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शिक्षा की स्लैट में यौन, कुंठा, ब्लैकमेल

sach mano to
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हिस्सेदारी, आत्मनिर्भरता, बदकिस्मती, असुरक्षा, सामाजिक नुकसान, हताशा, तंग माली हालत, जिम्मेदारी, अवसर, तरक्की के नजरिए, धोखा, अमर्यादित आचरण, व्यवहार, बईमानी का दूसरा नाम आज औरत है । एक ऐसी स्त्री, जो बचपन से साल दर साल उस परिवेश माहौल में कखहरा, अक्षर ज्ञान लेती मिलती है जहां गुरु का केरेक्टर वेरिफिकेशन हो रहा है। ठीक वहीं से निकलकर औद्योगिक युग में कदम उतारती, रखती, दुत्कार सहती, लोलुप निशब्द आकारों के ईद-गिर्द शारीरिक लोच, संकोच एक विवशता लिए वही लडकी जन्म से पहले कोख में घुटती नफसों को तोडती उसी से बचती ,पलती, बढती, निर्दयी हालातों से मुंहमोडती, जूझती, खुद को संगठित, विस्तारित, व्यवस्थित करती, गढती उस दहलीज तक ताकत, हिम्मत, सामथ्र्य से बढती, लडती पहुंचती है जहां पहले से गुपचुप, संकीर्ण रास्तों के सामने पर्दे के पीछे लहकदार दरवाजों की कुंडी खुद व खुद बंद हो जाती है। एक मौन स्वर अनायास, यकायक, परंपरावादी मनोदशा, जकडन से मुक्त होने की हडबडाहट लिए भोग का अंश, इस्तेमाल कर ली जाती है। जहां दुश्मन को चूमना हराम है मगर उसके बिस्तर पर सिलवटें बदलना, जिस्म की गरमी में सजना, पिघलना, पसीने में नहाना, तरबतर नसों की सुरसुरी में बहकना, भींजना एक शालीन बहू की निशानी।
फलसफा, गुत्थम-गुत्थी की रस्म अदा करती साफ-सुथरी जमीं पर लेटी, सुखद मखमली एहसास लिए एक नायिका योर लव की प्रमोशन के लिए वह सब कुछ कहने, सुनने, करने को तैयार है जिसे सुनने, समझने को देश का एक कोना, तिहाई भी हया से तैयार नहीं. कारण, उसकी बुनावट बाजारीकरण से ज्यादा दैहिक जरूरत, उसकी इच्छा, आवेग के रहस्य को उफान, मौज देता परोसता ज्यादा दिख रहा. संगीत सुनने व वर्कआउट के बाद नहाती एक बाला शारीरिक लोच के लिए पानी व योग के अलावे कहीं खुद रजामंदी की सौदा करती वहीं लुटने पर हाय-तौबा मचाती, बहसवाद में समय जाया करती ज्यादा मिल रही।
हालिया, मुंबई में शूटिंग के दौरान एक अभिनेत्री का यौन शोषण, उसके बाद का अनर्गल प्रलाप, दलीलों के बीच रोम-रोम से उगती स्तब्ध चीत्कार, जुबान खोलती, अपने हिस्से की लज्जा को शांत करती. हरजाई मर्दों के किस्से सुनाती नायिका फूटती है तब उसके शब्द सुनिए, जब भी वह कैमरे के सामने गरम होती दृश्यों को सहेजती,कपडें को हौले से सरकाती, पूर्वाभ्यास में जुटती एक सिहरन पैदा करने वाली अश्लील नजरें, आंखों से दुष्कर्म की परिभाषा की बोली लगाती, लकीरों के बीच कतार में पुरूषों की हदबंदी उसे घेरती, स्पर्श का आभास लिए सामने होता। वह ठिठकती. खुद को रोकती, टोकती, रूकती, आगे बढती उसी पुरूषों के सामने सार्वजनिक मंच पर साझा होती जहां एक महिलावादी मुख्यमंत्री के सामने नायक एक महिला कर्मी को उसी की पुलिसिया वर्दी में गोद में उठा, नाचते, गाते तालियां बंटोरते खडा हैं. वहीं से उठता एक सिनेवादी उस अभिनेत्री को बिस्तरों में ता समय बांधता, बलात रौंदता है जब तलक देह से गंध ना निकल जाए। ठीक उसी मोड पर बिलखती जिस्म को ताकत, सहेजने की कोशिश, खुद को संभालती, टिमटिमाती लौ में स्लैट पर कुछ लिखती, यौन, कुंठा, ब्लैकमेल की रस्म निभाती. अधिकार, संपूर्णता, बेशकीमती जिंदगी जीने को आतुर आइएएस बनने का सपना, ख्वाब सजाए पहुंचती है बिहार-दरभंगा की एक युवती जो उसी दिल्ली के मुखर्जी नगर में जहां सीसैट की जलती आग के बीच अभी-अभी वहीं के एक शिक्षक के हाथों दो सालों से यौन पाठ, सबक सीख, पढने के बाद खुले में आयी, लौटी है. वहीं से निकलती एक दूसरी औरत येल विश्वविद्यालय की डिग्री लिए खुद को शिक्षित की श्रेणी में खडी करती, लगातार बयान बदलती खुद फंसती खडी है। लिहाजा, महिलाएं आज उस लोकसभा व राज्यसभा के दो पाटों, बीच में है जहां असंसदीय आचरण ,मर्यादा, भाषाओं के इस्तेमाल को परिभाषित करने का तरीका जुदा है। दलील देते पुरूष नियम पुस्तिका में फैसला पटलने की जिद करते सामने हैं. ऐेसे में दुष्कर्म आज हवा में फैलने वाली कीटाणु, बीमारी की शक्ल में देह को संक्रमित, छेद चुका है जिसे मर्द कहने में भी शर्म।

सवाल यही, पाकिस्तान की अभिनेत्री हुमैमा कुरैशी ने भारत के किसी नर को क्या चूमा इस्लाम से इस्लामाबाद तक हराम- हराम कहने लगा। भारत की किसी पुरूषों की पत्रिका में काम करना कटमुल्लों की जमात को नापसंद। ऐसे में, वहीं की वीणा मल्लिक भारतीय पुरूष प्रधान पत्रिका में न्यूड क्या हुई फरमान देश निकाला तक हो गया। वहीं सानिया पाकिस्तान की बहू बनीं। शोएब के समाज में देह, अधिकार, तमाम रिवाजों, रीतियों, रस्मों को शरीर के अंदर समाया, जिंदा किया मगर उसकी जीत पर आज भी पूरा विश्व तिरंगा ही फहराता, लहराता है। मानो, ताजपुर में एक सरकारी कालेज परिसर में घुसकर एक कुत्ते ने 11 छात्राओं को काट खाया हो. या फिर दिल्ली के एक्साइज व कस्टम के चीफ कमिश्नर्स की सालाना बैठक, सेमिनार के बहाने महिलाओं की देह टटोलने की कसरत के बीच महिलाओं के अंगों में छुपे, भरे उस नोट पर बहस, चिंतन जिसकी तस्करी में वह बच्चों संग सीमा पर मशगूल है। गोया, पुरूषों की नजर को जंचने वाली विरोध के बाद रेखा राज्यसभा पहंुच गयीं हों और राखी सावंत वहीं ताक-झांक करती मिल जाए। या फिर, पूरा देश ही गोवा की उस गांव सरीखे बनता, दिखने लगे जहां का हर शख्स एचआइवी से लड, जूझ, मर रहा है।

ऐसे में, बेंगलूर की नामी स्कूल की एक छोटी सी बच्ची उस गुरु के सामने लथपथ क्या हुई राजस्थान सचेत हो गया। वहां शिक्षकों के मोबाइल व घर का पता लेने से लेकर उनका केरेक्टर वेरिफिकेशन होने लगा है। लिहाजा आज तमाम नरवादी शक के अंदर हैं। मजबूरी यही, औरतें समलैगिकता के दायरे में बंधती, पति को छोड अलग जिंदगी लिव इन रिलेशन में जीती, वसियत में हकमारी करती शहरों से गांवों की सडकों तक अश्लील गीतों व बैंड के नगाडों पर नाचती, पुरूषवादी ताकतों, उसकी जकडन से मुक्ति, आजादी की छटपटाहट लिए उसी मंशा में शामिल होने आज जहां निकल पडी हैं पुरूषों के हाथ वहीं से फिसलने, बंधनेे लगे हैं। वर्चस्व दिखाने की होड लिए आज की नारी खुद नया स्लोलन लिखने उस लक्ष्मण रेखा, दहलीज को लांधती मिल रही हैं जहां से पीछे मुडकर देखना, आबरू को सहेजना, बेशकीमती भी, मुश्किल, जोखिम से भरा भी। बरसों चैखट की नींव से बाहर नहीं झांकने वाली एक औरत भी खुलापन की हिमायती, तरफदारी करती आज उसी एहसास, छूअन को महसूसने लगी है जो खतरनाक मोड, संकेत से कम नहीं।

मनुस्मृति से चाणक्य स्मृति तक स्त्री विमर्श जिस पगडंडी पर चला या है वह शाहरूख खान की गोद में मस्ती के दो शब्द गढ, बून लेने से नारी मुक्ति आंदोलन के तमाम दावे, नारे उसी स्लैट सी तख्ती पर यौन, कुंठा, ब्लैकमेल का मतलब नहीं बदल, तलाश सकती जहां गुस्सैल व क्रूरता को सरलीकृत व भद्र बनाने की दुस्साहस करते कोई नजर ही नहीं आ रहा।
जरा सोचिए, इक अदा, इक हिजाब, इक शोखी-नीची नजरों में क्या नहीं होता…

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