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नया हथियार है सोशल नेटवर्किंग

मजेदार दुनिया
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मनोज जैसवाल

बात  वक्त काटने से शुरू हुई थी और अब यही बात वक्त बदलने का हथियार बन गई है। इंटरनेट की सोशल नेटवर्किंग साइट्स सिर्फ गप्पें लड़ाने, दोस्त बनाने और इन्फॉर्मेशन एक्सचेंज करने का साधन भर नहीं रहीं। ये युवाओं की आशा–आकांक्षाओं को व्यक्त करने का सुदृढ़ मंच भी हैं, भ्रष्टाचार और कुशासन के खिलाफ अभियान चलाने के लिए उपयुक्त युद्धभूमि भी। दुनिया बदल रही है और उसके तौर–तरीके और अंदाज भी इसके अनुरूप बदलने ही थे। इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। जैसे–जैसे ये संख्या बढ़ेगी इस माध्यम का उपयोग, इसका दायरा और इसकी मार भी बढ़ेगी। इंटरनेट और मोबाइल के मेल ने ट्विटर, फेसबुक और ऑर्कुट जैसी नेटवर्किंग साइट्स के लिए नई संभावनाओं के द्वार खोले हैं।
विचारकों का मानना है कि मानव के इतिहास में इससे पहले जो बड़ी घटनाएं हुई हैं, वे हैं अनाज उगाने की क्षमता और इसके काफी बाद हुआ औद्योगीकरण। अनाज उगाने के बाद यायावर आदमी एक जगह बस गया और खेती करने लगा। खेती के कारण जमीन का मोल बढ़ा। सबसे ज्यादा जमीन वाले राजा में सत्ता केंद्रित हो गई। सामाजिक तौर पर इसी व्यवस्था ने विशाल संयुक्त परिवारों का पालन–पोषण किया। इसके बाद आई औद्योगिक क्रांति की दूसरी लहर ने इन सभी व्यवस्थाओं को तहस–नहस करके रख दिया।
लोग खेती छोड़कर कारखानों की तरफ भागे और संयुक्त परिवार टूटकर एकल परिवार में बंट गए। जमीन का महत्व खत्म हुआ तो राजा की भी जरूरत नहीं रही। अपनी अकेली आमदनी पर निर्भर मिडिल क्लास ने लोकतंत्र को जन्म दिया। हमारे देश के लोहारों, बुनकरों जैसे कारीगरों का इस बदलाव ने सफाया कर दिया और उन्हें इसका पता तक नहीं चला।
कहते हैं कि अब टेलिविजन और इंटरनेट की दुनिया तीसरी सूचना क्रांति को आकार दे रही हैं। हमारे बच्चे मिनटों में खिलौने फेंक देते हैं। हमारे हाथ का रिमोट हमें किसी चैनल पर रुकने नहीं देता। ये नया बदलाव हमारा नजरिया बदल रहा और हमारी आदतें भी। विश्व के सबसे अमीर आदमी बिल गेट्स की कमाई उसकी जमीन या कारखानों से नहीं नापी जाती। उसकी बौद्धिक संपदा नाखून से भी छोटे से चिप पर आ जाती है। अब भारत के किसी कोने में बना कॉल सेंटर अमेरिका–ब्रिटेन की लाखों नौकरियां छीन लेता है।
सेंसेक्स के कितने पॉइंट का उछाल इन्वेस्टर्स के कितने हजार करोड़ रुपये लील गया, इसका आकलन दुनिया के दूसरे कोने में बैठे लोगों को सेकेंडों में लग जाता है। आज बाबाओं को शिष्यबटोरने के लिए टेलिविजन का सहारा लेना पड़ता है। पॉलिटिकल पार्टियों का मीडिया बजटकरोड़ों रुपये पार कर गया है। ऐसे समय में विश्व भर के हजारों बेचैन युवा धड़कनों में क्यागूंज रहा है, ये सूचना ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है। चीन में गूगल की साइट पर‘इजिप्ट‘ शब्द तलाशना तक रोक दिया गया है।
भारत में ट्विटर पर की गई एक मामूली टिप्पणी ने पीएम के करीबी मित्र शशि थरूर को मंत्रीसे संतरी बना दिया। आरुषि हत्याकांड, जैसिका लाल कांड और 26/11 के हमले के बाद हुईकैंडल मार्च की पहली सूचनाएं इन्हीं माध्यमों से आईं, जिन्होंने यथार्थ को बदलकर रखदिया। ये माना कि फेसबुक पर ड्रग्स, रेव पार्टियों और सेक्स जैसी सूचनाएं पाने और तलाशनेवालों की कमी नहीं है। फिर भी आज के वैश्विक लोकतंत्र और आम आदमी के हकों की लड़ाईमें ये सबसे पैना और कारगर हथियार है, इससे कौन इनकार कर सकता है manojjaiswalpbt@gmail.com।

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