Hindi Kavita
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ग़ज़ल
मैं जी रहा हूँ कि जीना बहुत ज़रूरी था
है यह भी सच कि सलीक़ा बहुत ज़रूरी था।
मैं सच का हामी हूँ सुकरात की तरह मुझको
प्याला ज़हर का पीना बहुत ज़रूरी था।
ये और बात कि काँटे थे मेरे रस्तें में
वफ़ा की राह पे चलना बहुत ज़रूरी था।
मेरे लिए तो मुहब्बत ही मेरी दौलत थी
तुम्हारे वास्ते पैसा बहुत ज़रूरी था।
खुदा का शुक्र भी लाज़िम था इसलिये ‘आरिफ’
हर एक नाम पे सजदा बहुत ज़रूरी था।
रचयिता
मोहम्मद आरिफ
(कवि, लेखक, गीतकार)
50, सिद्धवट मार्ग, मेन रोड
भैरवगढ़-उज्जैन (म.प्र.)
मो. 9009039743
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