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इसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश का दुर्भाग्य ही कहेंगे जहाँ एक पूर्ण बहुमत वाली राष्ट्रीय सरकार संख्या बल में कमजोर विपक्ष के कारण देश के विकास से जुड़े विभिन्न बिलों और योजनाओं को सदन में पास नहीं करा पा रही है . देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस तो जैसे मुद्दा विहीन ही हो गयी है . उसके रणनीत कारों के सोचने समझने की शक्ति भी जैसे कुंद हो गयी है। अभी कुछ दिनों पहले तक संविधान और न्यायपालिका का सम्मान करने की सीख देने वाली कांग्रेस पार्टी संसद के शीत सत्र के संचालन में जिस तरह से व्यवधान उत्पन्न कर रही है और न्यायपालिका के सम्मान में गुस्ताखी कर रही है उससे तो यही लगने लगा है की शायद कांग्रेस में मुद्दों और मुद्दों के प्रति जनता की भावना की समझ भी कम होती जा रही है . नेशनल हेराल्ड मामले को कांग्रेस ने जिस तरह से राजनीति से प्रेरित बताया है वो उसके थिंक टैंक की नाकामी का प्रमाण लगता है . ऐसा प्रतीत होता है की कांग्रेस के नेता अपनी प्लानिंग एयर कूल्ड कमरों में बैठकर बनाते है और उनका आम जनता के जीवन और उनकी समस्याओं से कोई लेना देना नहीं होता . नेशनल हेराल्ड के मांमले में फिलवक्त यही लग रहा है . बजाय इसके की पार्टी इस विषय में सोनिया गांधी और राहुल गांधी की संलिप्तता की स्तिथि स्पष्ट करे , वो इसे राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से किया गया काम बताने में जुटे है और उनका हर नेता इसी बात को सिद्ध करने में लगा है . उचित तो ये होता की यदि कोई दोष नहीं है तो वे इसका सबूत पेश करें , संसद में इस मुद्दे पर बहस करें। पर शीत सत्र के प्रारम्भ से ही वे बहस से भागते नज़र आ रहे है और संसद का बहिष्कार कर है. क्या देश की जनता ये सब देख नहीं रही . शायद यही कारण है की देश की जनता का ऐसी पार्टियों से मोह भंग होता जा रहा है. देश के विकास से जुड़े अनेक बिल , संशोधन सदन में पारित होने के लिए लंबित है , इतना ही नहीं चेन्नई की बाढ़ , विभिन्न प्रदेशों में सूखे जैसी समस्याएं है जिन पर चर्चा की जरुरत है, पर कांग्रेस जनहित से जुड़े ऐसे मुद्दों की बजाय संसद का बहिष्कार करके महत्वपूर्ण समय और धन दोनों की बर्बादी कर रही है. नॉवल हेराल्ड के मामले में कोर्ट में दिल्ली हाई कोर्ट में उनके उपस्तिथ होने को कहा है और इसके विरोध में उनकी अपील को खारिज कर दिया , ये भी स्पष्ट किया गया कि इस मामले में आपराधिक तत्व भी है। इसी को आधार बनाकर कांग्रेस ने दोनों सदनों का बहिष्कार जरी रखा है । क्या कांग्रेस के लोगों को इतनी बुनियादी बात भी समझ नहीं आ रही है कि न्यायपालिका के आदेशों के लिए संसद को कैसे बाधित किया जा सकता है। कांग्रेश के थिंक टैंक की नाकामी एक तरफ तो इस बात में रही की संसद को बाधित करके उन्होंने संसद की गरिमा को नुक्सान पहुचाया और वही दूसरी तरफ संसद की कार्यवाही में बाधा डालने का कोई ठोस औचित्य न सिद्ध करके जनता की नज़र में कांग्रेस पार्टी की छवि और भी खराब की । जरा सोचिये कि यदि इसके उलट स्तिथि होती तो जनता की सहानभूति सोनिया और राहुल के साथ होती । यदि सोनिया गांधी ये कहती है की वे इंदिरा गांधी की बहु है और किसी से डरती नहीं हूं तो तो उन्हें उनकी तरह सोच तो रखनी चाहिए । इंदिरा गांधी ने किस तरह अदालत का सम्मान किया और जनता की सहानभूति अर्जित की और सत्ता में पुनः वापसी की थी । लेकिन ऐसा लगता है की कांग्रेस के शीर्ष स्तर पर आम जनजीवन से कटे लोग उसके नीति नियंता बने बैठे है जो कांग्रेस पार्टी को जनता से दूर ही लेती जा रही है ।
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