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मन में खूबसूरत रंगों को आत्मसात करने का पर्व : होली

मनदर्शन
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व्यक्तित्व विकार बनाता है समाज को अंधकारमयः 'मनो-अद्ध्यात्म्विद डॉ. आलोक मनदर्शन'
व्यक्तित्व विकार बनाता है समाज को अंधकारमयः 'मनो-अद्ध्यात्म्विद डॉ. आलोक मनदर्शन'

मन में खूबसूरत रंगों को आत्मसात करने का पर्व : होली

व्यक्तित्व विकार बनाता है समाज को अंधकारमयःमनोअद्ध्यात्म्विदडॉ. आलोकमनदर्शन

आत्मप्रकाशित मन ही सुन्दर मन है। रंगों का पर्व “होली” हमें अपने मन का आत्मनिरीक्षण करके अपने व्यक्तित्व विकारों व मानसिक विकृतियों को सक्रिय रूप से पहचानने के उद्देश्‍य से पूरी दुनिया में मनाया जाता है। रंग-पर्व अपने मन में मौजूद मानसिक व व्यक्तित्व विकारों को सक्रिय रूप से पहचानने का पर्व है, जिससे कि हमारा स्वस्थ्य व सुन्दर मानसिक पुनर्निमाण हो सके और आज विश्‍व-व्यापी महामारी का रूप ले रही मानसिक विकृतियों के फलस्वरूप अराजकता, हिंसा, आत्महत्या, अनैतिकता, संवेदनहीनता एवं आपराधिक प्रवित्तियों से कुरूप हो चुके तथा मानसिक बीमारियों से पीड़ित विश्‍व समाज स्वस्थ व खूबसूरत बन सके।

आज समूचे विश्व की दो-तिहाई आबादी किसी न किसी प्रकार के व्यक्तित्व-विकार या मानसिक-विकृति से ग्रसित हो चुकी है, जिसकी परिणति अल्प, मध्यम व गम्भीर मानसिक रोगों के रूप में हो रही है। स्वस्थ व सुन्दर मन के वैश्विक मिशन के प्रति समर्पित मनदर्शन मिशन द्वारा होली पर्व की पूर्व संध्या पर जारी निदानात्मक-शोध (Prognostic-Research) रिपोर्ट मे इस तथ्य को उजागर किया गया है कि व्यक्तित्व-विकारों के प्रति अर्न्तदृष्टि की कमी लोगों को तेजी से मनोरोगी बना रही है।

पिछले 3 वर्ष के दौरान किये गये इस षोध के पश्‍चगामी-अध्ययन (Retrospective-study) में मानसिक रोगियों में पहले से मौजूद व्यक्तित्व-विकार (Personality-Disorder) तथा वर्तमान में उसके मानसिक रोगी होने के बीच 95 प्रतिशत विश्वसनीयता स्तर (95% Confidence Level) पर प्रबल धनात्मक सह-सम्बन्ध (Strong Positive Co-relation) पाया गया। साथ ही अन्य उन लोगों पर, जो अभी मानसिक रोग की चपेट में नहीं आये हुए थे, पर हुए अग्रगामी-अध्ययन (Prospective-Study) में पाया गया कि उनमें कुछ न कुछ व्यक्तित्व विकार कम या ज्यादा रूप में मौजूद है और वे अपने व्यक्तित्व विकार के बारे में पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। इस शोध में हर उम्र, लिंग व सामाजिक स्तर के लोग शामिल हैं।

‘मनो-अद्ध्यात्म्विद डॉ. आलोक मनदर्शन’ ने इनकी व्यक्तित्व-विकार के प्रति अनभिज्ञता को अर्न्तदृष्टि शून्यता (Insight-Blindness) के रूप में परिभाषित किया है। इसके कारण लोग अपने बनाये तर्कों के आधार पर अपने व्यक्तित्व को सही ठहराने की कोशिश करते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि ऐसे लोगों का व्यक्तित्व-विकार बढ़ते-बढ़ते मानसिक बीमारी का रूप ले लेता है।

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