वो बरसाती शाम …….
बरसाती शाम …….
——————-
शीत – लहर की शीतल शाम
उस पर आयीं – बरखा बहार
गरज चमक के संग- घटा
हो गयी सोंधी सुवासित धरा .
.…………………………..
ज्यों पंछियों में रार छिड़ी
मानो ठिठुरन कुछ ख़ास बढी
बहुत – देर न ये जंग चली
कड़क – ठण्ड से मंद पड़ी .
……………………………….
तेज हवा के झोंकों ने फिर
दूरस्थ तरुवों को यूँ मिलाया
मानो – गले- मिल- कानों में ,
कुछ – मधुर – संवाद सुनाया .
……………………………..
बच्चे – पार्क से घर को भागे –
बूढ़े – बुज़ुर्ग तो जोर से खांसे .
किसी ने साईकिल तेज भगायी
मुनीर की ‘गोरू’ अब तक न आयी
…………………………………….
गली – नुक्कड़ के रोज, ठेले
मूंगफली और चाट – वाले
अनजानी वर्षा के मारे
वो भी कहीं दूर हो चले .
…………………………………
वर्षा कहीं पे ‘भारी’ – पड़ गयी
और कहीं सुखकारी बन गयी
प्रभु ! की लीला है ये – सारी
वही है, सबका पालनहारी !
…………………………….
हमने भी ठंड से बचने को
और ‘मौसम’ में रंगने को –
मीठी अदरख इलायची वाली
चाय की सिप धीरे से ली .
……………………………..
फिर कलम ने कागज़ का
थामा – हाथ और दौड़ पड़ी
मन ने नई उड़ान भरी थी
इक नई ‘पहचान’ बनी थी .
मीनाक्षी श्रीवास्तव
Read Comments