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यूँ तो इस समय देश में विरोध की राजनीती अपने चरम पर है . चाहे वो राज्य सरकारों की बात हो या केंद्र सरकार की . उत्तर प्रदेश के सरकार की अगर बात करें तो लैपटॉप वितरण से लेकर बेरोजगारी भत्ते के वितरण का विरोध शुरू से ही रहा है और अब तो ये सब इतिहास के पन्नो में समां गयी लगती है . केंद्र की भाजपा सरकार ने आते ही जनता को सीधे लाभ पहुचाने वाली कई योजनाओं की शुरुआत की लेकिन विरोध के तीव्र गूँज के बीच उसका लाभ कहीं दब सा गया . ऐसा लगने लगा की विरोधी पार्टियों के पास अब विरोध का कोई मुद्दा ही नहीं बचा तभी तो छोटी छोटी बातों के लिए भी जवाबदेही प्रधान मंत्री से मांगी जाती है . यहाँ तक की अगर ट्रेन दुर्घटना होती है तो भी जवाब प्रधानमंत्री से माँगा जाता है . ऐसा लगता है की देश की दूसरी बड़ी पार्टी कांग्रेस के पास तो सिवाय प्रधान मंत्री को कोसने के कुछ नहीं बचा है. राहुल गांधी जी उन्हें सूटबूट की राजनीत करने वाले बताते है तो सोनिआ गांधी बड़े ब्यपारियों का हितैषी . पी चिदंबरम जी ने मोदी जी को आर यस यस का नुमाइंदा बताया और ये भी कह डाला की वे उसके गुप्त एजेंडे पर काम कर रहे है . उन्होंने प्रधान मंत्री पर एक अति केंद्रित सरकार चलाने का आरोप भी मढ़ दिया . उनका विचार है की मोदी जी गुजरात के मुख्यमंत्री की तरह देश को चला रहे है . इसके विपरीत बिना किसी आलोचना पर ध्यान दिए प्रधान मंत्री का कहना है की वे महसूस करते है देश तभी प्रगति करेगा जब सभी मुख्य मंत्री और लोग एक टीम की तरह काम करेंगे . उन्होंने कहा की प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री एक टीम है . यही एक तरीका है जिससे हम देश को सफलतापूर्वक विकसित कर सकते है . हालाँकि इस बात से कोई मुकर नहीं सकता की सरकार का मुखिया होने के नाते देश से जुड़े किसी भी मुद्दे पर उनकी जवाबदेही बनती है , पर पार्टी के किसी सदस्य या मंत्री द्वारा व्यक्त कोई विचार या कोई आपत्तिजनक स्टेटमेंट के लिए प्रधान मंत्री से जवाबदेही मांगना किसी भी देश के संसद और संविधान के लिए शुभ संकेत नहीं होता . योजनाये बनती है , कानून बनते है , उनमे समय के साथ साथ परिवर्तन भी होते रहते है , कुछ योजनाये सफल भी होती है और कुछ विफल भी , कुछ कानूनो में परिवर्तन होता है और कुछ वापस भी लिए जाते है , ये तो हर सरकारों के साथ होता रहा है , लेकिन इन सबके लिए सीधे तौर पर प्रधान मंत्री को जिम्मेदार ठहराने की जो परंपरा इस समय चल पड़ी है , ये बिलकुल ही ठीक नहीं लगता . हालाँकि इस बात से विपक्षी पार्टिया भी अंदर ही अंदर सहमत होंगी की कुछ तो नया हो रहा है देश में , तभी तो चर्चा है अपने देश में ही नहीं वरन विदेशों में भी .
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