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हिंदू कोड बिल और तीन तलाक बिल

pandeymanujam
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केंद्र की मोदी सरकार ने लोकसभा में एक बार फिर से तीन तलाक बिल पास कर दिया है। इस बिल के समर्थन में 303 और विरोध में 82 वोट पड़े। इस बिल को पहले भी लोकसभा से मंजूरी मिल गई थी लेकिन, राज्यसभा में पास ना होने की वजह से इस बिल की अवधि ख़त्म हो गई और दोबारा से इसे लोकसभा में पास कराना पड़ा।

अब सरकार की नजर राज्यसभा में होगी जहां इस बिल को पास कराना एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है। क्यों कि विपक्ष इस बिल को लेकर तमाम तरह की नुक्ताचीनी कर रहा है। एक खास वर्ग को अपने पाले में बनाए रखने के लिए सभी जतन किए जा रहे हैं।

जहां मोदी सरकार इस बिल को मुस्लिम महिलाओं के हक़ में बता रही है वहीं दूसरी ओर विपक्षी दलों का दावा है कि इस बिल के जरिए खास वर्ग के लोगों को परेशान किया जाएगा। कमोबेश हम सभी जानते हैं कि तीन तलाक क्या होता है और इसका दुरूपयोग कैसे होता है? सरकार का यह प्रयास है कि फौरी तीन तलाक बिल को खत्म कर दिया जाए।

बिल के प्रावधानों पर अपनी घोर आपत्ति जताते हुए कांग्रेस सहित विपक्ष सदन से वाकआउट कर दे रहा है। यह कहीं ना कहीं एक संदेश है कि नेहरू के जमाने में धार्मिक सुधारों की बात कर हिंदू कोड बिल लाने वाली कांग्रेस आज तीन तलाक जैसी कुप्रथा को मुस्लिमों पर अत्याचार बता रही है।

क्या था हिंदू कोड बिल 

हिंदू कोड बिल यानी अब सरकार कानून के जरिए यह तय करने जा रही थी कि हिंदू धर्म में क्या कुरीतियां हैं। उन्हें कैसे दूर करना है। कौन सी शादी सही है और कौन सी गलत, पुश्तैनी जायदाद में किसका कितना हिस्सा है, इन सभी सवालों के साथ हिंदू कोड बिल नेहरू की सरकार में कानून मंत्री भीमराव अंबेडकर तैयार कर चुके थे।

हिंदू परिवारों को लगने लगा कि यह बिल जबर्दस्ती उनके अंदरूनी मामलों में दखलंदाजी के लिए लाया जा रहा है। बिल का कड़ा विरोध होने लगा। इसे हिंदू धर्म के खिलाफ बताया जाने लगा।

तब नेहरू ऐसा मानते थे कि देश को आगे बढ़ना है तो हिंदू कोड बिल का पास होना जरूरी है। 1948 में संविधान सभा की बैठक में पहली बार हिंदू कोड बिल पेश किया गया और उस बैठक में अंबेडकर ने कहा कि हिंदुओं का ऐसा मानना है कि उन्हें कानून बनाने का कोई अधिकार नही है। यह सब काम स्मृतियों और पुराणों का है।

सिर्फ हिंदुओ के लिए बिल क्यों?

नेहरू की कैबिनेट से इस्तीफा देकर जनसंघ की स्थापना करने वाले  श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जिन्होंने सबसे बड़ा प्रश्न करते हुए सरकार से पूछा कि सिर्फ हिन्दुओं के लिए यह बिल क्यों? बात अगर धार्मिक और सामाजिक सुधारों के लिए हो रही है तो इसमें सभी धर्मों को शामिल किया जाना चाहिए। सरकार को कॉमन सिविल कोड बिल लाना चाहिए। अब ऐसा कहा जा रहा है कि हम सेक्युलर देश हैं, दरअसल यह एक बीमारी है, जिसे “सेकुलराईटीस” कहा जा सकता है।

जनसंघ का यह मानना था कि इस बिल के लिए देश में व्यापक स्तर पर बहस होनी चाहिए। हमें नहीं भूलना चाहिए कि तब इस हिंदू कोड बिल का  विरोध करने वालों में खुद राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी शामिल थे। उन्होंने कई चिट्ठियां नेहरू को लिखीं।मुंबई विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. सुरेन्द्र होंडाले कहते हैं कि राजेंद्र प्रसाद ने साफ कहा था कि बहुसंख्यकों पर यह बिल थोपा जा रहा है, इसके बावजूद यह बिल लाया जाता है तो वे (राजेंद्र प्रसाद) इस्तीफ़ा देने को तैयार हैं।

तमाम उठापठक के बाद भी इस हिंदू कोड बिल को मंजूरी मिली जिसके बाद यह क़ानून बन गया। अब श्यामा प्रसाद मुखर्जी के उठाए गए सवालों के जवाब देने का वक़्त है। कांग्रेस यह बताए कि कब रामनाथ कोविंद ने तीन तलाक को लेकर अपना विरोध दर्ज कराया था? तीन तलाक के मुद्दे पर क्या भाजपा में दो तरह की बातें की गईं? शायद करी भी ना जाएं।

हां, नेहरू जब हिन्दू कोड बिल लाए तो राष्ट्रपति ने भी आपत्ति जताई और कुछ कांग्रेसी सदस्यों ने भी। लेकिन अंततः बिल को 4 टुकड़ों में कर के पास करा दिया गया।अब जब हिंदू कोड जैसी मिलती जुलती स्थिति देश के सामने बनी हुई है, तब कांग्रेस को चाहिए था कि वो इस बिल का समर्थन करें और देश में सामाजिक सुधारों को किसी के खिलाफ अत्याचार बताकर उसका राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश ना करें।

 

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