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आज मुहल्ले में बहुत चहल पहल थी। सड़कों के किनारे कुम्भकरण जी की बड़ी-बड़ी तस्वीरें लगीं थी। मुहल्ले के मुख्य द्वार को सजाया जा रहा था। सब तरफ़ स्वागत की तैयारियां जोरों से चल रही थी। भाड़े के श्रोता गाडि़यों में भर भर कर लाये जा रहे थे। उनको बांधे रखने के लिये बार ड़ांसरों का भी बाकायदा प्रबन्ध था। मुहल्ले के जवान और बूढे, जहां डांसरों के चक्कर में इकट्ठा हो रहे थे। वहीं औरतें अपने पतियों पर अंकुश रखने के लिये जुट रहीं थीं। बच्चों का तो मनोरंजन था ही। आखिर एम एल ए श्री कुम्भकरण जी, जो आने वाले थे।
जब मुझे मालूम हुआ कि एम एल ए साहब आ रहे हैं, तो मेरे अन्दर के पत्रकारी कीड़े ने कुलबुलाना शुरू कर दिया। मैंने सोचा कि आज कुम्भकरण जी का इण्टरब्यू करके मैं भी, क्यों न मुहल्ले में फ़ेमस पत्रकार हो जाऊ । फि़र क्या था, मैं भी झोला उठाये उनका इन्तजार करने लगा।
नेता जी के इंतजार में लोगों ने खूब उ ला ला, उ ला ला किया। डांसरों से खूब जिगर से बीड़ी जलवाई। कभी फ़रमाइश करके बलिया और छपरा हिलवाया। कभी यूपी बिहार लुटवाया। आखिर यूपी बिहार लुटने के बाद नेता जी ने पदार्पण किया। पहुंचते ही एक धुंआधार स्पीच देश की गरीबी, अशिक्षा, आतंकवाद, जातिवाद, भ्रष्टाचार आदि पर दे मारी। उसके बाद शुरू हुआ एलानों का सिलसिला।
कभी बेरोजगारों को भत्ते का एलान हुआ, कभी टीचरों की भर्ती का। कभी मुफ़्त बिजली पानी देने का तो कभी कर्ज माफ़ करने का। कहीं हास्पिटल बनवाने की घोंषणा हुई तो कहीं पर पक्की सड़क बनाने की। मुझे तो लगा कि एक साथ इतने सारे तोहफ़े देने से, कहीं जनता का खुशी के मारे हार्ट ना फ़ेल हो जाये। इसलिये मैंने एक किराये के श्रोता को पकड़ा और पूंछा कि- क्यों भाई, अब तो आप की चांदी ही चांदी है। और क्या चाहिये आपको?
उसने बड़ी बेरुखी से जवाब दिया- भाषणों से पेट थोड़े ही भरता है। मैं यहां भाषण सुनने के जो पचास रूपये मिलने वाले हैं, उसके लिये आया हूं। और इन एलानों से हमारा नहीं सरकारी बाबुओं की चांदी होगी। हमको कोई फ़रक नहीं पड़ेगा। ये कोई पहली बार नहीं एलान हुआ है। पचास साल से यही चल रहा है। मुझे श्रोता की यह बेरुखी पसन्द नहीं आयी। आखिर भाषण सुनकर वह गरीबी रेखा से ऊपर आ गया फिर भी वही शिकायत। इसलिये मैने किसी और श्रोता से बात नहीं की।
वैसे भी मैं यहां कुम्भकरण जी का इण्टरब्यु करने आया था, न कि श्रोता का। फ़ेमस होने के लिये श्रोता नहीं नेता का इण्टरब्यू करना था। बड़ी कोशिशों के बाद मुझे कुम्भकरण जी का इण्टरब्यू लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पेश है साक्षात्कार के कुछ अंश। (जनता की आंख न खुल जाये, और कुम्भकरण जी का वोट ना कट जाये, इसलिये इण्टरब्यु के कुछ अंश काट दिये गये हैं। )
प्रश्न- कुम्भकरण जी, आप जीतने के बाद पाँच साल तक सोते रहे। अब जब चुनाव घोषित हो गए हैं, तो आप जाग गये हैं। इससे देश का भला कैसे होगा?
कु.क.जी- देखिये जहां तक देश का भला होने की बात है, तो यह जान लीजिये कि हमारा देश सोने की चिंडि़या जरूर बनेगा। जल्द ही वो समय आयेगा।
प्रश्न – लेकिन कैसे बनेगा? जीतने के बाद पाँच साल तो सोकर बिता दिये। अब देश सोने की चिंडि़या कैसे बनेगा?
कु.क.जी- जैसा कि आप खुद ही मान रहे हैं कि हम चार सालों तक सोते रहे हैं। अब ये बताइये, कि अगर लंका का कुम्भकरण अकेले सिर्फ़ छह महीने सोकर, लंका को सोने की लंका बना सकता है, तो क्या हम इतने विधायक पाँच साल तक सोकर भी, भारत को सोने की चिडि़या नहीं बना सकते? आप बताइए हमारे नेताओं का, सोने में कोई मुकाबला कर सकता है क्या?
प्रश्न – तो क्या आप नींद में सोने वाला देश बनायेंगे? या सोने चांदी वाला देश?
कु.क.जी- आप सोने -सोने में फ़र्क करते हैं। यह तो मनुवाद है। हम धर्मनिरपेक्ष देश के वासी हैं। यहां ऊंच नींच, छोटा-बड़ा कोई नहीं है। मनुष्य-मनुष्य में कोई फ़र्क नहीं है। फि़र सोने-सोने में फ़र्क क्यों?
प्रश्न- अच्छा चलिये ये बताइए, आपको पांचवें साल में जनता की याद क्यों आयी? अब क्यों आये हैं जनता के दरबार में ?
कु.क.जी- ये क्या बात हुई भाई? ना आयें तो सवाल! और अब आये हैं तो सवाल! भाई जनता की दुख तकलीफ़ हमारी दुख तकलीफ़ है। हम भी इसी मिट्टी में पैदा हुए हैं। हमें जनता के हर सुख दुख का एहसास है। हमारी कुर्सी उनके हाथ, और उनकी किस्मत हमारे हाथ है। हमारे बिना जनता, और जनता बिना हम अनाथ हैं।
प्रश्न- अच्छा बताइये, आपने जो इतने सारे वादे किये हैं, उसे पूरा करने के लिये पैसा कहां से आयेगा? पाँच साल से तो आप पैसे का रोना रो रहे थे, कि सरकारी खजाने में पैसे नहीं हैं। दूसरी तरफ़ खुद विदेशों की सैर फ़रमाते रहे। अब इतनी सारी स्कीमों के लिये पैसा कहां से आयेगा ?
कु.क.जी – बुड़बक हो का? इतना भी नहीं समझते । अरे हम पाँच साल से विदेश में मौज मस्ती करने थोड़े ही जा रहे थे। हम तो दुनिया में घूम-घूम कर प्रदेश के विकास के लिये पैसे की सहायता मांग रहे थे। हमने पाँच सालों तक पैसा इकट्ठा किया। अब जनता पर खर्च कर रहे हैं।
हमारे पास ज्यादा टाइम नहीं है। हमें अभी और कई जगह जाना है। शिलान्यास करने हैं। योजनायें बनानी है। प्रदेश का विकास करना है। समय बिलकुल नहीं है। और कुम्भकरण जी प्रस्थान कर गये। मुझे लगा कि कुम्भकरण जी तो पांचवें साल जाग गये हैं। पर जनता साठ सालों में भी क्यों नहीं जागी?
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