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सुन रहे हो ना राजनाथ…रो रहा हूं मैं

sach mano to
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खुद अपना अक्स हूं मैं कि किसी की सदा हूं मैं। नाम लाल कृष्ण आडवाणी मगर रो रहा हूं मैं। सुन रहे हो ना राजनाथ। मैं वही कराची का दुबला-पतला शख्स हूं जो महंगे सेवाइल रो सूट में अब भी शालीनता झलका रहा हूं। अपने अधबुझे सिगार के आधे हिस्से से कश ले रहा हूं। आज, न तो तू मेरे इरादे को हवा ही दे रहे हो ना ही कसमें वो वादे ही करने, देने को कतई तैयार। एक कट्टरवादी, गोधरा कांड के नायक की छवि वाले को तुमने गुजरात से उठाकर मेरे समकक्ष खड़ा करने की ताकत कहां से बंटोर ली राजनाथ। आखिर, उसे पीएम पद देने। खुद के बल पर 277 सीटें जीत लेने का भरोसा, वो हिम्मत। मेरे शार्गिद होकर मुझसे ही दगाबाजी। जा, आज से मैं तेरा गुजरात छोड़ रहा हूं। नहीं लड़ूंगा अब गांधीनगर सीट से। गम ये नहीं अध्यक्ष महोदय कि हमको जमाना बुरा मिला। गम ये, इस पार्टी को हम मिले। तुम्हारी हिमाकत लेकिन कतई क्षमा योग्य नहीं। मैंने दुआएं मांगी थी इस देश की कुर्सी पर ताजपोशी की खातिर। तुमने दुआओं के इशारे को सहारा देने की जरूरत नहीं समझी। फर्जी लालकिले बनवा कर मुस्लिम विरोधी छवि वाले को तिरंगा फहराने का मौका दिया। खुद बैठ कर तालियां बजाते रहे। मुझे तिल-तिल टूटते, देखते रहे। अरे, तू मेरे दिल को तसल्ली, ठिकाने क्या देते। नए बहाने बनाकर हिंदुओं को मेरे पक्ष में क्या खड़ा करते, उतारते। संघ को क्या मनाते। मेरी ख्वाहिशों, ख्वावों की बंदिशों को 2014 की मौसम के पैमाने क्या देते। तूने अपने करम की अदाएं तो नहीं ही की मेरी ओर से निगाहें तक फेर ली। अब मेरी बेटी मुझे गाइड करे ये दिन तूने दिखा दिया। मुझे मनाने के लिए सुषमा, अनंत, मुरलीधर राव व बलवीर पुंज को भेज दिया। कितनी खफा हो गई मेरी बेटी तुम्हें नहीं मालूम।
मैं नाराज हूं…। स्पष्ट, प्रतिशोध, गुस्से, चोट और अपमान के सुर में गा, रो रहा हूं और तुम एक ठेकेदार के हाथों गिरफ्त हो चुके हो। मुझे देखने की हिम्मत तुम में नहीं है। ओह…यह बात मैं देर से भांप सका। ये रेंगती गुजराती आकृति जिनकी छाया भी पूरे देश को मंजूर नहीं। वो मोदी भी जानता है कि वह कौन है? कहां से आया है? इस कदर पीएम की कुर्सी का वह भूखा क्यों है? जरा झांककर देखो राजनाथ। तुम्हारे एक फैसले ने भाजपा के पूरे झुंड में कइयों को जख्म खाए खुद को हताश, निराश, पराजित खड़ा कर दिया है। यशवंत, शत्रुघ्न, गडकरी, अरूण, वैंकेया, जसवंत, शिवराज कितनों का नाम लूं। सभी की आरोपी उंगलियां तुम्हारी ओर भयावह तरीके से लंबी होती जा रही है। लगता है वे कंक्रीट की दीवारों से भी मजबूत भाजपा की नींव को बेध देंगी लेकिन तुम तो मोदीमय बन चुके हो। कथित तौर पर जड़ हो चुकी तुम्हारी मोदी के प्रति मोह उन सभी नेताओं की अंतर आत्मा को कुरेद देगी लेकिन हे अंधे घृतराष्ट्र! तुम सबके सामने थरथरा सकते हो। अपने राजनैतिक अस्तित्व के सिकुड़ते खोल में और सिकुड़ सकते हो लेकिन मुझ जैसे शख्स जिसका राजनैतिक कैरियर स्वतंत्रत भारत जितना हो उसे रोने, एकांतवास, नकार कर छोड़ सकते हो। तुम्हें याद नहीं शायद, मैंने भाजपा को राजकाज लायक बनाया। बर्बरता के शिकार देश का प्रवक्ता बनकर एक से दूसरे सिरे तक देश नाप डाला। राजनैतिक हिंदू के त्यागे जा चुके भगवान को सभ्यता के पुरातत्व स्थलों से उठाकर मतदान केंद्रों के ऐन बाहर स्थापित किया। धर्मनिरपेक्षता के सरकारी संस्करण को तीक्ष्णतम जवाबी तर्क मुहैया कराने वाला तर्कशील राष्ट्रवादी कौन था? सिर्फ और सिर्फ मैं राजनाथ…मैं… लालकृष्ण आडवाणी। तुमने मोदी से मिलकर पहले मेरे एक-एक शिष्य को बाहर का रास्ता दिखाया। अब मुझे संन्यास को मजबूर कर रहे हो। याद रखो, कभी मैं ही चयनकर्ता था। भाजपा व संघ का एकमात्र पहरू। लेकिन तुमने मुझे ही हाशिए पर धकेल दिया। याद है ना राजनाथ मैंने भी वहीं गलती की थी जो तुम्हारा फर्जी पीएम कर रहा है।
1 सहयोगियों की सोहबत-2009 के चुनाव की तैयारी में सुनील भारती मित्तल, अनिल व मुकेश अंबानी जैसे उद्योगपतियों के साथ मिलने में मैं भी व्यस्त रहा। पार्टी सहयोगियों के साथ चुनावी रणनीति तैयार करने की बजाए देश की अर्थव्यवस्था पर चर्चा करने में लगा था। ठीक, मोदी सीमा पार को लेकर कर रहा है।
हमेशा अनिश्चय की स्थिति-जिन्ना विवाद पर सबके निशाने पर आने के बाद 2005 में पार्टी पद छोड़ भी दिया तब भी मेरी ऐसी ही दुविधापूर्ण मन:स्थिति थी ठीक बंजारा के ब्लास्ट के बाद जैसे मोदी का।
2 आंकलन में बड़ी गलती-चुनाव प्रचार के दौरान सीधा प्रधानमंत्री मनमोहन पर हमले का उलट असर हुआ। मतदाताओं को यह बात नहीं पची और भाजपा नुकसान में रहा और मेरी छवि भी खराब हुई। ठीक हर सभा में मोदी का प्रधानमंत्री और दिल्ली को ललकारना, निशाना साधने सरीखे।
3 जसवंत और जिन्ना और अब अमित साह – सबसे लंबे समय तक राजनैतिक सहयोगी रहे जसवंत सिंह के पक्ष में न उठ खड़े होने और जिन्ना की प्रशंसा में पुस्तक लिखने के आरोप में पार्टी से निष्कासित करने का वो वाकया ठीक आज जैसे हालात,अमित साह को मोदी का संरक्षण और मुस्लिम टोपी नहीं पहनने के समान।
4 अपनी चहेती तिकड़ी पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता-ठीक वैसे ही मोदी का नए टीम लेकर मैदान में उतरना घातक न बन जाए। ध्यान रखना क्योंकि तुम्हारा आज का हीरो कल का फ्लॉप भी वही कर रहा जो गलती कभी मैंने की। अटल का दौर बीता अब आडवाणी के साथ तुम्हें चुनावी समर में जाना चाहिए था लेकिन तुम कर क्या रहे हो। फर्जी लालकिले पर खुद को उपस्थित कर लेना। जगह-जगह नरेंद्र मोदी फैंडस क्लब का गठन। फिर सीडी का फटना। बंजारा का अलाप। तुमने नहीं सुनी राजनाथ। मोदी संभला भी। खुद को 2017 तक गुजरात में गुजारने का संकल्प भी दोहराया लेकिन पर्दे के पीछे तुम्हारा गेम मोदी की पीएम उम्मीदवारी मीडिया तक पहुंचाने की हड़बड़ी। जी भर कोशिश के बीच एकबारगी भाजपा को शांत, मौन, स्तब्ध कर गया। बिहार में नमो के नाम पर ऊं भाजपा स्वाहा..तुमने ही करवायी। विनाश काले विपरीत बुद्धि। नीतीश से अलग होकर कमजोरी का एहसास तुम्हें नहीं है राजनाथ क्योंकि तुम शरणागत हो चुके हो मोदी के। दिल्ली पहुंचने के बीच तमाम रास्तों पर रोड़े की परवाह तुम्हें नहीं। मेरे पास भाजपा का भावी रोड मैप था लेकिन तुम्हें इसकी जरूरत कहां? मत भूलो भाजपा के मुकद्दर की तस्वीर आज भी पुराने नेताओं की फ्रेम में ही कैद है। मैं तो संन्यास ले लूंगा लेकिन भावी पीढ़ी तुम्हें शायद ही माफ करे। कौन बनेगा करोड़पति में नरेंद्र मोदी की आवाज सुनाकर और अमिताभ के मुंह से मोदी को पंथनिरपेक्ष व सादगी का प्रतीक कहलवाने से कोई नायक बनने की नई जमीन तैयार कर लेगा? कभी मौका मिले तो प्रदेशों की ओर नजर दौड़ाना। दिल्ली, मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश में मोदी का नाम लेने को कोई तैयार नहीं। ऊपर से नेता थोपने, जमात बचाने की भूल सिर्फ और सिर्फ तुम ही कर सकते हो राजनाथ। मेरी बेटी प्रतिभा सही कहती थी, संसदीय बोर्ड की बैठक में जाना सही नहीं होगा राजनाथ अंकल भरोसे के नहीं। वैसे, तुमने रामजेठमलानी के बर्थ डे पर मोदी को मेरे पैर छूने का इशारा कर एक नए राजनीति का परिचय जरूर दे दिया। मैं मोदी के साथ सभाएं करूंगा लेकिन मत भूलना जहां-जहां लोग मुझे यह कहते सुनेंगे मोदी देश के अगले प्रधानमंत्री वहां से तुम्हारे पार्टी के दिग्गज की पैर जमीन से खिसक जाएगी। खैर, ये खत है, कभी रात की तन्हाइ में जरूर पढऩा खासकर तब जब मोदी का भय न हो और तुम कुछ सोचने की स्थिति में रहो… तुम्हारा लालकृष्ण आडवाणी।

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