मुझे याद आता है एक बार एक बड़े राजनेता ने टी वी एकर को बाइट देते समय टिप्पणी की थी कि मुझे समझ नहीं आता कि लोग चुनाव हारने के प्रष्न पर ये क्यों कहते हैं कि अगर हार गए तो विपक्ष में बैठेंगे। अरे भाई! हारने के बाद तो विपक्ष में ही बैठना पड़ेगा , सर पर तो बैठ नहीं सकते।
इसी बात को सुनकर एक बात दिमाग में कौंधी कि कुछ फिल्मी गीतों में कुछ बेतुके अटपटे बोलों का आखिर क्या अर्थ हो सकता है ,जैसे – (1) डाकिया डाक लाया ( राजेष खन्ना अभिनीत ) अब डाकिया तो डाक ही लाएगा इसमें कहने वाली बात क्या है , भला वो सब्जी भाजी या मिठाई तो लाने से रहा। और सुनिए , एक दूसरे गीत के बोल – (2) मैं तवायफ हूँ मुजरा करुँगी। (हेमामालिनी अभिनीत) ज़ाहिर है , मोहतरमा भजन तो आप गाएँगी नहीं ; फिर अगर आप न भी बताएँ तो क्या फर्क पड़ता है।
इसी तरह राजकपूर एक गीत में अपना परिचय देते नज़र आते हैं कि – (3) मैं चोर हूँ , काम है चोरी दुनिया में हूँ बदनाम (राजकपूर और नरगिस अभिनीत , दम भर जो उधर मुँह फेरे) सबको पता है चोरी पकड़े जाने पर बदनामी तो होगी ही। इस मामले में कुछ महिला गीतों में उनका दृष्टिकोण अलग है जैसे – (4) आई रे खिलौने वाली आई , नैनों में कजरा डाल के, आई नैनों में कजरा डाल के होय , अब कोई पूछ सकता है कि खिलौने यदि बिकने वाले होंगे तो बिना कजरा डाले भी बिक सकते हैं लेकिन फिल्मी गीतों का कजरा मोहब्बत वाला होता है इसलिए बात समझ में आती है। इसी कड़ी में कुछ महिलाएँ अपने पेषे का गुणगान बड़े गर्व से करती नज़र आती हैं , चुनांचे उन पर उंगली भी नहीं उठाई जा सकती जैसे – (5) चक्कू छुरियाँ तेज़ करालो , मैं तो रक्खूँ ऐसी धार कि चक्कू हो जाए तलवार , ये ज़माना है तेज़ी का ज़माना (जया भादुड़ी अभिनीत)। यही नहीं फिल्मों में तो नायिकाओं ने नारियल पानी और चाय भी गा गा कर पिलाई है , आपको याद दिला दूँ ये दो गीत – (6) ले लो रे ले लो बाबू पी लो नारियल पानी और (7) आहें न भर ठंडी ठंडी , खतरे की है घंटी घंटी , पी ले पी ले चाय पी ले , ज़रा मेरी चाय पी ले , गरम गरम चाय पी ले (बबीता अभिनीत)।
लेकिन ज़रा रूकिए , मैं तो अटपटे मिज़ाज़ वाले गीतों की बात कर रही थी न ! ज़रा सोचिए , हम मंदिर मस्जिद , चर्च गुरूद्वारे क्यों जाते हैं ? भई ये गाना तो कुछ और ही बयां कर रहा है-(8) मैं तुझसे मिलने आई , मंदिर जाने के बहाने (आषा पारेख अभिनीत) और – (9) तो फिर चल बैठे चर्च के पीछे (शबाना आजमी संजीव कुमार अभिनीत) अब इन्हें कोई समझाए कि मंदिर ही क्यों ? मेला देखने भी तो जा सकती हो और फिर चर्च के ही पीछे काहे छिप रहे हो भाई! भरी पूरी दुनिया में जगह कमती पड़ रही है का ?
अब एक और करिष्माई गीत का ज़िक्र मुझे ज़रूर करना पड़ेगा और वो है बैठ जा , बैठ गई। खड़ी हो जा , खड़ी हो गई , घूम जा , घूम गई;झूम जा , झूम गई गई गई गई गई (देवानंद हेमामालिनी अभिनीत , फिल्म अमीर गरीब)।अब अगर ऐसे बोल गीत बन गए तो “तू चल मैं आई” में क्या खराबी है। मुहावरे तो गीतों में अच्छे फबते हैं जैसे नाच न जाने आँगन टेढ़ा , टे ए ए ए ए ढ़ा (पड़ोसन-महमूद) और जान हथेली पर ले आए रे (साधना-शम्मी कपूर अभिनीत , फिल्म राजकुमार)
सिलसिले को आगे बढ़ाती हूँ। किसी ज़माने में किसी खातून ने फरमाया था कि-“ पंख होते तो उड़ आती रे। ” तो भई सीधी सी बात है कि पंख वाला प्राणी तो उड़ेगा ही , भला वो क्यों ज़मीन पर रेंगने या घिसटने लगा। और सुनिए!“ हम प्रेमी , प्रेम करना जानें। क्यों भई ? जब स्वयंभू प्रेमी होने का दावा ताल ठोककर कर रहे हो तो फिर प्रेम करना कर्म , कर्त्तव्य और ड्यूटी है। नफरत थोड़े ना कर सकते हो। येल्लो! उधर एक भाईसाहब के हृदय के उद्गार हर शादी में आप सुनते होंगे कि ”आज मेरे यार की शादी है , लगता है जैसे सारे संसार की शादी है।” ऐसा क्यों लगता है भई! इस अनोखे कुंआरे पूत की शादी बहुत बड़ा मसला था क्या ? कि निपटते ही लगा कि जैसे पूरी दुनिया ब्याह गई या फिर इतना धमाल मचा कि एक शादी में सारे संसार की शादियों का लुत्फ आ गया। ऐसा ही कुछ हुआ न! फिर ठीक है।
ये चर्चा अभी अधूरी है अगर मैंने कुछ और पसंदीदा नग़मों का ज़िक्र ना किया जो इस कसौटी पर एकदम खरे उतरते हैं। उनमें से एक है- (10) आएगी ज़रूर चिट्ठी मेरे नाम की , तब देखना (हेमामालिनी अभिनीत) अरे भाई! किस नामाकूल पोस्टमेन की मज़ाल है जो किसी और के नाम की चिट्ठी आप को थमा के चला जाए और वो भी तब जबकि ”तू चोर मैं सिपाही” वाले गाने में आप पहले से ही कह रही हैं कि ” नाम पता तो पूछ ले , कोई और न हो वो छैला ”। अब रही बात कि “तब देखना” तो भईया इस धमकी को तो सुनकर डर लगने लगता है कि पता नहीं क्या रहस्योद्घाटन होने वाला है। ऐसे गानों के जरिए धमकी और आदेष देने वालों की कोई कमी नहीं। इन साहिबान का हुक्म सुनिए-(11) बंबई से आया मेरा दोस्त , दोस्त को सलाम करो , रात को खाओ पियो , दिन को आराम करो। अब जबकि वो दोस्त आपका है तो हम क्यों सलाम करें और आखिर हम क्यूँ दिन में सोकर और रात में जागकर अपनी बायलॉजिकल क्लॉक खराब करें आपके बम्बईया दोस्त के लिये। एँ वईं!
बच्चों और विद्यार्थियों को भी बरगलाने के लिए खूब रचनाएँ रची गईं हैं। मैं याद दिलाती हूँ आपको-(12) ए बी सी डी छोड़ो , नैनों से नैना जोड़ो , (13) मेरा पढ़ने में नहीं लागे दिल , क्यूँ ? और (14) सकूल में क्या करोगे हो राम , दिल की किताब पढ़ लो और बस एक और-(15) किताबें बहुत सी पढ़ी होंगी तुमने मगर कोई चेहरा भी तुमने पढ़ा है ?
हे भगवान ! बहुत हो गया। भगवान बचाए इन मिसगाइड करने वालों से और उटपटाँग लिखने वालों से। चलते चलते कानों में ये और गूँज रहा है कि ” तेरे पास आ के मेरा वक़्त गुज़र जाता है “ अब ये आलेख पढ़के कोई ऐसी दाद दे या पीठ ठोके तो बात अलग है वरना गाना सुनके तो ये ही लगता है कि हम कोई विदूषक हैं या भांड हैं , जो वक़्त गुज़ारने के लिए फ्री टाइम मुहैया कराते हैं ? हैं भई! पता नहीं ! लेकिन इतना ज़रूर पता है कि जो हम हैं वही करेंगे। बऽऽऽऽस्ऽऽस !
ं
जो तुम हो ,वो ही करोगे ना ?
मुझे याद आता है एक बार एक बड़े राजनेता ने टी वी एकर को बाइट देते समय टिप्पणी की थी कि मुझे समझ नहीं आता कि लोग चुनाव हारने के प्रष्न पर ये क्यों कहते हैं कि अगर हार गए तो विपक्ष में बैठेंगे। अरे भाई! हारने के बाद तो विपक्ष में ही बैठना पड़ेगा , सर पर तो बैठ नहीं सकते।
इसी बात को सुनकर एक बात दिमाग में कौंधी कि कुछ फिल्मी गीतों में कुछ बेतुके अटपटे बोलों का आखिर क्या अर्थ हो सकता है ,जैसे – (1) डाकिया डाक लाया ( राजेष खन्ना अभिनीत ) अब डाकिया तो डाक ही लाएगा इसमें कहने वाली बात क्या है , भला वो सब्जी भाजी या मिठाई तो लाने से रहा। और सुनिए , एक दूसरे गीत के बोल – (2) मैं तवायफ हूँ मुजरा करुँगी। (हेमामालिनी अभिनीत) ज़ाहिर है , मोहतरमा भजन तो आप गाएँगी नहीं ; फिर अगर आप न भी बताएँ तो क्या फर्क पड़ता है।
इसी तरह राजकपूर एक गीत में अपना परिचय देते नज़र आते हैं कि – (3) मैं चोर हूँ , काम है चोरी दुनिया में हूँ बदनाम (राजकपूर और नरगिस अभिनीत , दम भर जो उधर मुँह फेरे) सबको पता है चोरी पकड़े जाने पर बदनामी तो होगी ही। इस मामले में कुछ महिला गीतों में उनका दृष्टिकोण अलग है जैसे – (4) आई रे खिलौने वाली आई , नैनों में कजरा डाल के, आई नैनों में कजरा डाल के होय , अब कोई पूछ सकता है कि खिलौने यदि बिकने वाले होंगे तो बिना कजरा डाले भी बिक सकते हैं लेकिन फिल्मी गीतों का कजरा मोहब्बत वाला होता है इसलिए बात समझ में आती है। इसी कड़ी में कुछ महिलाएँ अपने पेषे का गुणगान बड़े गर्व से करती नज़र आती हैं , चुनांचे उन पर उंगली भी नहीं उठाई जा सकती जैसे – (5) चक्कू छुरियाँ तेज़ करालो , मैं तो रक्खूँ ऐसी धार कि चक्कू हो जाए तलवार , ये ज़माना है तेज़ी का ज़माना (जया भादुड़ी अभिनीत)। यही नहीं फिल्मों में तो नायिकाओं ने नारियल पानी और चाय भी गा गा कर पिलाई है , आपको याद दिला दूँ ये दो गीत – (6) ले लो रे ले लो बाबू पी लो नारियल पानी और (7) आहें न भर ठंडी ठंडी , खतरे की है घंटी घंटी , पी ले पी ले चाय पी ले , ज़रा मेरी चाय पी ले , गरम गरम चाय पी ले (बबीता अभिनीत)।
लेकिन ज़रा रूकिए , मैं तो अटपटे मिज़ाज़ वाले गीतों की बात कर रही थी न ! ज़रा सोचिए , हम मंदिर मस्जिद , चर्च गुरूद्वारे क्यों जाते हैं ? भई ये गाना तो कुछ और ही बयां कर रहा है-(8) मैं तुझसे मिलने आई , मंदिर जाने के बहाने (आषा पारेख अभिनीत) और – (9) तो फिर चल बैठे चर्च के पीछे (शबाना आजमी संजीव कुमार अभिनीत) अब इन्हें कोई समझाए कि मंदिर ही क्यों ? मेला देखने भी तो जा सकती हो और फिर चर्च के ही पीछे काहे छिप रहे हो भाई! भरी पूरी दुनिया में जगह कमती पड़ रही है का ?
अब एक और करिष्माई गीत का ज़िक्र मुझे ज़रूर करना पड़ेगा और वो है बैठ जा , बैठ गई। खड़ी हो जा , खड़ी हो गई , घूम जा , घूम गई;झूम जा , झूम गई गई गई गई गई (देवानंद हेमामालिनी अभिनीत , फिल्म अमीर गरीब)।अब अगर ऐसे बोल गीत बन गए तो “तू चल मैं आई” में क्या खराबी है। मुहावरे तो गीतों में अच्छे फबते हैं जैसे नाच न जाने आँगन टेढ़ा , टे ए ए ए ए ढ़ा (पड़ोसन-महमूद) और जान हथेली पर ले आए रे (साधना-शम्मी कपूर अभिनीत , फिल्म राजकुमार)
सिलसिले को आगे बढ़ाती हूँ। किसी ज़माने में किसी खातून ने फरमाया था कि-“ पंख होते तो उड़ आती रे। ” तो भई सीधी सी बात है कि पंख वाला प्राणी तो उड़ेगा ही , भला वो क्यों ज़मीन पर रेंगने या घिसटने लगा। और सुनिए!“ हम प्रेमी , प्रेम करना जानें। क्यों भई ? जब स्वयंभू प्रेमी होने का दावा ताल ठोककर कर रहे हो तो फिर प्रेम करना कर्म , कर्त्तव्य और ड्यूटी है। नफरत थोड़े ना कर सकते हो। येल्लो! उधर एक भाईसाहब के हृदय के उद्गार हर शादी में आप सुनते होंगे कि ”आज मेरे यार की शादी है , लगता है जैसे सारे संसार की शादी है।” ऐसा क्यों लगता है भई! इस अनोखे कुंआरे पूत की शादी बहुत बड़ा मसला था क्या ? कि निपटते ही लगा कि जैसे पूरी दुनिया ब्याह गई या फिर इतना धमाल मचा कि एक शादी में सारे संसार की शादियों का लुत्फ आ गया। ऐसा ही कुछ हुआ न! फिर ठीक है।
ये चर्चा अभी अधूरी है अगर मैंने कुछ और पसंदीदा नग़मों का ज़िक्र ना किया जो इस कसौटी पर एकदम खरे उतरते हैं। उनमें से एक है- (10) आएगी ज़रूर चिट्ठी मेरे नाम की , तब देखना (हेमामालिनी अभिनीत) अरे भाई! किस नामाकूल पोस्टमेन की मज़ाल है जो किसी और के नाम की चिट्ठी आप को थमा के चला जाए और वो भी तब जबकि ”तू चोर मैं सिपाही” वाले गाने में आप पहले से ही कह रही हैं कि ” नाम पता तो पूछ ले , कोई और न हो वो छैला ”। अब रही बात कि “तब देखना” तो भईया इस धमकी को तो सुनकर डर लगने लगता है कि पता नहीं क्या रहस्योद्घाटन होने वाला है। ऐसे गानों के जरिए धमकी और आदेष देने वालों की कोई कमी नहीं। इन साहिबान का हुक्म सुनिए-(11) बंबई से आया मेरा दोस्त , दोस्त को सलाम करो , रात को खाओ पियो , दिन को आराम करो। अब जबकि वो दोस्त आपका है तो हम क्यों सलाम करें और आखिर हम क्यूँ दिन में सोकर और रात में जागकर अपनी बायलॉजिकल क्लॉक खराब करें आपके बम्बईया दोस्त के लिये। एँ वईं!
बच्चों और विद्यार्थियों को भी बरगलाने के लिए खूब रचनाएँ रची गईं हैं। मैं याद दिलाती हूँ आपको-(12) ए बी सी डी छोड़ो , नैनों से नैना जोड़ो , (13) मेरा पढ़ने में नहीं लागे दिल , क्यूँ ? और (14) सकूल में क्या करोगे हो राम , दिल की किताब पढ़ लो और बस एक और-(15) किताबें बहुत सी पढ़ी होंगी तुमने मगर कोई चेहरा भी तुमने पढ़ा है ?
हे भगवान ! बहुत हो गया। भगवान बचाए इन मिसगाइड करने वालों से और उटपटाँग लिखने वालों से। चलते चलते कानों में ये और गूँज रहा है कि ” तेरे पास आ के मेरा वक़्त गुज़र जाता है “ अब ये आलेख पढ़के कोई ऐसी दाद दे या पीठ ठोके तो बात अलग है वरना गाना सुनके तो ये ही लगता है कि हम कोई विदूषक हैं या भांड हैं , जो वक़्त गुज़ारने के लिए फ्री टाइम मुहैया कराते हैं ? हैं भई! पता नहीं ! लेकिन इतना ज़रूर पता है कि जो हम हैं वही करेंगे। बऽऽऽऽस्ऽऽस !
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