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क्या आप खुशियों को गोद लेना चाहेंगे?

चिठ्ठाकारी
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11 मई 2014.. एक तारीख लेकिन ट्विटर और फेसबुक के इस प्रगतिशील तकनीकी युग के लिए “मदर्स डे” था. हर साल की तरह इस साल भी इस दिन की खूब धूमधाम रही। यूं तो अगर भावनाओं और अहमियत के तौर पर देखें तो मदर्स डे के कोई मायने नहीं है। जिस मां ने हमें जन्म दिया, जिसने जीवन का पहला पाठ, पहला शब्द सिखाया उसके प्रति मात्र एक दिन अपना प्यार, सम्मान जाहिर कर हम उसके कर्ज से नहीं उबर सकते। मां की ममता की सीमाओं को जानना, पहचानना नामुमकिन है। भगवान पर यकीन करने वाले जानते हैं कि खुद विष्णु जी ने मां की इस ममता को पाने के लिए ही धरती पर मनुष्य रूप में जन्म लिया था, अल्लाह को मानने वाले भी जानते हैं कि खुदा ने मां के कदमों में जन्नत बख्शी है।


ममत्व का भाव एक नारी को परिपूर्ण करता है। यह एक ऐसा भाव है जो नारी की कोमलता, प्रेम, ममता, त्याग आदि सभी लक्षणों की परीक्षा लेने के साथ उन्हें जगाता भी है। लेकिन आज के युग में ऐसी कई नारियां है जो इस सुख से वंचित हैं। बांझपन हमारे देश में भी एक बड़ी समस्या है। मेडिकल साइंस की तमाम कोशिशों, आईवीएफ, सेरोगेसी जैसी तमाम कोशिशों के बाद भी कई लोग औलाद के प्रेम के लिए तरसते, रोते हैं।


एक शादीशुदा नारी के लिए बांझपन ना सिर्फ मानसिक और शारीरिक समस्या होती हैं बल्कि यह कई बार सामाजिक स्तर पर भी परेशान करती हैं। अगर आप आज भी देहात या किसी बडे शहर की तंग गलियों में जाएं तो जिस औरत को बच्चा ना हो उसे बांझ और अछूत माना जाता है।


किसी अन्य दर्द को शब्दों में बयान करना थोड़ा मुश्किल होता है लेकिन औलाद ना होने का दर्द शायद शब्दों में समेटा ही नही जा सकता। यह दर्द उस खुले जख्म की तरह है जो हर पल खुरदता रहता है। टीवी पर, मोहल्ले में, बस, ट्रेन, मेट्रो कहीं भी किसी भी समय बच्चे को देख कर दिल में उस खालीपन का अहसास होता है जो आपकी आंखों को आंसुओं से भर जाता है।


कहने को तो आज दुनिया में इस दर्द को खत्म करने के हजार उपाय हैं। आईवीएफ, सेरोगेसी आदि लेकिन तब क्या करें जब तमाम जतन के बाद गोद सूनी रहे। इसका जवाब है खुशियों को गोद लेना यानि बच्चा गोद लेना।


किसी और के बच्चे को अपने बच्चे की पालना और वह भी कलयुग के इस समय में बहुत मुश्किल है। दिल को समझाओ, परिवार को समझाओ, समाज को समझाओ, कानून को समझाओ तब कहीं जाकर यह खुशी आपको मिलेगी। लेकिन अगर आप थोड़ा गहराई में उतर कर देखें तो उतना मुश्किल भी नहीं है। थोड़ी सी मेहनत आपको जिंदगी की खुशियां दिला सकती है।


अक्सर लोग कहते हैं कि गोद लिए बच्चे के साथ भावनात्मक जुड़ाव नहीं होता। स्वभाविक है, नहीं होता। लेकिन कई चीजें पैदा करनी पड़ती हैं। एक अलग घर के बच्चे को अपना बनाने से पहले अपने आप को समझाना जरूरी है कि आखिर आपके लिए क्या महत्वपूर्ण है? ऐसे मामलों में जो सबसे बड़ी परेशानी नजर आती है वह है पति-पत्नी में से किसी का राजी ना होना। अगर पति मान जाएं तो पत्नी को परेशानियां होती हैं और पत्नी मान जाएं तो मियां मुंह फूला लेते हैं। यह समस्या कई बार अनितिक संबंधों को भी बढ़ावा देती है। यूं तो इस विषय में कोई रिपोर्ट या रिसर्च नहीं है लेकिन अकसर यह देखने में आता है कि शादीशुदा औरतों के विवाहोत्तर संबंधों में बच्चा ना होने और पति की नपुंसकता पर शक आदि जैसे विषय शामिल होते हैं। चूंकि भारतीय समाज पुरुष प्रधान है इसलिए स्त्रियों के तमाम टेस्ट करा लिए जाते हैं लेकिन 100 में से 70 मर्द आज भी पोटेंसी या उत्पादकता का टेस्ट कराने से डरते हैं। यह समाज का कड़वा लेकिन कहीं ना कहीं सच्चा सत्य है।


और अगर कई बार पति-पत्नी बच्चा गोद लेने को राजी हो जाए तो परिवार या समाज में से कोई अवश्य बीच में अडंगा खड़ा करता है। अब बच्चा गोद लेने में कानूने दाव-पेंच क्या है? यह अगले ब्लॉग का हिस्सा होगा। क्यूंकि यह भी एक अहम जानकारी है। मैं जानता हूं बिना इस जानकारी के यह ब्लॉग 10% भी पूरा नहीं है लेकिन इस ब्लॉग में मैं सिर्फ दांपत्य जीवन में बच्चे की अहमियत पर प्रकाश डालना चाहता हूं।

जिंदगी के आखिरी पलों में अकेला रहने से अच्छा है किसी को गोद लें। उसकी जिंदगी बनाएं और उसे अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाएं। जिंदगी बहुत मौके देती है बस उस मौके को अपनाना आना चाहिएं। गोद लेने की प्रकिया उतनी भी जटिल नहीं है जितना भारतीय परिवार समझते हैं। जरूरत है तो सही समय पर फैसला लेने की। 35 साल के बाद जब स्त्रियों के बच्चा नहीं होता तो कहीं ना कहीं ममता की वह नदी सूख तो नहीं पर कम हो जाती है और भारत में अमूमन पति-पत्नी 35-36 के बाद ही बच्चा गोद लेने की सोचते हैं। तब तक कहीं ना कहीं देर हो चुकी होती है।


इस ब्लॉग को और भावनात्मक बनाया जा सकता था। एक अच्छी कहानी लिखी जा सकती थी जिसे पढ़कर आंखें नम हो जाएं पर शायद मेरी नजर में वह भी मात्र उस दुख को कुरेदने का काम करती। हो सकता है यह ब्लॉग कोई ऐसा शख्स पढ़े जो खुद इस दर्द से गुजर रहा हो।


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