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मेरे ख्याल से जब भगवान ने इंसान को बनाया होगा तब उसने दोनों में मात्र संवेदना का ही अंतर रखा होगा लेकिन जब इंसान खुद भगवान के समक्ष खडा होने की हिम्मत करने लगा तो उसने अपने और जानवर के अंतर को भी मिटा दिया. आज का इंसान जानवर से भी बुरा हो गया है. इंसानियत और संवेदना का जैसे उससे कोसों दूर का रिश्ता हो गया हो. जब हम किसी लड़की से बात करते हैं तो कहते हैं कि हमारे सीने में दिल है, उसमें संवेदना है लेकिन वही हृदय और संवेदना तब कहां चली जाती है जब कोई आदमी सड़क पर मर रहा हो. इस बात से एक बात तो जाहिर होती है कि कभी न कभी जानवर हमारे पूर्वज रहे होंगे.
दिल्ली की सड़क पर दो दिन पहले एक 14 साल की मासूम लड़की को एक ट्रक वाले ने टक्कर मार दी और टक्कर से लड़की का पांव उस ट्रक के पहिए के नीचे आ गया. लड़की दर्द और पीड़ा से चीखती हुई बेहोश हो गई, पास ही खडा उसका पिता बेसुध हो कर आसपास गुजरने वाले वाहनों से मदद मांगने लगा, कई गाड़ियां गुजरती गईं, कई रुके भी तो मात्र तमाशा देख चलते बने, लोगों की बेरुखी का अंजाम यह हुआ कि लड़की ने घटनास्थल पर ही दम तोड़ दिया. एक 14 साल की मासूम लडकी, जिसका सपना था डॉक्टर बनने का, वह लोगों की बेरुखी से टूट गया. उसका जख्मी पिता गिरता-पड़ता वाहनों को रोकता रहा लेकिन संवेदनहीन लोगों के दिल में जरा भी दया या दर्द न हुआ. कुछ देर बाद एक भले इंसान ने इंसानियत दिखाते हुए लड़की को अस्पताल पहुंचाया लेकिन तब तक वह मर चुकी थी.
यह मात्र एक घटना नहीं है बल्कि सोचने की वजह ये है कि क्या वाकई हम इंसान कहलाने के काबिल हैं. और हैं तो किस हक से. हम में से हर कोई भगवान से कभी-कभी ऐसा मौका जरुर मांगता है जब वह अपनी इंसानियत दिखा सके, भगवान वह मौका देता भी है लेकिन इस कठिन घड़ी पर अच्छे-अच्छों के हौसले जवाब दे जाते हैं और कई बार तो इंसानियत भी भुला दी जाती है. ऐसा सिर्फ सड़क हादसों में नहीं होता बल्कि कई बार लोग सड़को पर गिरे गरीब को तो पूछते भी नहीं. एक बेहोश पड़े गरीब को सभी यही सोचते हैं कि इसने शराब पी होगी तभी टल्ली होकर पड़ा है साला.
कितनी ही बार रेड लाइट पर हमने देखा है कि एक मां अपने बेहद छोटे बच्चे को छोड़ सड़क पर काम कर रही होती है, इस खतरें से अनजान कि न जाने कब वह बच्चा सड़क पर उतर जाए और गाड़ी वाले उसे उसकी सजा दे जाएं. रास्ते पर दिल दहलाने वाले ऐसे हादसे मैंने तो आज तक नहीं देखा है लेकिन उनके बारे में सोचकर ही दिल इतना सिहर जाता है कि बस उसके बारे में लिखे बिना आत्मा मानती ही नहीं .
भगवान न करें ऐसा कुछ हमारे साथ हो जाए तो क्या हम किसी से मदद की उम्मीद कर सकते हैं भला. ऐसा वाकया पहली बार नहीं है, कुछ दिन पहले की ही बात है दिल्ली के दरियागंज इलाके में एक स्त्री बच्चे को जन्म देने के पश्चात मर गई लेकिन उसकी मदद किसी ने नहीं की. उसके पास ही उसका नवजात बच्चा रोता रहा लेकिन घंटो बाद वहां से गुजरने वाले एक लड़की की ही इंसानियत जागी.
ऐसा नहीं है कि हमारे अंदर इंसानियत मर गई है बल्कि सच तो यह है कि आज हम मतलबी और स्वार्थी हो गए हैं. आज सोसायटी में अगल बगल रहने वालों को एक-दूसरे की खबर नहीं रहती तो भला दूसरों से उनका क्या वास्ता रहेगा.
जो हो रहा है वह ऐसे ही होता रहेगा उसको बदला तो नहीं जा सकता लेकिन मेरा यह प्रयास है कि इस ब्लॉग से कुछ लोगों को तो जागरुक कर ही दूं जो मेरे ब्लॉग को पढ़ते हैं. भगवान न करें ऐसे किसी हादसे का सामना मेरे दोस्तों या जानने वालों का हो तो वह दूसरों की मदद कर सकें. यार किसी से ना सही तो कम से कम उस भगवान से तो डरो. आपका एक कदम अगर किसी को जिन्दगी दे सके तो उससे बड़ा दूसरा कोई पुण्य का काम क्या होगा? उम्मीद है मेरे शब्दों का कुछ तो प्रभाव जरुर हो और यह लेख भी मैं उन सभी लोगों को समर्पित करता हूं जो ऐसे किसी सड़क हादसे या इंसानियत की बेरुखी के शिकार हुए हों.
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