Menu
blogid : 20725 postid : 1384653

हम कितने स्वतंत्र!

NAV VICHAR
NAV VICHAR
  • 157 Posts
  • 184 Comments

देश की स्वतंत्रता की ७3वी सालगिरह हम मना रहे है लेकिन क्या हमने कभी गौर किया है की वास्तव में क्या हम आजाद है। कार्यालयों और स्कूलों, मुहल्लों में आजादी के नारे लगाते है पर क्या हम अपनी तुच्छ मानसिकताओं की बेड़ियों को काट पाएं है। स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद भी जाति पाति, गरीब अमीर , औरत मर्द के बीच फर्क को समाप्त कर पाए है। आज भी हम बाल विवाह, कन्यायों के प्रति भेदभाव, नारी को सिर्फ भोग और विलासता की वस्तु समझने जैसी सोच से स्वतंत्र नहीं हो पाए है। लगभग रोज ही समाचार पत्रों और मीडिया में महिलाओं के प्रति अत्याचार, व्यभिचार की खबरें इस बात की साक्षी है कि हमें असली मायनो में आजादी नहीं मिली है। इसके अतिरिक्त हम अपने अधिकारों और हक़ के नाम पर सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं, दफ्तरों , सड़कों और सार्वजानिक स्थानों पर गंदगी फैलाते है। टैक्स चुराते है और जिस काम के लिए हमें वेतन मिलता है उसी काम के लिए कुछ अतरिक्त पाने की कोशिश करते है। क्या इन सब से आजाद नहीं हो सकते हम।

केवल झंडा फहराकर , नारे लगाने का मतलब ही आज़ादी नहीं है। इसके लिए हमें समाज और देश के प्रति अपने कर्तव्यों और दायित्यों को ध्यान में रखकर काम करना होगा। अपने में मन से द्वेष , ईर्ष्या और दुर्भावना को दूर करना होगा। गौर किया जाये तो इस समय अपने देश में दो विचार धाराएं अपना सर उठा रही है वो है देश भक्ति और राष्ट्रवाद यद्यपि दोनों ही भारत का भला चाहते है पर देश भक्त सभी भारतियों की सफलता और समृद्धि चाहते है जबकि राष्ट्रवादी देश की ताकत बढ़ाना चाहते है और इसके लिए वे कुछ भी करने को तैयार है भले ही वो देश के लिए अच्छा हो या बुरा लेकिन ऐसे में उन्हें पहले ये भारतीय होने का सही अर्थ तो समझना ही चाहिए। शायद ऐसी ही विचारधारा के कारन अनेक समस्याएं देश के विकास और छवि को विश्व में धूमिल कर रही है। एक रिसर्च के अनुसार अपने देश में महिलाओं के प्रति अत्याचार और दुष्कर्म की घटनाओं में पिछले कुछ वर्षों में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है जहाँ वर्ष २०१३ में इसका आकड़ा लगभग तीस हज़ार था, इसके दो वर्षो में इसकी संख्या बढ़कर चालीस हज़ार से भी ज्यादा हो गया। ये तो वे आकड़ें है जो कही रिपोर्ट किये गए , हजारों की संख्या में तो महिलाये लोक लाज के भय से किसी को कुछ बताती ही नहीं है। न जाने कब इस अँधेरे को उजाले का साथ मिलेगा । पिछले कुछ महीनो में दलित उत्पीडन की घटनाओं में भी तेजी से वृद्धि हुई है।

आखिर हम कब तक ऊंच नीच की बेड़ियों में जकड़े रहेंगे , क्या देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राण गवाने वाले शहीदों ने यही सपना देखा था । आज समानता और सद्भावना कही गुम सी हो गयी है। राजनैतिक पार्टियां सिर्फ अपने वोट की राजनीती कर समाज को बाटने का काम कर रही है। स्वतंत्रता के इतने वर्षों के बाद भी समाज में इतना असंतुलन देश के विकास के लिए ठीक नहीं है। ऐसी स्थिति में परिवर्तन तभी संभव है जब हम अपने मन और आचरण में शुद्धता लाएंगे भले ही इसके लिए हमें कठोर नियमो का पालन ही क्यों न करना पड़े।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh