आज के तेजी से दौड़ती भागती जिंदगी में हर व्यक्ति की एक अति महत्वपूर्ण आवश्यकता बन गया है मोबाइल। बड़े ही नहीं वरन बच्चे भी अब मोबाइल के दीवाने हो चुके है, यद्यपि इसमें कोई बुराई नहीं है। लेकिन आज के बच्चों का मोबाइल और सोशल साइट्स के प्रति बढ़ता आकर्षण चिंता का विषय है। हालाँकि देखा जाये तो मोबाइल ने बच्चों को तेजी से बदलते परिवेश से सामंजस्य बनाये रखने में बहुत सहायता की है , पर बच्चों का इसके प्रति बढ़ती संलिप्तता चिंताजनक है। बच्चों के लिए सोशल मीडिया जहाँ एक सकारात्मक भूमिका अदा कर रहा है वही दूसरी तरफ कुछ बच्चे इसका दुरुपयोग कर गलत रास्ते भी अपना रहे है।
आज के बच्चे उम्र से पहले ही परिपक़्व हो जा रहे है। आजकल बच्चे सोशल साइट्स पर प्रसिद्धि पाने के लिए , अधिक से अधिक लाइक्स और कमेंट पाने के लिए तरह तरह के फोटो और अन्य चीजे पोस्ट करते है , जो कभी कभी तो आपत्ति जनक भी होती है। और तो और अलग तरीके से फोटो खींचने के चक्कर में जान तक गवां देते है।
सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर हमेशा ऑनलाइन रहने से बच्चों के कोमल मन पर एक अनावश्यक दबाव सदा ही बना रहता है। वर्तमान स्तिथि ये है कि घंटो ऑनलाइन रहने और गैरजरूरी साइट्स देखते रहने के कारण उनकी आँखे और सर दोनों दर्द करते है। पहले स्कूलों में खेल कूद पर पूरा ध्यान होता था पर अब बच्चों पर कोर्स पूरा करने का इतना दबाव रहता है की खेलों के प्रति उनका कोई आकर्षण ही नहीं होता। बच्चों के स्वास्थ्य के लिए ऐसा कोई कार्यक्रम स्कूलों में भी नहीं होता। स्कूल के बाद घर के कमरों तक ही उनका जीवन सीमित हो जाता है और फिर वे मोबाइल में ही खोये रहते है। इस हद तक वे डूब जाते है कि परिवार और समाज से अलग एकाकी जीवन जीने लगते है , जो किसी भी परिस्थति में उनके सर्वांगीड़ विकास के लिए ठीक नहीं है। वे अपने माँ बाप और परिवार से दूर होते जाते है। परिवार का आपसी सामंजस्य समाप्त होता जाता है। उनका ऐसा व्यवहार उनके व्यक्तित्व , सोच ,आचार विचार और करियर पर बुरा प्रभाव डाल रहा है। कभी कभी तो इसके तनाव के कारण वे डिप्रेशन का शिकार हो जाते है और उनका ध्यान पढाई पूरी तरह भटक जाता है।
यद्यपि इस बात की सत्यता से इंकार नहीं किया जा सकता कि आज के समय में सोशल मीडिया के आने से संचार के क्षेत्र में एक नयी क्रांति आयी है। बच्चों और बड़ों को भी अपना ज्ञान और जानकारी बढ़ाने , अपनी प्रतिभा दिखाने , रचनात्मकता बढ़ाने का बढ़िया मौका मिल रहा है लेकिन इसके बावजूद सोशल मीडिया का बहुत ज्यादा इस्तेमाल बच्चों के लिए हानिकारक है। अधिक देर तक मोबाइल देखना और सुनना आँख और कान दोनों के लिए नुकसानदायक होता है। इसीलिए सोशल मीडिया का प्रयोग बच्चों को सीमित मात्रा में और जरुरत भर ही करना चाहिए। जिस तरह हर सिक्के के दो पहलु होते है वैसे ही मोबाइल और सोशल नेटवर्क्स के भी दो पहलू है , एक सकारात्मक है तो दूसरा नकारात्मक। यदि इसका इस्तेमाल सोच समझकर सही दिशा में किया जाये बच्चों के साथ साथ बड़ों के लिए भी लाभदायक होगा।
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