- 90 Posts
- 39 Comments
आज मैं अपनी ये कविता दुनिया के सभी माँ जो अपने बच्चो को नाजो से पालती ,९ महीने गर्भ में संभाली है! इस ९ महीने के दौरान नजाने कितने दर्द सहती है ! हम इस चीज को तब महसूस करते है जब हमारी पत्नी गर्भ धारण कराती है ! उस पीड़ा और माँ के किये गए एहसान को मैं अपनी इस कविता के माध्यम से व्यक्त का रहा हूँ –
अब समझा हूँ मेरी माँ
कितनी नाजो से
तूने मुझको पाला है
९ महीने गर्भ में
मुझे संभाला है मेरी माँ
तूने कितने दर्द सहे थे
फिर भी प्यार से
मुझपे हाथ फेरी थी मेरी माँ
अब समझा हूँ मेरी माँ
(पहले तीन महीने)
जब भी पत्नी को फोन घूमता हूँ
वो अपना हल सुनाती ..है
उलटी कर -कर के है
हल बुरा, वो अपना दुखड़ा गाती है
न खाने को जीअ करता है
कुछ खाने से घबराती है …
कुछ भी नहीं अच्छा लगता
रोअ – रोअ के सुनती है …
तब याद तुम्हारी आती है
आँख मेरी भर आती है मेरी माँ …..
अब समझा हूँ मेरी माँ
(बीच के तीन महीने)
जब भी पत्नी को फोन घूमता हूँ
वो अपना हल सुनाती ..है
उलटी तो अब नहीं है जी
कमजोरी बहुत सताती है
कमर में दर्द रहता है जी
दुखड़ा मुझे सुनती है
दवा खा खा के है हल बुरा
दवा खाने से इतराती है
तब तेरी मुझे आती
और आँख मेरी भर आती है ….२
अब समझा हूँ मेरी माँ …………………
(आखरी के तीन महीने)
जब भी पत्नी को फोन घूमता हूँ
वो अपना हल सुनाती ..है
बबुआ अब बड़ा हो गया
मुझे बरा सताता है
लात घुसे मुझे लगता है
रातो को नींद नहीं आती
इतना मुझे सताता है
थोड़ी सी जो पलकें झपके
अंदर भूकम मचता है
बबुआ बहुत सताता है
बबुआ बहुत सत्ता है ….
तब तेरी याद मुझे आती
और आँख मेरी भर आती है मेरी माँ
अब समझा हूँ मेरी माँ …………………
Read Comments