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अरमान बहुत है……..

आईने के सामने
आईने के सामने
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नेता बनूँ मैं देश का, अरमान बहुत है।

पर क्या करूँ मैं दिल मेँ, ईमान बहुत है।

संसद हो या तिहाड़, कोई फर्क नहीं ज्यादा

चोरों, लुटेरों का यहाँ, सम्मान बहुत है।

भूंखी, बेगार जनता, रोटी को तरसती

और इनके सारे नेता, धनवान बहुत हैं।

मेहनत बिना कमाए जो, दौलत फरेब से

वो शख्स ही तो देते, अब दान बहुत हैं।

जनता की पीर हर सके, अवतार ना बाबा,

सत्संग से कमाते, भगवान बहुत हैं।

शिक्षित ना कर सकीं हैं, बिकती जो डिग्रियाँ,

शिक्षा की हर गली मेँ, दूकान बहुत हैं।

अन्याय हो या जुर्म, ना उठती कोई आवाज,

कहने को तो शहर मेँ, इन्सान बहुत हैं।

जनता नहीं समझती, ये बात नहीं ‘जानी’

सब जानकर भी जनता, अनजान बहुत हैं।

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