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अपना देश अनेक धर्म जातियों और उनके विभिन्न रीति रिवाजों / त्योहारों से भरा है. अनेक सम्प्रदाय के लोग अपनी अपनी तरह से अपने धार्मिक अनुष्ठानो को और अपने त्योहारों को मनातें हैं ; यहाँ पर किसी को किसी भी प्रकार की कोई बंदिश नहीं है; अत: पूरे वर्ष भर इन सभी उत्सवों से अपने देश का नज़ारा और जगह से अलग ही दिखायी देता है ; अर्थात देश बहुत खूबसूरत लगता है .
कुछ दिन पूर्व “ईद “ का त्योहार मनाया गया फिर “स्वतंत्रता दिवस” राष्ट्रीय पर्व और अब “ रक्षाबंधन “ यह मुख्यत: “भाई बहन के पवित्र प्यार का प्रतीक पर्व” होता है . ऐतिहासिक बहुत सी कथा और गाथाएं हैं; और इस बारे में हमारी स्नेह्मयी निशा जी ने पहले से विस्तार में वर्णन कर दिया है अत: मुझको पुनराव्रत्ति करना उचित नहीं दिखता है .
वैसे वर्तमान में पहले से अधिक हर मौके पर बाज़ार सजा दिखता है ; लोगों में बहुत जोश दिखता है जिसे मैं सच्चा कम और दिखावटी अधिक समझती हूँ . पहले इतनी सजावट नहीं दिखती थी बल्कि मिट्टी की सोंधी खुशबू और फूलों के चटक रंगों जैसा प्यारा सच्चा त्योहार का रंग होता था ; जो अब गायब हो गया है ..बदलती दुनिया की चाकाचौंध से.
शायद इसी लिये अब भाई बहन के रिश्तों में भी ना उतनी मिठास रह गयी है ना पवित्रता .
आज अपने देश में बहनों की /स्त्रियों की जो दशा हो गयी है कि बेचारी कहीं भी किसी कोने उनकी इज़्ज़त आबरू सुरक्षित नही .और इसके जिम्मेदार ..शायद किसी हद तक भाई लोग ही कहे जायेंगे .;क्योंकि आज मानसिकता इतनी दूषित हो गयी है और मानो.. होती ही जा रही है. जो कहां कब थमेगी पता नहीं ?
अपने देश में …यहां की स्त्रियों /बहनों की ऐसी बुरी दशा देखकर कोई नही कह सकता कि-
“इस देश (भारत) में भाई- बहन के पवित्र रिश्तों के बंधन जैसा कोई पर्व भी मनाया जाता है .”
भले ही अपने यहाँ हर उत्सव हर पर्व का रंग हल्का होता जा रहा हो पर अन्य दूसरे देशों में इसका रंग चढ़ने जरूर लगा है .जैसे भारतीय “तीज” पर्व नेपाल में भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है , तो इसी प्रकार अपने यहाँ के कई पर्वों की झलक हम दूसरी जगह देख सकतें है.
“रक्षाबंधन” यह निराला त्योहार अपने यहां ही सम्भवत: मनाया जाता है ; जैसा कि मैंने उपरोक्त भी कहा है कि यहाँ के बहुत से पर्व अब दिनो दिन अन्य देशवासियों का आकर्षण बनते जा रहें हैं .इस लिये यह पर्व भी हो सकता है ,कहीं दूसरे देश में दिख जाये तो कोई आश्चर्य नहीं .
खैर कुछ भी हो समय की धारा को कौन रोक सकता है ? वर्तमान में हम आज नवीनतम ढ़ंग से सही पर हर त्योहार का आनंद लेने का प्रयास जरूर करते हैं . पुरानी यादों में डूब कर नये रंग से त्योहार का उत्सव मनाते हैं; ताकि हम इसे आगे बढ़ाते रहे. और यदि हमारी संस्कृति पूरी दुनिया में फैल रही है तो और भी अच्छी बात है न ? .
सदा याद रखें . कभी भी किसी भी मुशकिल में इसकी मर्यादा पर ना कोई आंच आने पाये इसका ध्यान रखें .. “रक्षा बंधन “ को निभाने की ताक़त हौसला एक बार पुन: अपने भारतीय समाज में स्थापित हो जाये .इसके लिये बस एक सफल व सार्थक प्रयास आवश्यक है; जिससे निकट भविष्य में निश्चित रूप से इसका रंग चौगुना सुंदर और चोखा होगा , ऐसा मेरा मानना है .
मीनाक्षी श्रीवास्तव
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