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हम सब है सड़क दुर्घटनाओं के जिम्मेदार

NAV VICHAR
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सड़क सुरक्षा सप्ताह और सड़क सुरक्षा माह तो हमारे देश और प्रदेश में मनाया जाता है पर ऐसा लगता है की इसे महज एक रस्म समझ कर ही इसका निर्वाह हम कर देते है . वर्तमान सर्दियों के मौसम में कोहरे और ठण्ड के कारन देश के कई हिस्सों में सड़को पर वाहनों की भिड़ंत और दुर्घटनाये हो रही है जिसमे बड़ी संख्या में लोगो को जान और माल का नुक्सान हो रहा है . इस बात में कोई संदेह नहीं की सड़को पर चलने के नियमो के पालन न करने के कारण दुर्घटनाओ की संख्या में भारी इजाफा हुआ है . यद्यपि भारतीय सडकों पर अब ट्रैफिक नियमो के पालन न करने वालों पर शिकंजा कसा गया है , अब वे सस्ते में नहीं छूटेंगे . नियमो को सख्त बनाने के लिए सरकार द्वारा संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी गयी है . साथ ही अब नाबालिगों द्वारा ड्राइविंग करने से होने वाली दुर्घटनाओ को रोकने की गरज से भी केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम में संशोधन किया गया है , इसके अंतर्गत अब लाइसेंस न होने की स्तिथि में चालान काटने की बजाय वाहन स्वामी के विरुद्ध कार्यवाही की जायेगी क्योंकि बच्चों के अभिभावक ही कहीं न कहीं इसके लिए प्रत्यक्ष या अपत्यक्ष रूप से जिम्मेदार है . लागू किये जा रहे नए संशोधन में दस हजार रूपये तक का जुरमाने का प्रावधान होगा, हेलमेट न लगाने पर दो हज़ार का दंड लगेगा . साथ ही इसके अंतर्गत तुरन्त गिरफ्तारी हो सकेगी . यद्यपि इसके तहत कई और भी सख्त प्रावधान है जिन पर अभी अमल नहीं किया जा रहा पर भविष्य में इन पर भी विचार किया जा सकता है . अभीतक इसमें केवल १२०० रुपये के जुर्मान लगाया जाता था . निश्चित ही नए नियम से अब अभिभावक नाबालिगों को वाहन देने से बचेंगे और दुर्घटनाओं में आशातीत कमी आएगी .
आपको शायद ये जानकर हैरानी हो की विश्व के विकसित देशो की तुलना में अपने देश में लगभग तीन गुना ज्यादा सड़क दुर्घटनाएं होती है। एक अध्ययन के अनुसार पूरे विश्व में सड़क दुर्घटनाओं से होने वाली मौतों का 10 प्रतिशत अकेले भारत में होती है। भारत जैसे विशाल देश में सड़क के नियमो, कायदे , कानूनो की प्रभावशीलता के लिए निश्चय ही ये चुनौती की बात है . इसका सीधा मतलब है की हमारे यहाँ सड़क पर चलने के नियमो के प्रति जागरूकता की कितनी कमी है। शायद आपको जानकर आश्चर्य हो की दुनिया के अन्य देशों के मुकाबले अपने देश में प्रतिवर्ष लगभग पांच लाख सड़क दुर्घटनाएं होती है जिनमे डेढ़ लाख लोग असमय काल के गाल में समां जाते है . ये आकड़ें तो उनके है जिन्हे कहीं रिकार्ड किया गया है , हजारों की संख्या तो उनकी होगी जो की दूर दराज के गांव में दुर्घटना के शिकार हुए होंगे लेकिन उनकी गिनती इन अध्ययनों में शामिल नहीं है ।
केंद्रीय मोटर वाहन अधिनियम में संशोधनों की दरकार बहुत पहले से ही थी पर नाबालिगों की ड्राइविंग से बढ़ी दुर्घनाओं ने इसे प्रभावी बनाने के लिए मजबूर किया . एक विश्लेषण के अनुसार यदि पिछले साल के आंकड़ों पर गौर करे तो लगभग पांच हजार के आस पास ऐसी सड़क दुर्घटनाएं हुई जिसका कारण नाबालिगों की ड्राइविंग थी . पिछले कुछ वर्षों में यदि देखा जाये तो बच्चों और किशोरों में स्कूटी , बाइक चलाने शौक बेहद तेजी से बढ़ा है और बहुत से अभिभावक या तो बच्चों के दबाव में या समाज में अपना स्टेटस बढ़ाने के चक़्कर में बच्चों को नई गाड़ियां खरीद कर दे देते है . स्कूल टाइम पर या कोचिंग के छूटने के समय सडकों पर देखे तो ये बच्चे रेस करते नज़र आ जायेंगे . ये खुद तो खतरे में पड़ते ही है , तेज ड्राइविंग से ये सड़क चलते अन्य लोगों को भी खतरे में डालते है . उनका ये शौक अंततः किसी न किसी परिवार को जानलेवा नुक्सान पहुचाता है .
नए अधिनियम से निश्चित रूप से अब अभिभावक सतर्क होंगे , वे इसके दुष्परिणामों के बारे में सोचेंगे और वे अपने नाबालिग बच्चे को वाहन चलाने देने से पहले उसके प्रशिक्षण और उचित लाइसेंस के बारे में अवश्य ही ध्यान देंगे जिसका प्रभाव दिनों दिन बढ़ रही सड़क दुर्घटनाओ की संख्या पर भी अवश्य ही दिखेगा . इस अधिनियम का लागू होना परिवार , समाज और सरकार सभी के लिए अच्छा साबित होगा .

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