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यारों मैं वाकई बेपैन हूँ

Jis Din Jo Socha...
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यारों मैं वाकई बेपैन हूँ
आपको शीर्षक ग़लत लग रहा है , आप सोच रहे हैं ये बेचैन तो सुना है लेकिन बेपैन क्या बला है ,चलिए बताए देती हूँ ये मेरा अपना गढ़ा शब्द है जिसका अस्तित्त्व किसी शब्दकोष ,किसी ऑक्सफॅर्ड डिक्षनरी की मान्यताप्राप्त शब्दावली में नहीं है इसमें बे उपसर्ग मैंने उर्दू से और पैन ( ) यानि कलम अंग्रेज़ी से लिया है क्योंकि बोलते समय कलम को पैन कहना पड़ता है अन्यथा ये अंग्रेज़ी के दर्द वाले पेन के अर्थ का संकेत देने लगता है।
हाँ तो मैं कह रही थी कि मैं इन दिनों एक बार फिर से बेपैन हूँ और यदा कदा नहीं बल्कि मैं अक्सर बेपैन होने से बेचैन होते रहती हूँ। कारण बड़ा अजीबोग़रीब और दिलचस्प तो है लेकिन जीवन भर से खीझ और झुंझलाहट देने वाला बना हुआ है वो है एक अदद पैन ,एक कलम ,एक लिखने का नन्हा सा औजार जो कभी ,कहीं समय पर नहीं मिलता। मैं इसकी व्यवस्था करते करते थक गई हूँ। घर में टेलीफोन के पास जहाँ इसकी सबसे ज्.यादा ज़रुरत होती है वहाँ से ये अनगिनत बार गायब हुआ है।
प्लम्बर , इलेक्ट्रीषियन , गैस एजेन्सी हॉकर , माली , कबाड़ी और दुनिया भर के काम के लोगों का नम्बर नोट करते समय इस पैन की लोकेषन ढूँढना किसी पुलिस ,सी आई डी ,रॉ या जाँच एजेन्सी की सहायता से भी संभव नहीं।

इसके लिये मैंने न जाने कितने फाउन्टेन ,बॉल ,यूज़ एण्ड थ्रो और हज़ार प्रकार के एक से एक पैन आजमा कर देखे ,पर्स से लेकर अलमारी ,रसोई ,ड्रॉअर ,लॉकर और यहाँ तक वॉष बेसिन और बाथरुम में लगी ट्रे और डाइनिंग टेबल के चम्मचस्टैण्ड तक में एक एक पेन खोंसा लेकिन हाय री तकदीर ! वक्त आने पर वही ढाक के तीन पात। इनमें से अधिकाष पेन या तो सूख गए और चले ही नहीं या वो चलताउ , टिकाउ ,बिकाउ और कमाउ श्रेणी के पैन किन्ही अन्य हाथों की शोभा बन पूर्ववत गायब हो गए।
मज़े की बात ये है कि आजीविका चलाने के लिए जो पेषा अपनाया वो षिक्षण है इसलिए उपहारों और पुरस्कारों में मिलने वाले पैनों की संख्या सदा बढ़ती रही क्योंकि सभी सोचते हैं कि मेरे लिए इससे माकूल गिफ्ट और क्या हो सकती है पर मुझे बेपैन करने वाले ऐसा नहीं सोचते।
वैसे आज मैं खुष हूँ क्योंकि अपने मन की व्यथा को व्यक्त करने के लिए इस समय मेरे हाथ में एक कलम है। उम्मीद है मैं कुछ समय तक इसे दुनिया की नज़रों से छिपा कर अपने कुछ और विचार काग़ज़ पर उतार सकूँगी अन्यथा फिर यही समझकर संतोष कर लूँगी कि ”पल दो पल का साथ हमारा पल दो पल के याराने हैं “।
इस जगह पर मिलने वाले (पैन) अगले ही पल फिर खो जाने हैं।

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