Menu
blogid : 4435 postid : 135

तिरंगा आपके हैं कौन

sach mano to
sach mano to
  • 119 Posts
  • 1950 Comments

पहले शादी करो। फिर रिसेप्शन करो। फिर बच्चा पैदा करो और बाद में शादी करने की बात को अफवाह में उड़ा दो। रिसेप्शन के नाम पर विवाद खड़ा कर दो और बच्चा पैदा करने की बात पर खुलकर साफ कह दो- मैं गर्भवती नहीं हूं। अब आइपीएल की राजस्थान रायल्स की मालकिन मां नहीं बनना चाहती। बधाई संदेशों से वो थक गयी हैं। मगर लोग कहां मानने वाले। मां बनने का न सिर्फ इंतजार ही कर रहे हैं बल्कि यहां तक कह रहे हैं कि शिल्पा-राज कुंद्रा बच्चे के लिये कमरा भी सजा चुकी है। शिल्पा इसे अफवाह मान रही है। अब इसमें भला गलती भी तो लोगों की है। वो गर्भवती नहीं होना चाहती। अभी उनकी टीम आईपीएल में व्यस्त है और लोग उन्हें गर्भवती मान रहे हैं। अरे यह तो उनका निजी मामला है लेकिन जो पूरे देश का मसला है जिससे हर शख्स बावस्त है। जिस घटना ने पूरे देश को शर्मसार कर दिया। जिसके लिये कठोर कानून बने हैं। उस बारे में क्या ख्याल है आपका। स्टार मुक्केबाज जो शादी से चंद रोज पहले अराफुरा खेलों में कांस्य पदक जीत के लौटे हैं। पूरे देश का मान बढ़ाया है दो दिन बाद ही पूरे देश को अपमानित कर दिया। रिसेप्शन कार्ड पर अशोक स्तंभ का खुलेआम न सिर्फ प्रयोग किया बल्कि उसे छोटा मसला भी मान रहे हैं। एक तो यह देश और ऊपर से इसके संविधान का भला हो कि जिस तिरंगे की आन-बान व शान के लिये लोग सरहदों पर शहीद हो जाते हैं सीने पर गोलियां खा लेते हैं। जिस तिरंगे पर नापाक हाथ बढऩे से उसे तोड़ देने की लोग कसमें खाते हैं उसी तिरंगे से बाद में शव को लपेट दिया जाता है। जिस तिरंगे को लहराकर हम अपनी जीत-विजयी होने की गाथा लिखते, गढ़ते हैं उसी तिरंगे को हम लाश में लपेट देते हैं। इतना ही नहीं किसी राजनेता के मरने के बाद हम उस तिरंगे को झुका भी देते हैं। भला यह तिरंगा झुके और हम चैन से बैठे रहें यह न जाने क्या दर्शाने की सोच है। आदमी किसी भी सूरत में तिरंगा से बड़ा नहीं हो सकता। चाहे वह जंग में खेत हुये हमारे जवान हों या खेतों में लहलहाते पौधे उगाये किसान। जय जवान-जय किसान हमारे इस विश्व विजयी तिरंगे से कीमती नहीं लेकिन लोगों ने बार-बार इसे अपमानित करने की कुत्सित करते, रचते रहे हैं। विजेंद्र सिंह ने अशोक स्तंभ रिसेप्शन कार्ड पर छाप कर खुद अपमानित महसूस कर रहे होंगे ऐसा भी नहीं है। अगर ऐसा होता तो अब तक वे सार्वजनिक रूप से देश के सामने क्षमा याचना कर चुके होते लेकिन ऐसा नहीं कर उन्होंने दूसरी गलती की है। पूरे देश को शर्म से झुका दिया है। ये वहीं विजेंद्र हैं जिन्होंने देश को कई मौके पर गौरवान्वित किया, पदक दिलाया है। बिपाशा बसु का आफर अभी भी लोगों को याद ही है कि वह स्वर्ण जीतने पर डेटिंग पर जाने के लिये विजेंद्र को न्योत चुकी है। हाल ही में विश्व कप के दौरान ठीक सेमीफाइनल मैच में भारत-पाक जंग शुरू होने से पहले आईसीसी की एक महिला अधिकारी ने तिरंगे का अपमान किया। पैरों से कुचला। देश के प्रति हमारी प्रतिबद्धता का खून होता रहा। क्या तिरंगे का अपमान कोई भी अमन पंसद राष्ट्र भक्त देख सकता है। जानों की कुर्बानी देकर हमने देश की पहचान उसके अस्तित्व को बचाने का संकल्प दोहराते रहे हैं। हमने अभी-अभी आतंकवाद मिटाने की शपथ ली है लेकिन उसपर अमल करना नहीं सीखा है। पिछले बीस सालों में तीन दर्जन से अधिक आतंकी हमले और उनमें 1600 से अधिक लोगों की मौत पर हम उन्हें तिरंगे में लपेट चुके हैं लेकिन उस घटना के जिम्मेदार एक भी आतंकी को सजा हमने नहीं दी है। चाहे 1993 का मुंबई बम धमाका हो या 2001 का संसद पर हमला। 13 साल बाद 2006 में टाडा कोर्ट का एक फैसला आया भी तो मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया। कसाब आज भी हमारे बीच खड़ा मुस्कुरा रहा है। हर 15 अगस्त को आजादी के नाम पर तिरंगे का अपमान बखूबी करना हम सीख ही चुके हैं। जिस देश का सांसद, विधायक हर दिन जेल जा रहा हो। भ्रष्टाचार के दल-दल में हम जीने की आदत डाल चुके हों। पाकिस्तान के साथ 71 की जंग में फील्ड मार्शल मानेक शॉ के साथ कुछ उच्च अधिकारियों की गलती उजागर हो रही हो। वहां राष्ट्रीयता, कर्तव्य, समर्पण की सीख देने वाला तिरंगा क्या सुरक्षित, मर्यादित रह सकेगा। अशोक स्तंभ की लाज हम नहीं रख पा रहे हैं। देश की विरासत, मर्यादा को सुरक्षित, संरक्षित रखने की जगह हम अपमान की घूंट पीने की आदी हो चुके हैं। इतना ही नहीं, जिस देश का वासी ही बार-बार घोषित-अघोषित तौर पर तिरस्कार भाव से तिरंगे को देखने की गलती दोहरा, बार-बार कर रहे हों उस देश की हालत याचक से ऊपर उठ सकेगा कहना मुश्किल। सवाल है कि जन-गण-मन गाने वाले भारतीय लोगों के विचारों में मनोविकार आया कहां से। कहीं यह मनोदशा पूरे देश की एकता को खंडित करने की साजिश सरीखे तो नहीं। आज, हर तरफ लोगों की मंशा देश को कमजोर करने की दिखती है। खेल मंत्रालय के अधिकारियों की लालफीताशाही के कारण दिग्गज निशानेबाज जसपाल राणा अगले साल लंदन में होने वाले ओलपिंक खेलों में भाग लेने से वंचित हो रहे हैं। हम भ्रष्टाचार से लडऩे की सोच रहे हैं लेकिन हमारा आचरण भ्रष्ट हो गया है। जो मातृभूमि की हिफाजत नहीं कर सकता। जो तिरंगे, अशोक स्तंभ को सुरक्षित, मर्यादित नहीं रख सकता वो भला देश के लिये पदक जीत के भी आये तो क्या फायदा। क्या फर्क पड़ता है।

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh