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घर वो बना नहीं सकता……

आईने के सामने
आईने के सामने
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शहर में आजकल, घर वो, बना नहीं सकता।

इधर-उधर से जो, ’ऊपरी’ कमा नहीं सकता।

कार्डों,  गिफ़्टों के दौर में,  सिर्फ  दिल से

बना तो सकता है रिश्ते, निभा नहीं सकता

जुल्म, अन्याय, गरीबों  पे होने से,  मीडिया

कमा तो सकता है, उनको मिटा नहीं सकता

खुद्दारी अब भी, आशिकों में,  बची है  ‘जानी’

दर्द में, रो तो सकता है, पर दिखा नहीं सकता

परममित्र डा. सूर्या बाली जी को समर्पित

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