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कहते हैं हमें डर उसी चीज से लगता है जो हमें दिखाई दें या जिससे हमें चोट पहुंचे. लेकिन क्या यह सच है. अगर ऐसा है तो हमें भगवान और भूत से डर क्यूं लगता है. आखिर जब यह दो चीजें हमें दिखती नहीं है तो फिर क्यूं हम उनसे डरते हैं. चलिए आज बात करते हैं ऐसे ही एक डर के बारें में यह डर है भूत का. आखिर जब भूत होते नहीं है तो हमें डराते क्यूं हैं.
भूत एक ऐसी चीज है जिसे हमने शायद ही कभी देखा तो पर उसका डर तो हमारे दिल में हमेशा लगा ही रहता है. रात का अंधेरा हो या दिन की सुनसान सड़क. डर का साया हमारे साथ हमेशा रहता है. कभी-कभी रात के अंधेरे में भूत का डर इस कद्र बढ़ जाता है कि हमें बिस्तर छोड़ना भी गवारा नहीं लगता.
पर डर आखिर पैदा कहां से होता है? मुझे भी डर लगता है. रात के अंधेरे का डर मेरे मन को भी कचोटता है. लेकिन यह डर बेवजह है या वजह का यह कह पाना नामुमकिन है.
अगर इस डर का साक्ष्य देने की बात हो तो मैं कहुंगा कि क्या आपने कभी रात के अंधेरे में पायल की आवाज सुनी है?
जी, हां पायल की आवाज एक ऐसी आवाज जो शायद अधिकतर लोगों ने रात के अंधेरे में सुनी होगी. आखिर कहां से आती है वह आवाज,. मेरे घर के बाहर तो हमेशा यह पायल की आवाज आती है खासकर रात के एक बजे से चार बजे के बीच.
दूसरा साक्ष्य यह है कि रात के समय अंधेरी जगह से जाने में हमें ऐसा क्यूं लगता है कि कोई हमारे पीछे हैं? क्या यह एक वहम है?
मान लीजिए किसी का पीछे करने की बात को अगर हम वहम मान लें तो आखिर यह वहम शुरू ही क्यूं होता है. आखिर क्यूं इस वहम का साम्राज्य इतना बढ़ा है.
तीसरी और सबसे अहम पहेली है कब्रिस्तान के पास से गुजरने का अनुभव. यह एक ऐसा अनुभव है जिसे समझ पाना बेहद मुश्किल है. खुद मेरे लिए भी एक किसी जंग से कम नहीं थी. एक दोस्त के घर पार्टी में रात को देर रात तक मजे करने के बाद गलती से मैं एक श्मशान घाट से गुजरा था. उस वक्त मुझे हल्का सा डर तो था पर यह डर उस वकत और अधिक हावी हो गया जब मुझे अपनी शरीर पर कुछ महसूस हुआ. ऐसा लगा जैसे किसी ने छुआ या फिर शायद कोई मेरे पीछे थे. वो तो भला हो हनुमान चालिसा का जिसकी दो चार लाइनें तेज तेज बोलकर मैं आगे निकल गया.
वैसे ऐसे और भी कई उदाहरण हैं जैसे आखिर क्यूं जागरण या कीर्तन में आंटियों पर माता जी आती है. इसके पीछे क्या लॉजिक है. कहते हैं विज्ञान सिर्फ सबूत मांगता है पर फिर क्यूं विज्ञान भी हमेशा भूतों के अस्तित्व की बात करता है.
डर, भूत, भगवान पता नहीं हैं की नहीं पर इनके होने का आभास हमें जरूर होता है. जिंदगी की अच्छे बुरे समय में हम भगवान को नहीं भूलते. इसी तरह जिंदगी की हर राह पर डर का भी हमसे सामना होता ही रहता है. कहते हैं डर डर के जीना भी क्या जीना. पर शायद उस डर में भी कुछ मजा आता है जिसे कुछ लोग “रोमांच” का नाम देते हैं.
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