बधाई,श्रव्य और दृश्य सन्देश  इन नए द्रुतगामी माध्यमों से भेजते और प्राप्त करते हैं और आशा भी की जाती है कि विज्ञान प्रदत्त इन माध्यमों से समाज ,संस्कृति ,सभ्यता  और जन जीवन की आर्थिक एवँ चारित्रिक जीवन स्तर की बेहतरी होगी। परन्तु व्यवहार में ऐसा नहीं हो रहा है। मनुष्य दोहरा चरित्र जीने की ओर अग्रसर है ;एक तरफ वह सभ्य दिखने के सारे उपक्रम कर रहा है तो दूसरी तरफ उस सभ्यता के तले उसकी असभ्यता हिलोरें मार रही हैं जिससे हमारी स्वच्छ परम्पराओं के टीले एक एक कर ढहते जा रहे हैं। उदहारण के लिए व्हाट्सप्प जैसे सन्देश वाहक मंच पर गौर किया जा सकता है।इस मंच पर रात दिन प्रेषित हो रहे अधिकांश सन्देश मिथ्याचरण की पराकाष्ठा हैं।भ्रामक ,घृणास्पद ,द्वेषकारी ,स्वार्थप्रेरित या अंधविश्वास को बढ़ाने वाले सन्देश; शुभेच्छा के आवरण में इतर उद्देश्यों के साथ; व्हाट्सप्प पर इधर से उधर भेजे जा रहे हैं जो तत्काल वायरल हो कर समाज में दिग्भ्रम की स्थिति उत्पन्न कर रहे हैं। अब तो बात साईबर क्राइम की चल रही है क्योंकि ए माध्यम अपराध के कारण भी बन रहे हैं। तात्पर्यतः मित्रों ,सम्बन्धियों और किसी न किसी के माध्यम से परचित लोगों द्वारा आपसी संपर्क हेतु बनाए गए व्हाट्सएप्प – संजाल में आज अधिकांशतःपर उपदेश कुशल बहुतेरे वाले प्रवचन,धर्मभीरू बनाने वाले उपदेश,अधकचरी शुभेक्षाएँ, अनावश्यक सलाह और  भ्रमात्मक सूचनाएँ नदियों की बाढ़ की भाँति आपसी संवाद ,सूचना तथा कुशल क्षेम को रौंद रही हैं।

अब आमतौर पर लोगों द्वारा बनाए गए ग्रुप या समूह में कोई भी व्यक्ति श्रृंखलात्मक पहुँच द्वारा समूह के बाहर से ,कहीं से, किसी भी प्रकार का प्रवचन समूह अंदर तक अग्रसारित कर देता है और ए सन्देश बहुत ही ब्यापक स्तर पर जन -जन तक पहुँच जाते हैं। यहाँ तक कि एक ही सन्देश एक व्यक्ति को कई कई बार कई लोगों द्वारा अग्रसारित हो कर मिलता है और हर क्लिक पर वही बात देख या पढ़ कर अजीब सी खीझ होती है। हद तो तब हो जाती  है जब धार्मिक प्रताड़न भरे संदेशों की बाढ़ आती है यथा यदि यह संदेश अपने इतने मित्रों को अग्रसारित करें गे तो इनकी क़ृपा होगी अन्यथा यह अनिष्ट हो जाय गा।इसी प्रकार घोर संसारी एवँ गृहस्थ लोग भी प्रवचन भेजने में बड़े बड़े योगी ,ऋषियों ,मुनियों ,दार्शनिकों व सरस्वती साधकों को मात दे रहे हैं। जिन्हे स्वयँ सुधरने की आवश्यकता है वे सोशल मीडिया पर प्रवचन की झड़ी लगा दूसरे को सुधार रहे हैं। नेताओं व अन्य गुरु घण्टालों के लोग उन्हें चमकाने व आगे बढ़ाने के लिए रात दिन अपने प्रवचन धकेल रहे हैं। रही सही कमी व्यवसाय व विज्ञापन वाले पूरा कर दे रहे हैं। अब स्मार्ट फोन ,टीवी और इन्टरनेट पर सकून तलाशने वाला ब्यक्ति इस प्रवचन वाले महा प्रलय से बचे तो बचे कैसे ?

जब लोग इस प्रवचन प्रलय को झेलने को विवश ही हैं तो प्रवचनों के मन्तव्य,पूर्ण सत्य ,अर्ध सत्य और मिथ्य को तर्क की कसौटी पर भी कसना अपरिहार्य हो जाता है क्योंकि दुःख के प्रति समझ का बढ़ना ही दुःख का निवारण है।जहाँ तक मन्तब्य की बात है तो अधिकांश का जुड़ाव स्वार्थ या बाह्याडम्बर ,कुछ का परार्थ एवं नगण्य का परमार्थ(सत्य ) हेतु होता है।अतः अपने सीमित स्वार्थ या आवश्यकता से अधिक हमें सोशल मीडिया पर सक्रिय रहना ही नहीं चाहिए।पुनः आशा तो नहीं है कि प्रवचन प्रेषित करने वाले समझेंगे परन्तु क्षीर नीर भेद तो प्रवाचक बनने से पहले जान लेना चाहिए ही।वह यह है कि हम आप जो भी प्रवचनों की हेरा फेरी करते हैं वे अर्ध सत्य और मिथ्या के बीच के हमारे विचार हैं जो प्रथम दृष्ट्या प्रेषकों को प्रबुद्ध होने एवँ प्राप्तकर्ता को अनुगृहीत होने वाले छल हैं परन्तु तर्क पर वे वहम से ज्यादा कुछ नहीं होते हैं।अतः सोशल मीडिया पर सक्रिय लोगों से अपेक्षा है कि वे न ऐसे  भ्रम पालें ,न ऐसे भ्रम भेजें और न ऐसे भ्रम पाएँ।इसी प्रकार सोशल मीडिया पर चहक चहक कर बलात्कार व बलात्कारियों की चर्चा न हो ( यह अच्छा नहीं लगता है।) बल्कि यह बताया जाय कि कितने बलात्कारियों को फाँसी हुई ,कितने को आजीवन कारावास और कितनी जल्दी और कैसे। पुलिस और न्यायपालिका की सफलता की कहानी बताई जाय  । बलात्कार पर अपने आप लगाम लग जाएगी।जैसे ही इन माध्यमों का सार्थक उपयोग बढे गा ,प्रवचन प्रलय तिरोहित हो जाय गा और सोशल मीडिया हमारे लिए अमूल्य वरदान सिद्ध होने लगेगी। किसी के उस पल की प्रसन्नता की कल्पना करें जब फेस बुक या व्हाट्सएप्प उसे उसके किसी पुराने बिछड़े मित्र या संबंधी से संपर्क करा देता है।

मंगलवीणा

वाराणसी ,दिनाँक :5 अगस्त 2018

अन्ततः

बात उन्नीस फरवरी वर्ष २०११ के सांध्य बेला की है जब मैं जीप द्वारा गोरखपुर से वाराणसी आ रहा था। सड़क थोड़ी खाली थी ,सो स्वभाववश चालक ने रफ़्तार भी बढ़ा दिया था। एक व एक हेड लाईट की रोशनी आगे चल रही ट्रक के पश्च भाग पर पड़ी। उस पर लिखे एक उद्धरण ने हमें चौका दिया। काफी देर तक ट्रक के पीछे चलते हुए मैं उस उद्धरण को बार बार पढ़ता रहा। उस दिन की वह घटना मेरे स्मृतिपटल पर अंकित हो गई ।तब ऐसा झटका लगा था कि मेरी दिन भर की थकान ही मिट गई थी। आज भी कभी कभी सोचता हूँ कि यह सत्य है या असत्य या कि अर्ध सत्य।आप भी सोचिये कि क्या ,”विश्वास केवल वहम है और सच्चाई मात्र झूठ। “? क्या कभी ऐसा नहीं लगता की जिस बात की स्थापना विजेता करे वह सत्य और जिसकी स्थापना पराजित करे वह झूठ वरन यह सच कैसे हो सकता है कि नेकी कर जूता खा।अधिक क्या,इन ट्रक वालों की महिमा भी अनन्त है। मंगलवीणा

 

 

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh