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चुनावी आचार संहिता

Jeevan nama
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भारत वर्ष में सत्रहवीं लोकसभा गठन हेतु आम चुनाव का डंका बज चुका है। अब इससे उत्पन्न तुमुल ध्वनियाँ कानों में धमकने लगी हैं ,पल पल रंग बदलती दृश्यावली आँखों में घूमने लगी हैं और सुरसा सी बढ़ती चुनावी गर्मी दिनचर्या को झेलाने लगी हैं।चुनाव की घोषणा के साथ चुनाव आयोग द्वारा आदर्श चुनाव संहिता भी लागू कर दी गई है।करें भी क्यों न ;यही एक चाबुक है जिससे आयोग सम्पूर्ण चुनावी गतिविधियाँ नियंत्रित करता है।वरन सांसदी के अधिकाँश भ्रष्ट प्रत्याशी हर संभव कदाचार के अपकीर्तिमान को स्थापित करने से न चूकें। आश्चर्य होता है कि एक आदर्श शिष्टाचारी परम्परा वाले देश में हम इतने आचार विहीन हो चुके हैं कि चुनाव के खातिर हम पर आचार रूपी अंकुश लगता है और बताया जाता है कि हम क्या करें और क्या न करें ।जहाँ तक नेताओं , प्रत्याशियों और समर्थकों की बात है ,वे चुनाव संपन्न होने तक आचार संहिता के साथ तूँ डार -डार मैं पात -पात का जम कर खेल खेलें गे परन्तु स्वभाव से आचारशील नागरिक इस संहिता से बुरी तरह प्रताड़ित होते हैं।निश्चय ही लोकतंत्र में चुनाव एक पर्व है जिसे हर नागरिक को बढ़चढ़ कर मनाना चाहिए और हर मतदाता को अपना मत अवश्य डालना चाहिए परन्तु यह भी अपेक्षित है कि चुनाव के नाम पर नागरिकों का प्रताड़न न हो। अन्यथा प्रश्न तो उठे गा कि प्रताडन और पर्व साथ साथ कैसे।

यथार्थ की जमीन पर उतरें तो सबको मालूम है कि ध्वनि प्रदूषण स्वाथ्य के लिए बहुत ही हानिकारक है फिर भी चुनाव में ध्वनि विस्तारक यंत्रों की दहाड़ से हम सभी को त्रस्त होना पड़ता है। घर,गली ,सड़क ,चौराहा ,पार्क ,मैदान कहीं भी जाइये ;इन भोंपुओं पर अपने प्रत्याशियों के लिए चीखने चिल्लाने वाले समर्थकों से बच नहीं सकते।टीवी पर समाचार चैनलों को खोलिए तो वही कर्कश और कुतर्की परिचर्चा ;एंकर का प्रश्न कुछ तो प्रवक्ताओं का जवाब कुछ और। सब बेसुरी ढफली बजाते मिलते हैं। ऐसा वातावरण शायद यह मान कर बनता है कि अब लोग ऊँचा सुनने लगे हैं।रात्रि में यह प्रदूषण नियंत्रित कर लिया जाता है ;यह भी कहना कठिन है।घर से किसी गंतव्य के लिए निकलिए तो यह संभव ही नहीं कि संहिता की छाया में चेकिंग के नाम पर पुलिस अवरोध और रौब से यहाँ- वहाँ दो चार न होना पड़े। किसी कार्यालय से कोई काम करना तो कोई सोच भी नहीं सकता क्योंकि सबसे एक ही जवाब मिलता है कि चुनाव बाद मिलिए। सबसे अधिक साँसत तो उन भद्र लोगों की होती है जिनके पास सुरक्षा के लिए लइसेंसी असलहे होते हैं।पुलिस वाले इसे थाने या शस्त्र दुकानों पर जमा करने का मौखिक दबाव बनाने लगते हैं। समझ से परे है कि चुनाव के समय शस्त्र पास न रहने पर लाइसेंसधारिओं की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित हो जाती है। ऐसा प्रतीत होने लगता है कि पुलिस को अवैध असलहे धारी असामाजिक तत्वों पर तो सिकंजा कसना ही है परन्तु भद्र लोगों को भी चुनाव के समय चैन से नहीं रहने देना है।

जब संहिता पालन की बात राजनीतिक दलों ,चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों एवँ नेताओं पर हो तो आयोग उनसे जूझता दिखता है। चुनाव में प्रत्याशियों के लिए खर्च निर्धारित करना और निगरानी कराना एक बात है परन्तु उसे सुनिश्चित कराना और बात है।सामान्यतया माना जाता है कि पैसे जैसे संसाधन से प्रत्याशी अपनी विचारधारा और जनसेवा के संकल्प को अपने मतदाता तक पहुँचाते हैं ;अतः इस खर्च का हिसाब वे आसानी से आयोग को दे सकते हैं। वस्तुस्थिति इससे विल्कुल इतर है। आज के चुनाव इस अच्छे आचरण वाले परदे के पीछे लड़े जाते हैं जहाँ काले धन का ताण्डव होता है ;मतदाताओं तक पैसे ,प्रलोभन और दावतें पहुँचा कर मत खरीदने का खड्यंत्र होता है। यही नहीं बड़े बड़े असामाजिक तत्व विभिन्न दलों के शीर्ष नेताओं को करोड़ों रूपए का काला धन टिकट केलिए भेंट करते हैं। अब तो मिडिया वाले स्टिंग ऑपरेशन कर ऐसे काले धन्धों का खेल सबको प्रत्यक्ष दिखाने भी लगे हैं।आम आदमी बहुत चिंतित है कि ऐसी बेशर्म ,भ्रष्ट और आचरणहीन राजनीति देश को कहाँ पहुँचाने को उद्यत है।वर्तमान की बहती बयार में भारतीय लोकतंत्र के सामने सबसे ज्वलंत प्रश्न है कि आयोग एक हाथ आचार संहिता लिए और दूजे हाथ प्रशासनिक शक्तियाँ लिए क्या क्या करता है या क्या कर सकता है।

चाहे कितनी भी विस्तारित परिचर्चा की जाय सत्य यही है कि आदर्श आचार किसी संहिता से नहीं संस्कारों से उपजता और पलता है। साथ ही यदि चोर सिपाही से शक्तिशाली होगा तो कानून की बेवसी बढ़ती है। आचार संहिता और आयोग की शक्तिओं के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है।आगे इससे भी बड़ा सत्य यह है कि हमारा भारत बदल रहा है। शिक्षा के साथ इलेट्रॉनिक , प्रिंट और सोशल मीडिया ने हमारे समाज में जागरूकता की एक अभूतपूर्व क्रान्ति ला दी है और इसी जन जागरण से चुनावी भ्रष्टाचार का संहार होने भी लगा है।विशेष रूप से नई पीढ़ी के रंगमंच पर उदित होने से राजनितिक भ्रष्टाचार के दिन और तेजी से लदने लगे हैं।सब मिलाकर बदलती हवाएँ शुभ संकेत दे रही हैं कि भविष्य में आचारशील चुनाव आयोग ,आचारशील नेता, आचारशील मतदाता और आचारशील नागरिक अपने भारत को इसके स्वर्णिम युग की ओर अग्रसर करें गे।

परन्तु वर्तमान चुनावी परिदृश्य में हर परेशानी से ऊपर उठ कर भारत के प्रत्येक मतदाता का प्रथम दायित्व है कि वह मतदान अवश्य करे और स्वविवेक से सबसे बेहतर प्रत्याशी को मत दे। नदी की धारा को मोड़ने का यही बेहतर तरीका है और इसी प्रकार मतदान द्वारा देश को सुरक्षित हाथों में सौंपा जा सकता है।नए भारत की इसी जनाकांछा की परिणीति का ज्वलन्त उदाहरण आज की भाजपानीत केंद्र सरकार है। वर्तमान चुनाव में भी जनाकांछा उसी भाजपा के मोदी जी पर टिकी हुई है।और यह संभव हुआ था- पिछले चुनाव में मतदान की आँधी से। इस चुनाव में भी ऐसे ही प्रबलतर आँधी की परिस्थितियाँ बन रही हैं। अस्तु हमारी प्रतिबद्धता और शुभकामना हो कि भारत का चुनाव आयोग तथा उसकी घोषित आचार संहिता 2019 चल रहे लोक सभा चुनाव को अच्छे से संपन्न करने में सफल हों और नागरिकों को कोई असुविधा भी न हो।——————————————————————————————————————- मंगलवीणा

वाराणसी ,चैत्र कृष्ण अमावस्या सँ. 2076

दिनाँक 05 अप्रैल 2019

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अंततः

आइए एक नेता जी से मिलें जो पूर्व में माननीय मंत्री जी रह चुके हैं। हर सीधी उलटी कोशिश के बावजूद किसी जिताऊ पार्टी से सांसदी का टिकट नहीं मिल पा रहा है सो जल बिन मछली की भाँति छटपटा रहे हैं और अपनी व्यथा कुछ यूँ व्यक्त कर रहे हैं।

भाई ! मोहि कुर्सी विसरत नाहिं।

मन डोलत ही इच्छा पूरी ,जादू कुर्सी माहिं।

ढके कुकर्म सभी खादी में ,महामहिम कहलाहिं। भाई ——

दिन जनता दरबार बैठना ,निशा मौज़ क्लब माहिं।

न्याय नियम को फेंक किनारे ,लूटम लूट मचाहिं। भाई ——

बन गाँधी के छद्मी वारिस ,मॉल मलाई खाहिं।

राजा रजवाड़ों से न्यारे , नेता भारत माहिं। भाई ——–

गर एक टिकट पुनः मत भारी ,शक्र देइ बरसाहिं।

वहि इन्द्रासन फिर मिल जाए,सुफल जनम होइ जाहिं। भाई ——

—————–अब उनकी ब्यथा सुन आम आदमी की क्या दशा होगी ;यह विचारणीय है। इति।

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————— पुनः सभी सुधी पाठकों एवँ शुभेच्छुओं को चैत्र की नवरात्रि एवँ पावन राम नवमी की शुभ कामनायें। नया विक्रम सँवत वर्ष आप के लिए स्वास्थ्यप्रद ,यशप्रद एवं सुखप्रद हो ;यह हमारी कामना है।————————————————- –मंगलवीणा

वाराणसी ;चैत्र कृष्ण अमावस्या सँ. 2076 ———————— mangal-veena ,blogspot .com

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