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15 अगस्त बीत गया. किसी ने इस दिन अपना समय टीवी के सामने बैठ कर बिताया तो किसी ने मेरी तरह पतंगवालों पर मेहरबानी करके. पैसे को किस तरह फूंकना है अगर जानना है तो हम भारतीयों से सीखें. खैर 15 अगस्त यानी आजादी का दिन. इस विषय पर जागरण जंक्शन पर भी कई अनोखे ब्लॉग मौजूद थे कुछ नकारात्मक तो कुछ “दुनियां भरोसे पर जिंदा है” की तर्ज पर थे. मैंने भी सोचा कि कुछ लिखूं, होगा वही घिसा-पिटा पर सोच रहा हूं थोडा तड़का लगा ही दूं.
63 साल हो गए. काफी कुछ पाया और बहुत कुछ खो दिया. अंग्रेजों से आजादी मिल गई और अंग्रेजी के अधीन हो गए. कल तक दूसरों ने नोचा आज अपनी इज्जत उतार रहे हैं.
राम राज तो दूर रावण के युग में भी ऐसा नही होता होगा. देश जब आजाद हुआ तो अलग हुआ पाकिस्तान, आज आजाद हैं तो कई अन्य राज्य बन रहे हैं. कल तक नेताओं को भगवान मानते थे, आज भी वही भगवान हैं लेकिन इस भगवान की पूजा करने में सब कुछ चढ़ाना पड़ता है धन, तन और मन सब.
कश्मीर, जिसके लिए हमारे सैनिकों ने अपनी जान की बाजी लगाई थी और वह भी एक बार नहीं कई बार जान गंवा बचा कर लाए थे इस स्वर्ग को, वही कश्मीर आज हिंसा की धधकती आग में झोंका जा चुका है. कभी नेता थे जो गरीबों को अपनी माला पहना देते थे और आज नेता हैं जो जनता के पैसों की माला पहन रहे हैं.
देश के आज तक के इतिहास में कई प्रधानमंत्री हुए जिन्होंने कई ऐतिहासिक कदम उठाए तो वहीं आज हमारे पास एक ऐसा प्रधानमंत्री है जो शायद चलने के लिए भी किसी की इजाजत लेता होगा. कल के नेताओं ने इज्जत बचाई थी आज के नेता इज्जत उतारते हैं.
दोषी कौन
आखिर सबको क्यों लगता है कि दोषी राजनीति है. क्या राजनीति ही इस प्रदूषण की वजह है? क्यों यह देश जितना आगे जाता है अंदर ही अंदर उतना ही पीछे खिसक जाता है. दोस्तों, इस राजनीति ने तो हमको लूटा ही है लेकिन इसको ऐसा करने का लाइसेंस भी तो हम ही देते हैं. बाकी सब जो कर रहे हैं वह गलत है या सही मालूम नहीं. बहुत पहले भगत सिंह मे अंग्रेजी हुकूमत के कानों में अपनी बात डालने के लिए पार्लियामेंट में विस्फोट का सहारा लिया था, आज नक्सलवादी इसी रास्ते को अख्तियार कर रहे हैं. लेकिन हां, नक्सलवाद को किसी भी तरह क्रांति से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता क्योंकि यह तो आतंकवाद का एक रुप है. आज जो कश्मीर की आम जनता कर रही है सबको गलत लग रहा होगा, पर एक शांत शहर इतना आक्रोशित कैसे हो गया. आज कश्मीर की जनता को सबसे ज्यादा आर्थिक पैकेज मिलता है लेकिन सरकार से जनता तक कुछ नहीं मिल रहा. बदलाव के इस दौर में भी आधुनिकीकरण के लिए कश्मीर रो रहा है. आतंकवाद ने इसकी खूबसूरती को गहरा दाग लगा दिया है तो अलगाववादियों ने अंदर ही अंदर इसे खोखला बना दिया.
इस देश की एक तस्वीर स्कूल में भी दिखती है जहां पहले अध्यापक को गुरु और भगवान माना जाता था, वह गुरु शिष्यों को शिक्षा के साथ जीवन का मूल्य भी सिखाते थे लेकिन आज हालात बदल गए. गुरु ही भक्षक बन गए कहीं बाल मन को तड़प दी तो कहीं बच्चों को शिक्षा के बदले मौत दे डाली और हवस के कुछ भूखों ने तो गुरु की महिमा को तार-तार कर के ही रख दिया. विद्या का भवन आज अनंत पाखंड का स्थान बन गया है, पैसा दो एडमिशन लो, पैसा दो पास हो जाओ. पैसा आज भगवान से ऊपर है.
लेकिन फिर सवाल वही क्या ताली एक हाथ से बजी है,नहीं इस ताली में हमने भी हाथ लगाया है. अपने परिवार में शुरु से बच्चों में संस्कार न डालना, बच्चों के सामने गाली-गलौज, उनपर मानसिक दबाव डालना आदि. परिवार बच्चों का पहला स्कूल होता है, जहां वह संस्कार सीखता है. आज जब परिवार ही नहीं रहे तो संस्कार कहां से? बच्चें स्कूल से ही हवस और फैशन की गिरफ्त में चले जाते हैं परिणाम जब तक संभलते हैं तब तक सब खत्म हो चुका होता है.
आज प्रतियोगिता इतनी बढ़ गई है कि सबको आगे जाने की पड़ी है कोई पीछे नहीं रहना चाहता. लेकिन इस रेस में देश पीछे जा रहा है. हमारी संस्कृति और आदर्श ही हमारी पहचान थे, इन्हें मत खोओ .
काश जब अगली बार स्वंत्रता दिवस आए तो हम कह सकें कि हम आजाद हैं, आजाद हैं अपनों की गुलामी से, आजाद हैं भ्रष्टाचार से, आजाद हैं पश्चिमी सभ्यता के चुंगल से.
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