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रिजर्व बैंक ने खाते सील करने के बाद महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गोवा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, झारखंड और दिल्ली में स्थित स्पीक एशिया के दफ्तरों पर छापेमारी शुरू कर दी है। पहली छापेमारी कानपुर में हुई उसके बाद लखनऊ व अन्य शहरों में। छापेमारी का दौर जारी है। आयकर विभाग को कार्यालयों में जो भी दस्तावेज मिल रहे हैं, वो सभी जब्त कर लिये जा रहे हैं।
देश भर में करीब 20 लाख लोग स्पीक एशिया में करीब 2000 करोड़ रुपए लगा चुके हैं। स्पीक एशिया के सदस्यों की बात करें तो मध्य प्रदेश में 50 हजार, उत्तर प्रदेश में 15 लाख, गोवा में 20 हजार हैं। यह आंकड़े भी प्रारंभिक जांच से प्राप्त हुए हैं। सदस्यों की संख्या बढ़ भी सकती है।
हाल ही में स्पीक एशिया के अधिकारियों ने एक प्रेसवार्ता करके खुद को पाक-साफ बताया था, लेकिन मीडिया के सवालों के जवाब देने में असमर्थ रहे थे। अब देखना यह है कि केंद्र सरकार इस कंपनी में लगे अरबों रुपए कैसे वापस लाती है। सरकार पैसा वापस लाये या नहीं, लेकिन उन आम लोगों का क्या होगा, जिनका पैसा इसमें लग चुका है।
कैसे चलती थी चेन
स्पीक एशिया की चेन के अंतर्गत आपको किसी सदस्य के साथ जुड़ना होता था। सदस्यता लेने के लिए 11 हजार रुपए देने होते थे। उस समय यह लालच दिया जाता था कि 11 हजार देने के बाद तीन महीने में आपका पेसा वसूल हो जायेगा। यानी कंपनी चार-चार हजार रुपए हर महीने देगी। आपको बस इंटरनेट पर जाकर एक सर्वे में क्लिक करना होगा। कंपनी ने अपनी वेबसाइट पर विश्व की तमाम मल्टीनेशनल कंपनीज़ को अपना क्लाइंट बताया और कहा कि ये सर्वे उन्हीं कंपनियों के लिए किये जाते हैं।
जाहिर है बड़ी कंपनियों के नाम आते ही आम आदमी आसानी से बेवकूफ बन सकता है। कंपनी कभी सदस्यों के अकाउंट में सीधे पैसा नहीं डालती। पैसा आता था वो भी डॉलर में और स्पीक एशिया अकाउंट में। यानी उसे निकालने के लिए आपको टीडीएस कटवाना पड़ेगा, जो काफी अधिक रकम होती थी। ऐसे में लोग अपना पैसा नये सदस्यों के अकाउंट में ट्रांसफर कर देते और उससे कैश ले लेते। जिन लोगों ने अकलमंदी दिखाते हुए यह काम किया उनका पैसा तो वसूल हो गया, लेकिन बाकी लाखों लोगों का पैसा कंपनी के खाते में है।
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