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मूल से अधिक ब्याज प्यारा …..

KALAM KA KAMAL
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” मूल से अधिक ब्याज प्यारा “.

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सच है कि माँ – बाप – अपने बेटे को ..अपने बच्चे को…कलेजे के टुकड़े को… जान से ज्यादा प्यार करते हैं. उनके लालन -पालन में सर्वस्व न्यौछावर करने को तत्पर रहतें हैं . उसकी ख़ुशी में ही माता -पिता अपनी ख़ुशी मानते हैं . अपने बच्चे को दुनिया जहां की वो सारी सुख सुविधा दे देना चाहतें हैं ;

इसके लिए आजकल तो दोनों काम / नौकरी या कोई अन्य व्यवसाय इत्यादि- करने लगे हैं . अर्थात दिन-रात अपने बच्चे के लिए परिश्रम करतें हैं. अपने बच्चे को दुनिया में बहुत ऊंचाइयों में अर्थात शीर्ष – स्तर पर देखना चाहते हैं.

शायद उनके इस प्रयास में -वे जितना समय अपने बच्चे के संग – उसकी हर-दिन की -बचपन की- उन हर नन्हीं -२ शरारतों का, तोतली बोली का ,और नटखट प्यारेपन का आनंद लेना चाहिए ;नहीं ले पाते ; और शायद..यह ‘ कसक ‘ उनको कहीं न कहीं बहुत पीड़ा पहुंचाती रहती है .

” समय की रफ़्तार को कौन रोक सकता है ..?” यद्यपि बच्चे धीरे-धीरे ही बड़े होते है .परन्तु जीवन की आपा-धापी में – उन्हें समय की चाल पता ही नहीं चल पाती …और लगता है..” बच्चे कितनी जल्दी बड़े हो गये..?. “

फिर एक दिन बच्चे की .. पढ़ाई पूरी होती है . अच्छा प्लेसमेंट हो जाता है . जल्द ही रिश्ते आने शुरू हो जातें हैं . और एक दिन धूम-धाम से -उनके बेटे का ब्याह हो जाता है और ….उनका बेटा घर में ‘वधू’ ले आता है .

आजकल तो बच्चे बहुत सूझ -बूझ से चलते हैं .- ( ऐसा वे समझते हैं ) वे अपने बच्चों के बारे में जल्दबाजी नहीं.. करते नज़र आते हैं.

परन्तु माता -पिता ..तो इसी आस में रहतें हैं ;जितनी जल्दी हो उनका बेटा उनको “दादा -दादी ‘ की पदवी से सम्मानित कर दे. उनको ” प्रपौत्र ” या ” नवासा ” मिल जाए .

प्रपौत्र / नवासे अपने बच्चों से भी अधिक प्यारे लगते हैं

यह अमोलक उपहार” देता है ; उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता -.’क्या पायें क्या कर दें’ वे “ इस बच्चे “में अपने ही बच्चे को निहारतें हैं . और वो सब करना चाहतें हैं जो वो चाहकर भी अपने बच्चे के साथ नहीं कर पाए .आज वो एक-एक पल उसके संग बिताना चाहतें हैं ; उसकी उन सभी प्यारी हरकतें देखना चाहतें हैं और उसके संग खेलना चाहतें हैं .

मज़े की बात तो तब दिखाई देती है जब वे अपने ‘ प्रपौत्र ‘ के लिए- भले अपने बेटे -बहू को कुछ बोल दें

; पर कोई उनके प्यारे प्रपौत्र/ नवासे को कुछ कहे-ये उनसे बर्दाश्त नहीं होता है.

इसी को देख कर शायद हमारे बुजुर्गों ने सही कहा -” मूल से अधिक ब्याज प्यारा होता है.”




मीनाक्षी श्रीवास्तव

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