आईने के सामने
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है बहुत दुशवार जीना, घर के वीराने से,
जिंदगी आबाद होती, बस तेरे आने से !!
बस तुम्हारी ही खुशी है, इस जहां में बेहिसाब ,
नापकर, गम दूर करता, शाकी पैमाने से !!
जो नशा आंखो में तेरी, वो कहाँ है जाम में,
निकले हैं मायूस होके, हम तो मयखाने से !!
मंदिर-मस्जिद, काशी–काबा, जा के हमने देखा
पर सकूं मिलता नहीं है, दिल को भरमाने से !!
दिल, जिगर और खून के, कतरे कतरे में है जो,
भूल सकता कैसे है? ‘जानी’, वो भुलाने से !!
योगी सारस्वत जी को समर्पित
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