बच्चों का मानसिक विकास और व्यक्तित्व निर्माण इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करते हुए स्वयं को अभिव्यक्त करने दिया जाये। उनपर ऐसा कोई नियंत्रण न हो जो मन मस्तिष्क पर बोझ बनकर उनके सहज विकास में बाधक बने।
रंगमंच बच्चों को संवेदनशील एवं संवेगात्मक सम्पूर्णता प्रदान करने वाला अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। इसके माध्यम से वे सामाजिक जीवन के आदर्शों तथा उसकी जटिलताओं से अधिक सघनता के साथ साक्षात्कार कर सकते है। रंगमंच बच्चों के अवलोकन क्षमता को विकसित करता है। अभिव्यक्तिगत संवेग से मुक्ति पाने तथा सामाजिक समायोजन की राह में बढ़ने के लिए रंगमंच बच्चों को एक विशिष्ट आधार प्रदान करता है। शायद इसीलिए बाल रंगमंच को एक सृजनात्मक गतिविधि के रूप में प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
अत्यंत ही दुःख की बात है कि हमारे देश में बाल रंगमंच के लिए न तो उपयुक्त वातावरण है और न ही उसे विद्यालयों , रंगशाला एवं सांस्कृतिक संस्थाओं द्वारा सही रूप दिया जा रहा है। कभी कभार बाल रंगमंच की चर्चा या गतिविधि हो जाना भारत जैसे विशाल देश के लिए पर्याप्त नहीं माना जा सकता। विद्यालयों में अध्ययन कर रहे विशाल विद्यार्थी वर्ग की तो यह बड़ी त्रासदी है कि वहां उन्हें बाल रंगमंच का प्रारंभिक ज्ञान नहीं कराया जाता जिससे वे आगे चलकर रंगमंचीय गतिविधियों से जुड़ सके।
विद्यालयों में गतिविधि के नाम पर आयोजित किये जाने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रम बाल रंगमंच को विकास की दिशा देने में कोई योगदान नहीं कर रहे है। बाल रंगमंच को विकसित करने के लिए जरुरी है कि पहले अच्छे बाल नाटक लिखे जाएँ। मंचीय सीमाओं को ध्यान में रखकर लिखे गए नाटक , जिनमे बाल मनोविज्ञान का ध्यान रखा गया हो तथा बच्चों की अभिव्यक्ति सामर्थ्य को उजागर कर सके. बाल रंगमंच के लिए उपयुक्त हो सकते है. बच्चों की रूचि के कथानक , हास्य व्यंग्य से भरपूर संवाद तथा उनकी जिज्ञासा को बनाये रखने वाली घटनाये बाल रंगमंच के प्रति बच्चों में आकर्षण पैदा करेंगी।
बाल नाटकों के विषय तथा संवाद की भाषा सरल होनी चाहिए। वे बच्चों की सहज प्रकृति के अनुकूल हो. बाल कथानक जीवन के यथार्थ को प्रस्तुत करने वाला अवश्य हो। बाल कथानक जीवन के यथार्थ को प्रस्तुत करने वाला अवश्य हो। छोटी पात्र योजना , हसाने और गुदगुदाने वाले लोक प्रचलित प्रसंग एवं संवाद बच्चों की मानसिक भूख बुझाने वाली रोचक घटनाएं नाटक को बनाने में सहयोग करेगी। इन बातों को ध्यान में रखकर लिखे गए बाल नाटक बच्चों की सुलभ जिज्ञासाओं को शांत करने में समर्थ होंगे। बाल रंगमंच के लिए लिखा गया नाटक ऐसा हो जिसमे बाल कलाकारों के भाग लेने की गुंजाईश ज्यादा हो। उनकी शक्ति पर अधिक और अनुचित जोर न पड़े और वे अपनी भूमिकाएं आत्मविश्वास के साथ निभा सके।
बाल रंगमंच को विकास की सही दिशा में अग्रसर करने के लिए जरुरी है कि बच्चों में नाट्य कर्म और नाट्य शिल्प के सही संस्कार डालें जाए। उन्हें रचनाकार के कथ्य को नाटक के माध्यम से दर्शकों तक सम्प्रेषित करने की आवश्यकता एवं रीति से परिचित कराया जाए।
वर्तमान स्तिथि में बाल रंगमंच को विकसित करने में लेखकों , रंगकर्मियों , रंग संस्थाओं और सरकार का एक सामान दायित्व है कि वे इस दिशा में अपनी ओर से प्रयास करें क्योंकि यह कार्य किसी एक की कोशिश से पूर्ण नहीं होगा।
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