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वो बरसाती शाम …….

KALAM KA KAMAL
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बरसाती शाम …….

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शीत – लहर की शीतल शाम

उस पर आयीं –  बरखा बहार

गरज चमक  के  संग- घटा

हो गयी सोंधी सुवासित धरा .
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ज्यों  पंछियों  में रार  छिड़ी

मानो ठिठुरन कुछ ख़ास बढी

बहुत – देर न  ये  जंग  चली

कड़क – ठण्ड  से मंद  पड़ी .
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तेज हवा के  झोंकों ने  फिर

दूरस्थ तरुवों को यूँ  मिलाया

मानो – गले- मिल- कानों में ,

कुछ – मधुर – संवाद  सुनाया .
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बच्चे – पार्क से घर को  भागे –

बूढ़े – बुज़ुर्ग तो  जोर से खांसे .

किसी ने साईकिल तेज  भगायी

मुनीर की  ‘गोरू’  अब तक न आयी
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गली – नुक्कड़ के रोज,  ठेले

मूंगफली  और  चाट – वाले

अनजानी  वर्षा  के  मारे

वो  भी  कहीं  दूर  हो  चले    .
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वर्षा  कहीं पे ‘भारी’ – पड़  गयी

और कहीं सुखकारी  बन गयी

प्रभु ! की लीला  है ये – सारी

वही है,  सबका  पालनहारी !
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हमने भी ठंड से बचने को

और ‘मौसम’  में   रंगने को  –

मीठी अदरख इलायची वाली

चाय की  सिप  धीरे से ली .
……………………………..

फिर कलम ने कागज़ का

थामा –  हाथ  और दौड़ पड़ी

मन ने नई  उड़ान भरी  थी

इक नई  ‘पहचान’ बनी  थी .



मीनाक्षी श्रीवास्तव

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