SAITUNIK
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अवध की छोरी खेले है होली
हाए उसे देख तो बलमा की नीयत है डोली
पहन चली वो तो रंग बिरंगी घाघरा और चोली
यौवन की चंचलता उसने तो हवाओं में घोली
अंगना में भागती फिरती है ये चकोरी
हँसी के फव्वारों से फिज़ा है इसने धोली
ये है अवध की छोरी जो खेले है होली
गालों के गुलाल जैसी है ये कली
आँखों के काजल जैसी है ये सुंदरी
पिचकारी की फुहार जैसी है ये ठंडी
भांग की तासीर जैसी है ये नशीली
खेले है अपने पिया संग होली
भागती फिरे है ये हिरनी जैसी
रंगीन दुपट्टे को हवा में फैलाए
नाचती है जैसे जंगल की मोरनी
ये है अवध की छोरी
जो खेले है होली
हाए उसे देख तो बलमा की नीयत है डोली
हाए उसे देख तो बलमा की नीयत है डोली
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