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क्या चाहता है एक मजदूर?

विज्ञान जगत और मेरा समाज
विज्ञान जगत और मेरा समाज
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मजदूर हूँ , हाँ मैं मजदूर हूँ ।
नहीं कहीं से भी मैं मजबूर हूँ ।।
देश की डोर है, मेरे हाथो में ।
अपने देश का मैं गरूर हूँ ।।

मजदूर हूँ, हाँ मैं मजदूर हूँ ।

1 मई को दुनिया के अनेक देशो में अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस मनाया जाता है। जिसे लेबर डे, मई दिवस, श्रमिक दिवस और मजदूर दिवस आदि अन्य नामो से भी जाना जाता है। मजदूर दिवस की शुरुवात सन 1886 में अमेरिका में हुयी थी। भारत में सबसे पहले मजदूर 1 मई 1923 चेन्नई में मनाया गया।

मजदूर हमारे समाज का वह महत्वपूर्ण शख्स है जिसके योगदान के बिना इस समाज की उन्नति की कल्पना नहीं की जा सकती। सही मायनो में मजदूर हमारी भारतीय अर्थव्यवस्था एवं औद्योगिक प्रगति का एक शक्तिशाली स्तम्भ है।

जब शहर में आसमान से बाते करती हुयी किसी ईमारत को देखता हूँ तो उसकी नींव का ख्याल आता है, जिस पर वह ईमारत बुलंदी के साथ खड़ी है, ख्याल आता है उन ईंटो का जिनको सीमेंट और रेत के मसाले से जोड़कर इस ईमारत को बनाया जाता है । वह शख्स जो उस ईमारत की नीव रखता है , वह शख्स जिसके कपडे गारे में सने हुए हैं और ख़ुशी से एक ईमारत के लिए ईंटो को बनाता है वह एक मजदूर है । वह कहीं जमीन से कोयला निकालता है , तो कही सड़क बनाते नज़र आता है , कहीं कारखानों में दिन भर पसीना बहाता है , तो कहीं सर पर हेलमेट लगाये किसी पुल का निर्माण करता है।

मजदूर का कोई एक निश्चित कार्य नहीं है। वह हर एक शख्स जो अपने पसीने की बूंदो से अपने पेट की आग को शांत करता है ,अपने परिवार का पालन पोषण करता है , वह मजदूर है, वह श्रमिक है। जिसको अपने दिन भर के कार्य के लिए एक निश्चित मेहनताना मिलता है। मजदूर पहचान है एक स्वाभिमानी व्यक्तित्व की, उसको मजबूर समझने की भूल नहीं करनी चाहिए।

 

आजादी के इतने वर्ष बाद भी आज मजदूर अपने अधिकारों से वंचित है। इस समाज में आज भी उनके हालात अच्छे नहीं हैं। वह खुद को ठगा सा महसूस करता है।किसी को परवाह नहीं उसके सपनो की। इस बढ़ती मँहगाई में आज भी उन्हे सुबह शाम वही सुखी रोटी खाने को मिलती है , जब जायदा सूख जाती है तो चाय में डुबोकर निगल जाते है या फिर चटनी के साथ खा लेते हैं । कई दिनों तक उनके घरो में दाल या सब्जी नहीं बनती।

मजदूर यह हरगिज नहीं चाहता कि जिस कोयले की खान में वह काम करता है ,वह खान उसके मालिक के लिए सोना क्यों उगलती हैं बल्कि वह चाहता है कि उसके घर का चूल्हा भी जलता रहे। एक मजदूर को यह शिकायत नहीं कि उसके मालिक के बगीचे फूलो और फलो से क्यों भरे हैं उसे यह शिकायत है कि उसके घर में आटे के कनस्तर खाली क्यों हैं। एक मजदूर इतना चाहता है कि उसे उसका अधिकार और उसकी मेहनत का सही मेहनताना मिले। जिससे उसकी जिंदगी में वर्षो से छायी ये काली रात ढल जाए , खत्म हो और एक नयी सुबह आये।बस उस सुबह के इंतज़ार में वह टकटकी लगाये जागता जाता है और काम करता जाता है। लेकिन वह सुबह तब आयेगी जब उन्हे उनके अंधकार प्राप्त हो ,मजदूरों के लिए अस्पताल ,उनके बच्चो की शिक्षा के लिए अच्छे स्कूल हों।

हमे मजदूर को तुच्छ नहीं समझना चाहिए। मजदूर हमारे देश की शान है एक मजदूर को अपनी मेहनत और परिश्रम पर विश्वास होता है और वह कठिन परिस्थतियो में भी निराश नहीं होता।

– मनोज कुमार

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