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शानदार स्टेज, बढिय़ा पोशाकें और लोकल टी.वी. द्वारा शहर भर में प्रसारण। जी हाँ, पब्लिक स्कूलों के एनुअल फंक्शन में घुल चुकी है इवेंट मैनेजमेंट की चकाचौंध।
न यह नए साल की पहली सुबह थी और न ही कोई त्योहार, लेकिन दो दिनों में सुमन मिश्रा ने परिचितों और रिश्तेदारों को 50-55 एसएमएस कर डाले। इन सभी की भाषा एक ही थी, ‘प्लीज वॉच लाइव परफार्र्मेंस ऑफ माई डॉटर इन जोश (द एनुअल फंक्शन ऑफ डीपीएस, आजादनगर)। ट्यून सूर्या टी.वी. टुनाइट एंड केटीवी टुमारो फॉर दिस इवेंट। इस ‘होमवर्क’ के बाद शनिवार की शाम इवेंट ग्राउंड में बैठे कई अन्य अभिभावकों की तरह उन्हें विश्वास हो गया था कि लोकल केबल टी.वी. नेटवक्र्स पर व्यापक कवरेज की बदौलत उनकी लाड़ली की प्रतिभा कानपुर के घर-घर तक पहुँच रही है!
जिस तरह एक दाना चावल उठा कर पूरी हांडी का हाल पता कर लिया जाता है, उसी तरह यह छोटी सी घटना 21वीं शताब्दी में शिक्षा के क्षेत्र में आए क्रांतिकारी परिवर्तन की झलक देती है। वह परिवर्तन, जिसमें स्कूल ‘ब्रांड’ बन चुके हैं और एनुअल फंक्शन ‘ब्रांड इवेंट’। ब्रांड मैनेजमेंट की इस कवायद में प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूलों के एनुअल फंक्शन भव्य से भव्यतम होते जा रहे हैं। इनमें शानदार बैकग्राउंड्स/सेट्स, चमकदार पोशाकों, महीनों की मेहनत से तैयार प्रस्तुतियों, कंप्यूटर/वीडियो प्रजेंटेशन्स, सेलेब्रिटी गेस्ट्स से लेकर लोकल केबल टी.वी. नेटवक्र्स पर व्यापक कवरेज की आश्वस्ति तक शामिल होती है।
यह एक ऐसा बदलाव है, जिसमें इससे प्रत्यक्ष रूप से संबंद्ध तीनों पक्षों स्कूल, अभिभावक और विद्यार्थियों की ‘पॉजिटिव इमेज बिल्डिंग’ होती है और यही वजह है कि इनमें से कोई भी कार्यक्रम की क्वालिटी से समझौता नहीं चाहता। खास बात यह कि एक तरफ तो प्रतिष्ठित पब्लिक स्कूलों के भव्यतम होते एनुअल स्कूल फंक्शन्स की गुणवत्ता कई गुणा बढ़ चुकी है, वहीं इनकी वजह से अभिभावकों की जेब पर पडऩे वाला बोझ लगभग नदारद हो चुका है।
भले ही आज भी कई छोटे और मंझोले स्कूलों में स्टूडेंट्स को फंक्शन का फंड जमा करने के लिए कूपन बुक थमा दी जाती है, लेकिन नामवर पब्लिक स्कूल तो इसके लिए खुद के फंड पर ही विश्वास करते हैं। डीपीएस हो या केडीएमए; पूर्णचन्द्र विद्यानिकेतन हो या सेठ आनंदराम जयपुरिया, इन सभी को बेझिझक उन स्कूलों की सूची में शामिल किया जा सकता है, जिन्हें किसी और की नहीं ‘स्वयं की सामथ्र्य’ पर भरोसा है। डीपीएस, आजादनगर से संबद्ध आलोक मिश्रा सहज भाव से बताते हैं, ”यह पूरा व्यय स्कूल ही उठाता है। हाँ, कास्ट्यूम्स बच्चों की होती हैं जो कार्यक्रम के बाद उनके पास ही रहती हैं।’
…और जीवन के कुछ मधुर क्षणों में संदूक से निकाली हुई स्कूल के एनुअल फंक्शन की पुरानी पोशाक तथा पीलापन ले चुकी फोटोग्राफ्स को निहारने के अवसर के साथ ही अब विद्यार्थियों के पास सी.डी. रिकार्र्डिंग के रूप में अपनी परफार्र्मेंस के लाइव विजुअल्स को कभी भी देख सकने का मौका भी है। यह साधारण सी.डी. कॉपी भी एक क्रांतिकारी परिवर्तन का दस्तावेज है, जो बॉलीवुड के लिए मिसाल बन सकती है। यह है ‘मौलिकता’। जी हाँ, यह लोकल टी.वी. पर प्रसारण की बदौलत ही हुआ है कि स्कूलों के एनुअल फंक्शन एक-दूसरे की घिसी-पिटी नकल न रह कर नए विचारों से सराबोर दिखते हैं। आखिर कौन कल्पना कर सकता था कि ‘जोश’ में प्रस्तुति दे रहे किशोर वय के छात्र-छात्राएं एक ऐसा झकझोरने वाला नाटक खेल जाएंगे, जो कानपुर में तीन बहनों की दहेज के कारण शादी न होने पाने की वजह से हुई सामूहिक आत्महत्या पर आधारित होगा? यह भी किसने सोचा था कि ‘कर्र्मांजलि’ में नन्हे-मुन्नों की प्रस्तुतियां बॉलीवुडिया अंदाज में होगी और श्रीकांत भूषण लिटिल फोल्क्स प्री-स्कूल के पहले यह भी किसके ख्याल में आया होगा कि प्लेग्रुप से निकल कर कक्षा-1 में पहुँच रहे बच्चों की यूनिवर्सिटी जैसी ग्रेजुएशन सेरेमनी की जा सकती है?
सो, चीफ गेस्ट के रूप में मौजूद ग्लैमर एंड सोशल सर्किल की सेलेब्रिटीज और उत्साह से उछलते दिलों को थाम कर बैठे अभिभावकों के सामने भव्य स्टेज पर रंगारंग प्रस्तुतियां देते बच्चों की प्रतिभाएं आज जिस बड़े पैमाने पर प्रसारित हो रही हैं, वह पहले कभी संभव नहीं था। शुद्धतावादी इस पर नाक-भौं सिकोड़ सकते हैं, लेकिन नए जमाने के यह स्कूल बदलाव की वह जमीन तैयार कर रहे हैं, जहाँ हर बच्चा कम से कम अपने शहर के स्तर पर ‘लिटिल चैम्प/इंडियन आइडल’ है। ढेर के ढेर एसएमएस यहाँ भी किए जाते हैं, फर्क है तो बस इतना कि वहाँ यह किसी को गिराने-उठाने के लिए होते हैं और यहाँ पर होती है अभिभावकों की ममता भरी लालसा ‘प्लीज वॉच लाइव परफार्र्मेंस ऑफ माई डॉटर इन…!’
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