Menu
blogid : 23463 postid : 1256885

अधूरा बचपन

SAITUNIK
SAITUNIK
  • 52 Posts
  • 52 Comments

संयुक्त परिवार का अर्थ है घर में सभी लोग जैसे – दादा दादी ,चाचा चाची , ताऊ ताईजी बुआ और बहुत सारे छोटे बड़े बच्चों की भीड़ इस भीड़ और शोरगुल में समय कहाँ निकल जाता है पता ही नहीं चलता आपस में प्यार से तू तू मैं मैं करते हुए जीवन रंग बिरंगा बन जाता है माँ बाबूजी ताई चाची सभी आपस में मिलजुलकर काम करते हैं घर में तरह तरह के पकवान बनते हैं कहीं पापड़ बनाए जा रहे हैं तो कहीं अचार डाला जा रहा है कोई सिलाई कर रहा है तो कोई बुनाई तरह तरह के व्यंजनों से घर महकता रहता है और तीज त्यौहार के तो क्या कहने भागा दौड़ी सजना सँवरना खिलखिलाहटों से घर का चप्पा चप्पा खुशनुमा नजर आता है परंतु ये सब अब एक सपने जैसा लगता है ऐसा लगता है किसी और दुनिया की कहानी सुनाई और बताई जा रही हो आजकल ऐसे परिवार बचे ही कहाँ हैं वो दादी का प्यार चाची की डाँट ताऊ ताई का दुलार जैसे गायब ही हो गया है वो बच्चों की भीड़ सभी भाई बहनों का आपस में हँसना – खेलना उधम मचाना सब कुछ कहाँ चला गया आजकल तो अकेले कमरे में टेलीविज़न के सामने बच्चे बैठे बैठे ही अपना बचपन गुजार देते हैं कोई हल्ला गुल्ला नहीं कोई धमाचौकड़ी नहीं और न ही कोई व्यायाम कैसा जीवन जी रहे हैं आजकल के बच्चे कहाँ गए वो सब खेल पतंगबाजी कंचे स्टापू बचपन संयुक्त परिवार के बिना अधूरा है अगर बचपन एक नन्हा पौधा है तो संयुक्त परिवार उस पौधे की जड़ है एक मासूम बालक जिद करते हुए अपनी माँ से कह रहा है माँ – प्लीज दादा दादी को बुलाओ चाचा चाची के पास चलो क्यों न हम सभी इस बच्चे की पुकार को गंभीरता से लें और इसके अधूरे परिवार अधूरे बचपन को पूरा कर पुनः संयुक्त परिवार बनाएँ
लेखिका – मीता गोयल
meetagoel.in

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh