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ब्रम्हांड के इस पृथ्वी ग्रह में उर्जा तरंगों के कारण सृष्टि और प्रलय का क्रम हमेशा चलता रहता है | प्रकृति की यह परिवर्तनशीलता ऊर्जा तरंगों की सक्रियता के कारण संभव हो सकी है | उर्जा तरंगों की गतिशीलता के कारण, हमारी पृथ्वी पर चार तत्व, पृथ्वी, जल, अग्नि एवं वायु तत्व का निर्माण हुआ । परिणाम स्वरूप, प्रकृति में सबसे विवेक मान प्राणी मनुष्य अस्तित्व में आया ।
व्यक्ति ने अपने सुविधा पूर्ण जीवन के लिए कई प्रकार के शोध और परीक्षण करके अपने जीवन को सफल बनाने की सार्थक कोशिश की है । जहां एक तरफ व्यक्ति ने जीवन को सफल बनाने के लिए विज्ञान का उपयोग किया, वहीं दूसरी तरफ व्यक्ति ने मस्तिष्क में अनावश्यक दबाव डालकर तरह तरह की बीमारियों को भी जन्म दिया । हम अपनी तीसरी श्रंखला में ऊर्जा तरंगों के सूक्ष्म शरीरों से प्रेत आत्माओं की, जो रुग्णता या बीमारी होती है, उसकी व्याख्या करेंगे ।
प्रेतात्माओं और देव शक्तियों का जन्म उनकी इच्छाओं और वासनाओं के कारण होता है । हम अपने पिछले ब्लॉकों में प्रेतात्माओं और देव शक्तियों के अस्तित्व में आने के संबंध में विस्तार से चर्चा कर चुके हैं । प्रस्तुत ब्लॉक में हम प्रेत आत्माओं का समाधान वैज्ञानिक पद्धति, अर्थात तंत्र, से कैसे किया जाता है, इसका विस्तार से वर्णन करेंगे ।
तंत्र और विज्ञान शब्दकोश में अलग-अलग मालूम पड़ते हैं । लेकिन वह एक दूसरे के पर्यायवाची और समानार्थी हैं । विज्ञान का अर्थ होता है व्यवस्थित ज्ञान, अर्थात ऐसा ज्ञान जो क्रमबद्धता, निश्चितता पर आधारित है । हमारा पूरा शरीर एक निश्चित तंत्र से कार्य करता है । इसका अर्थ हुआ, हमारा पूरा शरीर एक व्यवस्थित विधि से कार्य करता है। और हमारी शारीरिक ऊर्जा को नियंत्रित रखता है । वही अर्थ तंत्र का है, तंत्र को अंग्रेजी में सिस्टम कहते हैं जैसे
पाचन तंत्र को Digestive System कहते हैं, संचार तंत्र को Circulatory System कहते हैं, और तंत्रिका तंत्र या नाड़ी तंत्र जिसे अंग्रेजी में हम Nervous System कहते हैं। इसलिए तंत्र और विज्ञान दोनों शोध कर एक ही निष्कर्ष पर पहुंचते हैं। लेकिन विज्ञान की प्रक्रिया धीमी है और तंत्र की प्रक्रिया बहुत तीव्रगामी है। तंत्र की प्रक्रिया से निष्कर्ष पहले आते हैं और प्रक्रिया बाद में। विज्ञान में प्रमाण और तर्क पहले चाहिए और निष्कर्ष बाद में । विज्ञान और तंत्र में यही भिन्नता है।
प्रेत ग्रस्त आदमी का शरीर हमेशा अस्त-व्यस्त कार्य में लगा रहता है। अब हम प्रेतात्मा के समाधान पर चर्चा करेंगे। प्रेत ग्रस्त आदमी का उपचार दो तरीके से होता है, पहला, प्रेत आत्मा अपनी इच्छा की बात शरीर में प्रकट होकर स्वयं बताती है। यदि वासनात्मक इच्छा को तांत्रिक अनुष्ठान करके पूर्ण कर दिया जाए और प्रेत आत्मा से समुचित वचन लेकर तांत्रिक बंधन कर दिया जाए, तो इस विधि से प्रेत आत्मा पर नियंत्रण करके, शरीर को स्वस्थ किया जा सकता है। यहां यह बात भी ध्यान रखना जरूरी है कि थोड़ा अंतर यह समझ लें कि तांत्रिक अनुष्ठान और वैदिक अनुष्ठान में अंतर क्या है? वैदिक अनुष्ठान में, देव शक्तियों से प्रेत आत्माओं को हटाने की प्रार्थना की जाती है कि मेरा अमुक कार्य पूरा करें। इसमें जप, विनियोग और संबंधित देवता को समिधा आदि देकर प्रसन्न किया जाता है और देव शक्ति की इच्छा पर छोड़ दिया जाता है। वैदिक अनुष्ठान देवता की इच्छा पर निर्भर है कि वह कार्य करें या ना करें । लेकिन इसके विपरीत, तांत्रिक अनुष्ठान में संबंधित देवता को आदेश दिया जाता है, प्रार्थना नहीं, कि अमुक कार्य करके लाओ और देवता को बाध्य भी कर दिया जाता है कि संबंधित देवता यदि प्रेत आत्मा को नियंत्रित नहीं करता है तो उसे तलाक और गालियां सुनाकर कार्य पूरा करने के लिए मजबूर कर दिया जाता है। इस प्रकार तांत्रिक अनुष्ठान हर एक के नियंत्रण की बात नहीं। मेरे कुछ मित्र सोच रहे होंगे कि इसमें वैदिक अनुष्ठान को हीन बताया जा रहा है किन्तु मेरा मतलब किसी विधि की हीनता और उच्चता की व्याख्या करना नहीं है, बल्कि वास्तविकता से परिचित कराना है। क्योंकि प्रेतात्माएं वासनात्मक होती हैं, और जरूरी नहीं कि जो बोले वह सत्य ही बोले इसलिए उनके ऊपर आसानी से विश्वास नहीं किया जा सकता । क्योंकि यदि प्रेतात्माएं उदार पूर्ण, सरल और परोपकारी होती तो किसी का शारीरिक शोषण क्यों करती । इसलिए वास्तविकता को जानने के लिए हमारे पास, देव शक्तियों को आव्हान करने और सत्यता का पता लगाने के लिए किसी देव शक्ति के सिद्धि की भी आवश्यकता होती है।
मात्र कर्मकांड से ही काम नहीं चलता है । प्रेत आत्माओं के नियंत्रण का अनुष्ठान करते ही, उन्हें ज़रा भी छूट नहीं देनी चाहिए अन्यथा ग्रस्त शरीर को किसी भी सीमा तक हानि पहुंचा सकती है।
विज्ञान को प्रयोगात्मक रूप से प्रमाण देने पड़ते हैं। जब तक प्रमाण और प्रक्रिया नहीं, तब तक वैज्ञानिक मस्तिष्क किसी भी सत्य कही गई बात को स्वीकार नहीं करेगा। इसके ठीक विपरीत तंत्र वह विधि है, जिसमें प्रक्रिया बाद में खोजनी पड़ती है, पहले निष्कर्ष आ जाता है। और तांत्रिक पूर्णतया सत्य को समझने पर भी कोई प्रमाण नहीं दे पाएगा क्योंकि तंत्र का संबंध प्रेरणा शक्ति से संचालित होता है। इसे इस प्रकार से समझो कि जैसे किसी के पेट में दर्द है, यह उसे पता है कि उसे कष्ट है, उसके अनुभव में है, लेकिन वह आपको अपने दर्द का प्रमाण नहीं दे पाएगा। जब उसे पेट का दर्द होगा, तब वह जान पाएगा कि दर्द कैसा होता है। मेरे कहने का अर्थ यह है, कि हर तथ्य के प्रमाण नहीं दिए जा सकते, बस सिर्फ अनुभव किया जा सकता है।
तांत्रिक विधियों की सफलता के कुछ प्रयोग जो पूर्णतया वैज्ञानिक विधि से हमने किए हैं, उन पर चर्चा करते हैं
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