Menu
blogid : 38 postid : 861722

क्यों छोड़ देते हैं पंक्षी घोंसले – 1

चिठ्ठाकारी
चिठ्ठाकारी
  • 80 Posts
  • 397 Comments

(प्रवासी कर्मचारियों की कहानी)

एक घोंसला पक्षी का बसेरा होता है। उस घोंसले को बनाने के लिए पंक्षी दूर-दराज से पते इकठ्ठे करता है। मेहनत से एक घोंसला बनाता है लेकिन अकसर खाने की तलाश में उसे घोंसला बदलते रहना पड़ता है। जरूरतों के अनुसार ढ़लना ही प्रकृति का सबसे बड़ा और कड़ा नियम है। एक पंक्षी चाहे कितने ही घोंसले क्यूं ना बदल ले लेकिन जिसमें पेड़ की डाली पर उसका जन्म हुआ हो वह उसे कभी नहीं भूलता, वह अगर उस जगह ना आ सके तो कोई बात नहीं लेकिन अगर वह उस पेड के पास आता है तो उसे दिमाग में अपनी जमीन से जुड़ने का अहसास जरूर होता है।

बात की पक्षियों की नहीं इंसानों की भी है। खानाबदोश तो इंसान बहुत पहले से था लेकिन खाने की तलाश में अपनी जमीन से अलग होने की शुरुआत मनुष्य ने हाल के सालों में ही की है। मनुष्य ने हाल के सालों में ही अपनी जमीन छोड़ कहीं और घर बसाने के इरादे के बारें में सोचा है। बात काफी गहरी है जिसके लिए एक गहरी सोच का होना बेहद जरूरी है। आज भारत के महानगरों में रहने वाली आबादी का लगभग 80% हिस्सा दूसरे राज्यों से आता है। यह वह जनसंख्या है जो दूसरे राज्यों से अपना आसार छोड़ कर आई है। कई लोग इन्हें “प्रवासी मजदूर या कर्मचारी” कहते हैं। कई लोग आज अयह सवाल उठाते हैं कि आखिर क्यों यह प्रवासी मजदूर अपना घर-बयार छोड़ कर दूसरे राज्यों में बस जाते हैं और फिर वहीं के हो जाते हैं? क्या गांवों से आने वाली इस सूनामी को महानगरों की चकाचौंध लुभाती हैं या इंसानी नियति के अनुसार यह भी प्रकृति के अनुरूप ही बदल जाते हैं? सवाल कई हैं, जिनके जवाब भी अलग-अलग हैं? आइयें सिलसिलेवार तरीके से जानें इन जवाबों को:

  1. सुविधाओं का आदी हो जाना: आज कई लोग यूपी, बिहार, उत्तराखंड आदि जगहों को छोड़ का दिल्ली, मुबई जैसे महानगरों में बसते हैं। कई साल महानगरों में रहते हुए यह लोग महनगरों की सुविधाओं के आदि हो जाते हैं। एक छोटा-सा उदाहरण लीजिएं कि हमारे मिश्रा जी के बेटे का जन्म-परवरिश-पढ़ाई सब दिल्ली में हुई। लाड़ले को दादा की मौत पर गांव जाना पड़ा। लेकिन मिश्रा जी के बेटे को दादा जी के गुजर जाने से ज्यादा दर्द गांव में हुई समस्याओं की वजह से हुआ। ऐस हाल कमोबेश अधिकांश घरों का है। यूपी, बिहार के प्रवासियों की बात करें तो जो सुविधाएं उन्हें दिल्ली में मिलता है वह खुलापन और सुविधाएं वहां नहीं  मिलती।
  2. आखिर क्या करने जाएं उजड़े चमन में: खेत की कीमत सिर्फ तब तक होती है जब तक वह अच्छी फसल दे। जिसमें जमीन में कुछ उगता न  हो या जहां उगाने के लिए अधिक महेनत करनी पड़े, वह बहुत बेकार मानी जाती है। यूपी, बिहार की सुविधाओं को दिल्ली, नोएडा से मिलाना बेहद बेमानी होगा।
  3. सिर्फ आदतों का बदल जाना या आदि हो जाना है मुख्य कारण: अगर बिहार या यूपी से आने वाले प्रवासियों की बात की जाए तो जो सुकून और सुरक्षा उन्हें महानगरों में मिलती है वह कहीं और नहीं। जिस इंसान ने बाहुबलियों को इलेक्श्न में गुंडागर्दी देखी हो जिन्होंने दुल्हे की जबरदस्ती का आलम देखा हो वह आखिर क्यूं उसी गली में वापस जाना चाहेंगे।       (आगे अगले अंक में )

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh