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माँ की सीख ( मासूमीयत )

KALAM KA KAMAL
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माँ की सीख ( मासूमियत )
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नादां बातें बेटी की सुन ,
माँ ने उसे सीने से लगा कर ,
प्यार से सिर पे हाथ फेर कर,
अति नेह से गोद बिठाया .
अब ‘ वो ‘ बोले सो रोक कर,
माँ ने उसको समझाया –
सुन मेरी – बच्ची , इस जग की ;
औ जगवालों की रीती ;
न बदली है न बदलेगी ;
कह गए बड़े -बड़े ज्ञानी,
ध्यान से सुनना है समझना ,
बन के नहीं नादां है रहना .
उंच – नीच दुनियां भर की ,
समझा दीं वे बातें सारी .
सूझ-बूझ के घर से बाहर ,
और जीवन -पथ चलना होगा ,
पढ़-लिख कर इस जग में तुमको ,
अपना नाम कमाना होगा .
देर लगी न समझ गयी ,
बस हो गई ‘वो’ जरा सयानी .
झट से उठी प्यार कर माँ को,
फिर बोली कुछ यूँ मुस्का कर –
माँ ! तुमने जो ज्ञान दिया ;
याद रखूंगी जीवन भर सदा .
और कहूँ क्या बात ये सच्ची ;
माँ से बढ़कर नहीं है कोई .
बच्चों का शुभचिंतक कोई .

मीनाक्षी श्रीवास्तव .

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