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कौए ने खुजलायी पांखें कई दिनों के बाद

sach mano to
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2 नवंबर यानी शनिवार की सुबह पटना खासा बिहार की धरती पर एक नयी सुबह की
होती भोर। पड़ती एक रंजित नींव। घने कोहरे में समाता, पटा पूरा आसमान।
इतिहास खुद को बदलने, पलटने को भरसक तैयार। सांत्वना, धैर्य, आश्वासन,
ढ़ांढस, भरोसा, दुलार के बीच कागज की चंद बेशकीमती टुकड़ों के होते छह
टुकड़े। कुछ तक स्वयं नहीं पहुंच पाने की मलाल लिए संदेश। मिलावटी
ग्लेसरीन में मौसम की दगाबाजी का बहाना भी। उसी को कोसने के बीच से उभरते
नरेंद्र मोदी। जाहिरी तौर पर बिल्कुल, साफ उन्मादी शक्ल, सूरत में। अर्से
बाद पाटलिपुत्र में जीत की चस्का की उम्मीद पाले, लगाए। वहीं काम हो जाने
की कसक लिए कि जो चाहा, बोया वह पककर पूरी फसल अब कट चुकी। खेतों में खून
के छिलके, कहीं अंकुरित सरीखे दाने गवाही देने भर कि रंज मात्र सिर्फ टीस
बची है। उसे भी चूसने, भुनाने की हड़बड़ी लिए मोदी। पूरे लाव-लश्कर के
साथ। सांत्वना देते, न हों दुखी, हम हैं साथ।
चमक उठी घर भर की आंखें कई दिनों के बाद, कौए ने खुजलायी पांखें कई दिनों
के बाद। नौकरी देने की मांग करते परिजन। चॉपर पर सवार मोदी, हाथ हिलाते।
अभिवादन स्वीकारते। जयघोष पर आत्ममुग्ध होते। सीना चिचोड़ते। खुशी कहीं
बाहर न छलक पड़े, उसे छुपाते। गम की आंसू को ढ़ोते उसे चेहरे पर लटकाए।
ठीक वैसे ही गोया हुंकार रैली में पहली बार मोदी को किसी मंच ने पसीना
पोछते, पानी पीते देख लिया हो। सत्य स्वयं घायल हुआ, गयी अहिंसा चूक,
जहां-जहां दगने लगी राजनीति की बंदूक।
पाश्र्व संगीत उभरता है…। आओ भाई बैजू आओ, आओ भाई अशरफ आओ मिलजुल करके
छुरा चलाओ। आपस में कटकर मर जाओ…। बस, ऐसा ही कुछ माहौल, खटास बिहार
में बना, रिस कर चले गए दोबारा आए मोदी। दस करोड़ की प्रायोजित हुंकार
रैली में तीस लाख का दिखावा और जोड़कर। बाहरी हैडलिंग-पैडलिंग चार्ज अलग।
अब इस रिसाव की बातें सवाल दर सवाल खड़े करेंगे। इसमें तपेगा, जलेगा,
बहेगा, पिसेगा, बहाएगा रक्त, मरेगा वही एक आदमी जो बेकसूर, निर्दोष है।
इसकी मजहबी खून उस दीवार से कमजोर, ताकती राजनीति से इतर महज आम है जो
सिर्फ इंसान है। जिसके मरने के बाद अपनों की खामोशी लिए परिवार, यह
जानते, समझते कि लाल, मेरे बेटे की जान की कीमत बस, सिर्फ 5 लाख। हाथों
में चेक लिए मां यह समझने को कतई तैयार नहीं, क्या यही कागज मेरे बेटे
हैं जो बेकसूर बेमौत मरा भाजपा की हुंकार रैली में। देह चिथड़े-चिथड़े
उड़ गए नि:शब्द। खानाबदोश हो गया पूरा मंजर बस मौन शांति के स्वर कानों
में बजबजाते रह गए शेष? क्या यही है मोदी की सियासत। विकृत होती राजनीतिक
शौक, मंशा, मजबूरी। बिना लाश बिछाए सत्ता तक नहीं पहुंचने की जिद। यह
कहते, हे नालंदावासियों तुम्हारे एक राजेश ने जान गंवायी कभी दिक्कत में
रहो तो मुझे याद कर लेना। हे बेगूसराय के लोगों, एक बिदेश्वरी चौधरी की
जान गयी है ना, धैर्य रखो तुम्हारे धैर्य का अध्ययन पूरी दुनिया की
यूनिवर्सिटी करेगी। हे सिमरही सुपौल के भरत रजक, कैमूर निसाजा के विकास,
गोपालगंज के मुन्ना, पटना के राजनारायण को जानने वाले तुम सब घर से बाहर
मत निकलना। अपनी दुकानों को बंद रखना। कोई भी ग्रामीण बाहर नजर नहीं आनी
चाहिए। एनएच 55 को भी तीन घंटे तक बंद रखना ताकि कहीं कोई आग मेरे आसपास
ना फटके। राहुल ने कहा, मेरी दादी, मेरे पापा को मार दिया अब उन्हें मार
देंगे पर मैं,आइएम के हिस्ट लिस्ट का मोदी अभी नहीं मरना चाहता। मैं
गुजरात से लड़ाका लेकर इस बार बिहार आया हूं। सुन नहीं रहे हमारे मित्र
को, बाहरी कचरे पर झाड़ू मरवा रहे हैं। कहीं देश के भावी प्रधानमंत्री को
भला कोई झाड़ू दिखाता है। अरे मेरे मित्र भूल गए इसी बिहार की धरती पर
मेरे मित्र को किसी ने कचरा मुख्यमंत्री समझकर चप्पल फेंका था। और एक मैं
हूं…प्रधानमंत्री बनने से पहले ही अपना रिमोट रामदेव को दे चुका हूं और
ये कांग्रेस के लोग मुझे पर्याप्त सुरक्षा तक देने को तैयार नहीं। हे
द्वारकाधीश कृष्ण के नुमाइंदों, यादवी वंशजों के योद्धाओं मैं मोदी, वचन
देता हूं बिहार से गरीबी मिटा दूंगा। देखते नहीं हमें देश और इस बिहार की
कितनी चिंता है? पटेल के नाम पर हमने अहमदाबाद जाकर कांग्रेस तो दूर संघ
और आडवाणी तक को नहीं बख्शा। आपके लिए, इन बिहारवासियों के लिए भले हमारी
इतिहास बोध कमजोर हो गयी हो लेकिन हमने अहमदाबाद के नरोदा पाटिया के दंगा
पीडि़तों से मिलना मुनासिब नहीं समझा लेकिन बिहार में अस्थि बहाने, रैली
में मरे कार्यकर्ताओं के बहाने आप तक पहुंचा हूं क्योंकि मैं जहां
पहुंचता हूं उस रास्ते से सोनिया गांधी भी नहीं गुजरती। वो भी रास्ता बदल
लेती हैं। और तो और रायपुर के डोंगरगढ़ से राजनांदगांव पहुंच जाती हैं।
और ये हमारे मित्र पहले जेपी फिर बीजेपी को छोड़ उसी कांग्रेस की गोद में
बैठना पसंद कर रहे जिसके सांसद एन पीतांबर कुरूप अभिनेत्री श्वेता मेनन
से इश्कबाजी का मजा भी लेते हैं,उसे छेड़ते भी हैं और हाथ जोड़कर माफी भी
मांग लेते हैं। जो कांग्रेस चुनाव से पूर्व ही ओपीनियन पोल से विचलित हो
जाती हो, जिसके स्वयं के मंत्री जयराम मोदी पर निशाना साधते खुद राहुल को
नहीं बख्श रहे हों उस कांग्रेस से क्या उम्मीद वो मुझे पर्याप्त सुरक्षा
देने को राजी होगा। जाकर देखा, कैसे जुहू के समुद्रतट पर लाखों लोग
टीशर्ट और टोपी लगा मोदीमय बन छठ पूजा की। सिर्फ बौखलाने से काम नहीं
चलेगा। ये 127 साल पुरानी पार्टी चुनाव से पहले ही हार की चिंता में अपने
कार्यकर्ताओं को लाठी-डंडे से पीटने की बात करती है। उसके नौजवान नेता का
मन पिटने को मचल रहा है। देखा नहीं, कैसे सरपंचों ने हवा निकाल दी। रैली
तक नहीं कर सके शहजादे। और ये सपा के लोग दंगा की बात करते हैं। अरे जिस
यूपी में उस युवा सीएम के मुजफ्फरनगर के फुगना में सांप्रदायिक हिंसा की
शिकार व शिविर में परिजनों के साथ रह रहीं नवयुवती के साथ सामूहिक
दुष्कर्म होता हो वहां की जनता भला द्वारकाधीश को नहीं याद करे तो क्या
मुलायम देह को सिख रेजीमेंट के जवानों के हाथों सौंप दे जो उत्तरकाशी तो
पर्वतारोहण का कोर्स करने पहुंचे लेकिन दो लड़कियों को हवस में लिपटा गए।
यकीन आंख मूंदकर किया था जिन पे जानकर, वही हमारी राह में खड़े हैं सीना
तान कर। भाइयों, बिहार में ये आइएम को बुलाया किसने मेरे मित्र ने। पहले
पाकिस्तान गए अब उसके लोगों को खुश कर रहे हैं। इससे क्या होगा? मोदी को
रोक लेंगे खुशफहमी…जब अक्सर गुम, मासूम बनी रहने वाली ममता बनर्जी से
पहले वाली दीदी लता अचानक बोल पड़ सकती हैं। राजनीति में 6 साल रहीं।
राज्यसभा में बैठी। कभी कुछ नहीं बोली मगर जब जबान खुली तो दइया रे
दइया…अमेरिका भी वीजा देने पर विचार कर रहा है। अचानक ये क्या हो गया?
मोदी को पीएम प्रत्याशी बनाने के फैसले को पहले ऐतिहासिक भूल बताने वाले
अचरज जो अब इसे ऐतिहासिक फैसला कैसे मानने, बताने लगे। ये कांग्रेस के
लोग कहते हैं, हमारे प्रधानमंत्री जिस दिन भाषण दें पूरा टीवी चैनल उसी
को दिखाओ। मनीष तिवारी ने तो धमकी तक दे दी। ये कैसा लोकतंत्र, भई हम तो
चुनाव बाद आडवाणी को आगे करने की तैयारी में हैं। जीतेंगे मोदी के नाम पर
मगर कम सीटें पड़ते ही लालकृष्ण को आगे कर सांप्रदायिक दाग से चकाचक, धुल
जाएगी हमारी भाजपा। इसी का नाम मोदी है। हमने गठबंधन को मजबूत करने के
लिए बिहार की धरती पर अब तक पांव नहीं रखी लेकिन अब सोने वाले जाग गए
हैं। तभी तो पटेल को नेहरू की धमकी और सांप्रदायिक कहने की बात उठा गए
बुजुर्ग और देखती रह गयी हताश कांग्रेस। अंत में, रेशमा नहीं रहीं। लंबी
जुदाई…।

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