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जिस दिल पे हमको नाज था….

आईने के सामने
आईने के सामने
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जिस दिल पे हमको नाज था, ये दिल वही रहा।

अब  ये  भले ज माने के, काबिल  नहीं रहा।

कुछ  तो  जमाने  का भी है, कसूर इश्क में,

दिल को ही दे कसूर जो, वो गालिब नहीं रहा।

औरों के रहमो-करम से, पहुंचे जो बुलंदी पर

मैं उस जमात में कभी, शामिल  नहीं  रहा।

शहरों के और मशीनों के, कचरों से पटे हैं।

मौजें सकूँ से देखें,  वो, साहिल नहीं रहा ।

धोखे, फरेब दुनिया में, खाये कदम – कदम

छानी है खाक दुनिया की, काहिल नहीं रहा।

चंगुल में चंद लोगों के, जम्हूरियत   हुई

और बाकियों को कुछ भी, हासिल नहीं रहा ।

कातिल को रोकने की, जुर्रत ना किया ‘जानी’

कैसे कहूँ वो कत्ल में,  शामिल  नहीं  रहा ।

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