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स्किज़ोफ्रिनिया : कल्पनालोक में जीने का मनोरोग

मनदर्शन
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विलक्षण प्रतिभा भी हो सकती है स्किज़ोफ्रिनिया का शिकार
विलक्षण प्रतिभा भी हो सकती है स्किज़ोफ्रिनिया का शिकार

विश्वस्किज़ोफ्रिनियादिवस 24 मई : मनदर्शनरिपोर्ट

स्किज़ोफ्रिनिया : कल्पनालोकमेंजीनेकामनोरोग

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विश्वस्किज़ोफ्रिनियादिवस‘- 24 मई, पूरी दुनिया में इस गंभीर मनोरोग के प्रति जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से मनाया जाने लगा है | सिनेमा में रूचि रखने वाले लोगोको सन 2001 में बनी हालीवुड की फिल्म ब्यूटीफुलमाइंड याद होगी | ऑस्करअवार्ड जीतने वाली यह फिल्म नोबलपुरस्कारविजेताजाननैशनामकअर्थशास्त्रीकेजीवन पर आधारित है, जो स्किज़ोफ्रिनिया नामक मानसिक रोग के शिकार हो चुके है |

मनोशोधकडॉ. आलोकमनदर्शन ने बताया कि अपने समय कि कुछ नामचीन हस्तिया जिन्होंने विज्ञान,कला,साहित्य आदि में अदभुत प्रतिभा का लोहा मनवाया, उन्हें भीआगे इसी बीमारी का शिकार होना पड़ा | लेकिन इसका मतलब यह कत्तई नहीं है कि हर एक असाधारण व्यक्ति स्किज़ोफ्रिनिया से ही ग्रसित हो,बल्कि यह मनोरोग किसीभी आम या ख़ास को हो सकता है |

केसस्टडी, लक्षण :

स्किज़ोफ्रिनिया से ग्रसित व्यक्ति के मन में एक या अनेक झूठे विश्वास या भ्रान्ति इस गहरे तक बन जाती है कि अनेको सही तर्क दिए जाने पर भी वह अपने काल्पनिकविश्वासों को असत्य नहीं मानता है | उदहारण के लिए स्किज़ोफ्रिनिया से ग्रसित कोई महिला चिथड़ो से बने बण्डल को अपना बच्चा समझ सकती है और किसी काल्पनिकव्यक्ति को उसका पिता | इसी तरह कोई रोगी हमेसा अपनी मुट्ठियों को इस भ्रान्ति से बांधे रह सकता है कि मुट्ठी खोलते ही कुछ अनर्थ हो सकता है | ऐसे रोगी अपने दंपत्तिया प्रेमी की निष्ठां के प्रति भी शक या वहम बना सकता है | जिससे उसका दांपत्य या प्रेम जीवन छिन्न-भिन्न तो होता ही है, साथ ही इसकी परिणति हिंसक घटना के रूप मेंभी हो सकती है | ऐसे रोगी यह भी काल्पनिक विश्वास कर सकते है कि उनमे अलौकिक शक्ति आ गई है जिसे दूसरे लोग नहीं जानते |

मनोगतिकीयकारक :

‘स्किज़ोफ्रिनिया’ से ग्रसित रोगी अपने कल्पना लोक से इतना आत्मसात होने लगता है कि वह खुद से बाते करना,हँसना,क्रोधित होना,अजीबो-गरीब मुद्रा बनाना जैसीअसामान्य हरकते करने लगता है | उसके मन में तमाम प्रकार के शक व् वहम इस प्रकार घर कर लेते है कि वह अपने करीबियों व् परिजनों से भी खतरा महसूस करने लगताहै तथा उसे यह भी महसूस हो सकता है कि उसके दिमाग को लोग पढ़ ले रहे है और विभिन्न शक्तियों के माध्यम से उसके दिमाग को नष्ट करने की साजिश हो रही है | फिरवह अपने बचाव हेतु कर्मकाण्ड, तंत्र-मंत्र आदि शुरू कर सकता है तथा जहर दे कर मार दिए जाने के शक में खाना पीना तक छोड़ सकता है एवं असुरक्षा की भावना और बढ़नेपर वह घर छोड़ कर भाग सकता है या खुद को कमरे में कैद कर सकता है |

मनोविश्लेषण :

स्किज़ोफ्रिनिया के विभिन्न लक्षणों को सारांश रूप में ‘माइन्ड-मेंटर डॉ. आलोक मनदर्शन’ ने शक्की व झक्की के रूप में परिभाषित किया है | डॉ.मनदर्शन ने यह भी बतायाकि ऐसे मरीजो की अपनी मनोरुग्णता के प्रति अंतर्दृष्टि लगभग शून्य होती है जिससे की वे खुद को मनोरोगी मानने को तैयार नहीं होते है तथा वास्तविक दुनिया से अलगथलग अपने झूठे विश्वास या भ्रान्ति की दुनिया को ही सही मानते है | स्किज़ोफ्रिनिया रोगी को अजीबो-गरीबो आवाजे सुनाई पड़ती है और असामान्य दृष्य भी दिखाई पड़सकते है जिन्हें वह वास्तविक समझता है | जबकि सच्चाई यह होती है कि मरीज का बीमार मन ही ऐसी आवाजे व दृष्य पैदा करता है | यही कारण है कि स्किज़ोफ्रिनिकमरीज आसानी से जादू-टोना,तंत्र-मन्त्र आदि के अन्धविश्वास में भी फंस जाते है और उनके परिजन भी जागरूकता की कमी के कारण इसे मनोरोग के रूप में नहीं समझपाते|

उपचारपुनर्वास :

मरीज के शुरूआती लक्षणों को पहचान कर उसका समुचित मनोउपचार करना चाहिए तथा उनमे आत्मविश्वास व दूसरो पर विश्वास करने को प्रोत्साहित करना चाहिएजिससे की उसमे स्वस्थ अंतर्दृष्टि एवं कल्पनालोक से इतर व्यावहारिक जीवन जीने की जिवेष्णा का विकास हो सके | मरीज से उनके असामान्य व्यवहार की प्रतिक्रियासकारात्मक ढंग से करना चाहिए न की हिंसक या मार-पीट के द्वारा| मरीज के सामाजिक व्यवहार व मनोरंजक क्रियाकलापों का बढ़ावा देना चाहिए |

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