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दिल्ली में दिसबंर और जनवरी के दिनों में सर्दी अपने चरम पर होती है। इस सर्दी में स्कूल कई बार बंद कर दिए जाते हैं ताकि छोटे बच्चों को परेशानी ना हो। स्कूल जाने वाले बच्चे सर्दी की इस मार से बच जाते हैं लेकिन जिंदगी की जंग में कुछ “छोटू” सिपाही हरदिन बिना मौसम का ख्याल किए बाहर निकलते हैं।
इनके लिए हर दिन एक जंग है जिससे लड़ने के लिए सर पर टोपी या मोफलर लपेट और एक स्वेटर डाल इन्हें अपने युद्धक्षेत्र में जाना होता है। सुबह चाय की दुकान पर मोर्चा संभालने वाला यह फौजी कई बार रात को किसी शादी में भी तैनात होत है। इन छोटे सिपाहियों को कुछ छोटू, कुछ भैया तो कुछ “बाल-मजदूर” कह कर पुकारते हैं।
छोटे सिपाहियों से भरा समाज
इन छोटे सिपाहियों आपकी मुलाकात चाय की दुकान, मूंगफली के ठेले, होटल के किचन या डाबे के पीछे बर्तन धोते हो सकती है। यह रेलवे स्टेशन पर जूते साफ करते या अखबार बेचते भी आपसे रूबरू होते हैं। ऐसा कोई काम नहीं है जो यह नहीं कर सकते। चन्द रुपयों के लिए अपना सुनहरा बचपन कुरबान कर चुके इनकी आंखों में बस एक ही सपना होता है। यह सपना आपकी भी आंखों को नम कर सकता है।
यह सपना होता है कुछ पैसा कम कर घर भेजने का और फिर कुछ ज्यादा पैसे इकठ्ठा कर अपने घर जाने का जहां वह अपनी मां के हाथों से उन चोटों पर मरहम लगा सके जो उनके मालिक के हाथों ने दी होती है। ढाबे पर आपको गर्म रोटियां खिलाने वाले छोटू की ख्वाहिश होती है कि वह मां के हाथों से बनी रोटी खा सके।
भारत में शिक्षा का कानून पारित है जिसके अनुसार चौदह साल से कम आयु के बच्चों को शिक्षा देना सरकार का काम है। इन सब के बावजूद बाल मजदूरी को रोका नहीं जा सका। इसे रोकना भी नहीं चाहिए।
जानते हैं क्यू?
बाल मजदूरी रोक देंगे तो क्या होगा? होगा यह कि उस बच्चे पर जो लोग आश्रित हैं उनका सहारा टूट जाएगा। वह बच्चा भी अपनी हिम्मत तोड सकता है। कई मामलों में तो यह भी देखने को आता है कि सामाजिक कार्यकर्ता बच्चों को ढाबों आदि से तो निकलवा देते हैं लेकिन उनके कल्याण के लिए कुछ नहीं
करते। ऐसे बच्चें दुबारा काम पर भी नहीं जा पाते। और फिर रास्ता चुनते हैं अपराध का। इंसान को जब उसका हक नहीं मिलता, जब मेहनत करने के इच्छा के बाद भी काम नहीं मिलता तो वह हिंसक हो जाता है। यह स्वभाविक प्रकिया है।
क्या है उपाय?
यह भारत है। यहां जरूरी नहीं कि हर बात का जवाब हो, हर चीज का उपाय हो। बाल मजदूरी को खत्म करना है तो पहले बेरोजगारी खत्म करनी होगी जिसकी वजह से इनके मां-बाप इन्हें काम पर भेजने को मजबूर होते है। सिर्फ शिक्षा का हक देने से क्या फायदा जब बच्चे को मार्केट में कोई नौकरी ही ना मिले। और हम और आप यही कर सकते हैं कि इन्हें नन्हें फौजियों का मनोबल बढ़ाए, उनके दर्द को सुने, कोशिश करें कि जिस ढाबे पर हम खाना खाने जाते हैं वहां अगर कोई बच्चा काम कर रहा हो तो उसके बारें में पूछ ले, अगर उसके साथ कुछ गलत हो रहा हो तो उसकी मदद करें। दीवाली या किसी पर्व त्यौहार पर जिस तरह हम सीमा पर खड़े जवानों को मिठाई के लिए डोनेशन देते हैं वैसे ही इन सिपाहियों को भी थोड़ी बख्शीश तो दे ही दें।
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