Menu
blogid : 20725 postid : 1315204

शिष्ट होनी चाहिए नेताओं की भाषा

NAV VICHAR
NAV VICHAR
  • 157 Posts
  • 184 Comments

अपने देश के पांच राज्यों में और सबसे महत्वपूर्ण उत्तर प्रदेश में विधान सभा का चुनाव भी संपन्न हो रहे है। चुनाव का मौसम आते ही विभिन्न राजनैतिक दल मतदाताओं को रिझाने के लिए तरह तरह के हथकंडे अपनाने लगते है। आरोप प्रत्यारोप , वायदे और इरादों के बीच तरह तरह के नए और आकर्षक जुमले भी सुनने को मिलते है। सबसे बड़ा राज्य होने के नाते उत्तर प्रदेश पूरे देश का ध्यान आकर्षित करने में सफल हो रहा है क्योंकि यहाँ अखिलेश यादव है , शिवपाल यादव है और भाजपा के कई दिग्गज है और कांग्रेस के युवराज भी है। यहाँ इस समय चुनावी सभाओं में नित नए जुमले और नारे मतदाताओं को अपनी ओर खींच रहे है। अपने प्रचार के दौरान जहाँ एक ओर भाजपा “इस बार बीजेपी ,एक बार बीजेपी “, “जंगल राज पर पूर्ण विराम ,बीजेपी का पहला काम “, न भ्रष्टाचार और व्यभिचार अबकी बार भाजपा सरकार” जैसे जुमले इस्तेमाल कर रही है , वही दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन से “यू पी को ये साथ पसंद है “, यू पी में काम बोलता है” , जैसे नारों से पलटवार कर रही है। रोचक बात ये है की ये नारे यहाँ के गली , कूंचो में बड़े , बूढ़ों और बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय हो रहे है। बच्चे तो खेल के दौरान एक दूसरे को चिढ़ाने के लिए भी इनका प्रयोग कर रहे है .
लेकिन कभी कभी ऐसा भी लगता है की सियासत के बीच ये राजनैतिक दल शब्दों और वाक्यों के प्रयोग करने सम्बन्धी अपनी मर्यादाएं भी लांघ जा रहे है। ऐसा एक बार नहीं वरन बार बार हो रहा है जो किसी भी तरह से स्वस्थ लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर बदनुमा दाग के सामान है . पिछले दिनों कांग्रेस की तरफ से प्रधानमंत्री के लिए “हवाबाज ” शब्द इस्तेमाल किया गया तो बीजेपी की ओर से कांग्रेस को “हवालाबाज” की संज्ञा दी गयी। ये बात विचार करने की है कि आखिर इन जुमलों या शब्दों के इस्तेमाल का फायदा कितना होता है। यद्यपि ऐसे नारों या जुमलों को इस्तेमाल करने की परम्परा नई नहीं है वरन वर्षों पुरानी है। पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के समय में भी ऐसे नारे इस्तेमाल होते थे ,उस समय एक चर्चित नारा कांग्रेस ने दिया था ,”इंदिरा इज इंडिया ,इंडिया इज इंदिरा “. . वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उन्ही के नाम पर “जबतक सूरज चाँद रहेगा ,इंदिरा तेरा नाम रहेगा ” के नारे के साथ कांग्रेस ऐतिहासिक रूप से सत्ता में आई थी। इसके बाद के चुनावों में भी जुमलों का प्रयोग रुका नहीं ,”अबकी बारी अटल बिहारी “, तेरह दिन , तेरह महीने और तेरह साल ” का नारा भाजपा ने दिया। कांग्रेस ने भी स्वयं को आम जनता से जोड़ने के प्रयास में “कांग्रेस का हाथ ,आम आदमी के साथ ” का नारा देकर जनता को आकर्षित करने की कोशिश की। पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने “हर हर मोदी ,घर घर मोदी ” का नारा देकर सत्ता हासिल करने की कोशिश की। पूरे विश्वास के साथ ये तो नहीं कहा जा सकता कि ऐसे नारों का फायदा पार्टियो को कितना मिलता है लेकिन ये जरूर है की इनसे मतदाताओं का कुछ प्रतिशत प्रभावित अवश्य होता है और निश्चित रूप कुछ हद तक राजनैतिक दल जनता को अपने वायदों और इरादों का सब्जबाग दिखाने और उनकी आँखों में सपने भरने में सफल हो जाते है भले ही उनके दिखाए सपने चुनाव के तुरंत बाद ही टूट जाते है . लेकिन इस बात में दो राय नहीं की इन दलों को जुमलों और नारों के इस्तेमाल में भाषा और शब्दों की मर्यादा का ध्यान तो रखना ही चाहिए.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh