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अयोध्या कांड कब , क्या और कैसे, अतीत को खंगालती एक तस्वीर

चिठ्ठाकारी
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एक धर्मनिरपेक्ष देश की यह कैसी विडंबना की उसके देश में ही धर्म के नाम पर आए दिन दंगे हो रहे है. आजादी मिली तो दंगे, आजाद हुए तो दंगे. 1947 में भारत पाक बंटवारे के समय हिन्दु मुस्लिम एक दूसरे के खून के प्यासे हुए तो जल्द ही 1984 का वह समय भी आया जब मात्र दो सिक्खों की गलती की सजा पूरे सिक्ख समुदाय ने भुक्ती और देश में सबसे बडा नरसंहार हुआ.

अभी शायद 84 के दंगो का दर्द गया भी न था कि 1992 में एक बार फिर हिन्दु और मुस्लिम आमने सामने हो गए. “राम और रहीम एक है” के नारे लगाने वाले इन्हीं दोनों के नाम पर लडने लगे. फिर लोगों की बलि चढीं. लाल कृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में कारसेवकों ने विवादित बाबरी मस्जिद ढांचे को गिरा दिया. इसके बाद बंग्लादेश और पाकिस्तान समेत देश के भी कई हिस्सों में बेगुनाह हिन्दुओं का खून बहा, इस नरसंहार में वह भी मारे गए जिन्हें यह तक मालूम न था कि विवादित ढ़ांचा या बाबरी मस्जिद है क्या और अयोध्या का असली मुद्दा है क्या. फिर गुजरात में दंगे हुए. दर्द की सीमा का कोई किनारा न रहा.

इन दंगो से क्या मिला. कईयों के घर के दिपक बुझ गए तो कईयों ने अपनी आंखों के सामने अपनी मां-बहनों की इज्जत लूटते हुए देखा, हैवानियत का नंगा नाच नाचा गया.

आज फिर भारत दहल रहा है, एक तरफ कश्मीर में आग लगी है तो दूसरी तरफ अयोध्या का फैसला आना है. इस देश में जहां न्याय पालिका किसी कछुए से तेज नही वहां इस मामले को इतने समय तक राजनीति के लिए जिंदा रखा गया और आज फैसला आ जाएं इसकी कोई गांरटी नही है. देश में हजारों ऐसे महत्वपूर्ण केस है जिनके फैसले अभी तक आएं नही है लेकिन उनके पिछे तो कोई नेता नही भागता, हां शायद वहां राजनीति का कोई स्कोप न हो इसलिए. लेकिन एक बात मैं कहना चाहुंगा यह नेता ही है जिन्होंने हमारे देश को बांटने की कोशिश की है. 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या की वजह से दंगे हुए तो 1992 में आडवाणी ने जहर उगाला था तो गुजरात दंगों में अटल बिहारी वाजपेयी और अन्य नेताओं को हमेशा शक की निगाहों से देखा गया और इन सबके बीच कांग्रेस मुंह ताकती रही, इस आस में की शायद कोई ऐसा मुद्दा निकल जाएं जिस पर राजनीति की जा सकें.

हम में से कई तो जानते भी नही है कि अयोध्या का मसला क्या है. मैं क्या मेरे अधिकतर दोस्त भी नही जानते. लेकिन भारतीय इतिहास के इस अतिविशेष अध्याय को जो हमें बतायेगा कि हमारा देश की अखंडता को तोडने के लिए किस तरह चन्द नेता जी तोड़ मेहनत करते है, हमें जानना ही चाहिए.

बेशक इसे पढ़िएगा मत लेकिन दिल में एक बात रख लिजिएगा कि यह देश धर्मनिरपेक्ष है, और हमे देश की अखंडता को भंग करने वाले नेताओं को मुहंतोड़ जवाब देना चाहिए. यह पूरा बवाल मात्र मुठ्ठी भर नेताओं की देन है जो इस सारे देश पर राज कर रहे है. देश की अधिकतर या ये कहे संपूर्ण जनता शांति और शौहार्द चाहती है, लेकिन इस देश में चलती उसी की है जिसके पास ताकत होती है.

हमारे ही मत से ताकतवर बने यह नेता हम पर ही अपनी रौब झाडने में लगे रहते है. कश्मीर हो अयोध्या हर जगह जो नेता चाहते है वही होता हैं. अपने फायदे के लिए यह जनता को हाशिए पर चढाने से कतई बाज नही आते.

अयोध्या कांड

अयोध्या विवाद भारत के हिंदू और मुस्लिम समुदाय के बीच तनाव का एक प्रमुख मुद्दा रहा है और देश की राजनीति को एक लंबे अरसे से प्रभावित करता रहा है. भारतीय जनता पार्टी और विश्वहिंदू परिषद सहित कई हिंदू संगठनों का दावा है कि हिंदुओं के आराध्यदेव राम का जन्म ठीक वहीं हुआ जहा बाबरी मस्जिद थी.उनका दावा है कि बाबरी मस्जिद दरअसल एक मंदिर को तोड़कर बनवाई गई थी और इसी दावे के चलते छह दिसंबर 1992 को विवादित बाबरी मस्जिद ढांचा गिरा दी गई.

नेताओं का महाजाल

छह दिसंबर 1992 को जब विवादित ढांचे को ढहाया जा रहा था तो उसी के साथ हजारो साल पुरानी हिंदू-मुस्लिम एकता भी इसके साथ ढहा दी गई. मस्जिद की जगह भगवान राम के मंदिर को लेकर शुरू हुए आंदोलन का सबसे अधिक फायदा भाजपा को मिला और वह सत्ता में आई. लेकिन, बाद में भाजपा अपने मूल मुद्दे से पीछे हट गई और राम मंदिर निर्माण को हाशिए पर डाल दिया. विवादित ढांचा गिराने के लिए जितनी जिम्मेदार भाजपा और उसके सहयोगी संगठन थे, उतनी ही जिम्मेदार कांग्रेस थी. क्योंकि उस वक्त केंद्र की सत्ता में कांग्रेस की सरकार थी और उसने मस्जिद को बचाने का कोई खास प्रयास नहीं किया. मामला जब से शुरु हुआ तब से ही कांग्रेस इसके प्रति ढुलमुल रवैया अपनाती रही.

1528 : बात पांच सौ साल से भी अधिक पुरानी है. जब अयोध्या में एक मस्जिद का निर्माण किया गया लेकिन कुछ हिंदूओं को कहना था कि इसी जमीन पर भगवान राम का जन्‍म हुआ था. यह मस्जिद बाबर ने बनवाई थी जिसके कारण इसे बाबरी मस्जिद कहा जाने लगा. लेकिन कई इतिहासकारों का मानना है कि बाबर कभी अयोध्‍या गया ही नहीं.

1853 : मस्जिद के निर्माण के करीब तीन सौ साल बाद पहली बार इस स्‍थान के पास दंगे हुए.

1859 : ब्रिटिश सरकार ने विवादित स्थल पर बाड़ लगा दी और परिसर के भीतरी हिस्से में मुसलमानों को और बाहरी हिस्से में हिंदुओं को प्रार्थना करने की इजाजत दी.

1949 : भगवान राम की मूर्तियां कथित तौर पर मस्जिद में पाई गयीं. माना जाता है कि कुछ हिंदूओं ने ये मूर्तियां वहां रखवाईं थीं. मुसलमानों ने इस पर विरोध व्यक्त किया. जिसके बाद मामला कोर्ट में गया. जिसके बाद सरकार ने स्थल को विवादित घोषित करके ताला लगा दिया.

1984 : विश्व हिंदू परिषद ने इस विवादित स्‍थल पर राम मंदिर का निर्माण करने के लिए एक समिति का गठन किया. जिसका नेतृत्व बाद में भाजपा के के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने किया.

छह दिसंबर 1992: भाजपा, विश्व हिंदू परिषद और शिव सेना के कार्यकर्ताओं ने 6 दिसंबर को विवादित ढांचे को तोड़ दिया. जिसके बाद पूरे देश में हिंदू और मुसलमानों के बीच दंगे भड़क उठे. बांग्लादेश और पाकिस्तान समेत पूरे भारत में करीब दो हजार से भी अधिक लोगों की इसमें जान गई.

2001 : विवादित ढांचे के विध्वंस की बरसी पर पूरे देश में तनाव बढ़ गया और जिसके बाद विश्व हिंदू परिषद ने विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण करने के अपना संकल्प दोहराया.

फ़रवरी 2002 : भाजपा की अपनी गलती का अहसास. भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को शामिल करने से इनकार कर दिया. विश्व हिंदू परिषद ने 15 मार्च से राम मंदिर निर्माण कार्य शुरु करने की घोषणा कर दी. सैकड़ों हिंदू कार्यकर्ता अयोध्या में इकठ्ठा हुए. अयोध्या से लौट रहे हिंदू कार्यकर्ता जिस रेलगाड़ी में यात्रा कर रहे थे उस पर गोधरा में हुए हमले में 58 कार्यकर्ता मारे गए.

जनवरी 2003 : रेडियो तरंगों के ज़रिए ये पता लगाने की कोशिश की गई कि क्या विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर के नीचे किसी प्राचीन इमारत के अवशेष दबे हैं, कोई पक्का निष्कर्ष नहीं निकला.

मार्च 2003 : केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से विवादित स्थल पर पूजापाठ की अनुमति देने का अनुरोध किया जिसे ठुकरा दिया गया.

मई 2003 : सीबीआई ने 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने के मामले में उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी सहित आठ लोगों के ख़िलाफ पूरक आरोपपत्र दाखिल किए.

अगस्त 2003 : भाजपा नेता और उप प्रधानमंत्री ने विहिप के इस अनुरोध को ठुकराया कि राम मंदिर बनाने के लिए विशेष विधेयक लाया जाए.

अप्रैल 2004 : आडवाणी ने अयोध्या में अस्थायी राममंदिर में पूजा की और कहा कि मंदिर का निर्माण ज़रूर किया जाएगा.

जनवरी 2005 : लालकृष्ण आडवाणी को अयोध्या में छह दिसंबर 1992 को विवादित ढांचे के विध्वंस में उनकी भूमिका के मामले में अदालत में तलब किया गया.

20 अप्रैल 2006 : यूपीए सरकार ने लिब्रहान आयोग के समक्ष लिखित बयान में आरोप लगाया कि बाबरी मस्जिद को ढहाया जाना सुनियोजित षड्यंत्र का हिस्सा था और इसमें भाजपा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, बजरंग दल और शिव सेना के शामिल..

जुलाई 2006 : सरकार ने अयोध्या में विवादित स्थल पर बने अस्थाई राम मंदिर की सुरक्षा के लिए बुलेटप्रूफ़ काँच का घेरा बनाए जाने का प्रस्ताव किया. मुस्लिम समुदाय ने विरोध किया.

30 जून 2009 : बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के मामले की जाँच के लिए गठित लिब्रहान आयोग ने 17 वर्षों के बाद अपनी रिपोर्ट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सौंपी.

23 नवंबर 2009 : एक अंग्रेजी अखबार में आयोग की रिपोर्ट लीक, संसद में हंगामा.

30 सितंबर 2010 : आज यह उम्मीद है कि अयोध्या मसले पर फैसला आ जाएं.

यह तो थी अब तक की कहानी, एक ऐसी कहानी जिसमें आपको आम आदमी कहीं नही दिखेगा दिखेगा तो सिर्फ आंखों में आशुओं की धारा लिया आम आदमी जो इन दंगों में बिना वजह मारा गया.

मत करो अपमान इस देश की अखंडता का

भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, और यह आज या कल से नही बल्कि बहुत पहले से रहा है. इसे धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ाने के लिए किसी कानून की जरुरत नही बल्कि यह तो हमारी संस्कृति में ही बसा है. हमारे देश में हिन्दुओं की बहुलता होने के बावजुद सभी धर्मों ने अपना बसेरा जमाया है. चाहे पारसी हो या मुस्लिम सब हमारे देश में अपने बन कर रहे. फिर कैसे हम अपने ही लोगों को काट कर खून की होली खेल सकते है. नेताओं को तो रोटी सेंकने से फुर्सत नही.

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