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गली का वह नुक्कड़

SAITUNIK
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गली के नुक्कड़ पर खड़ा वह नौजवान आँखें बड़ी बड़ी चाल मतवाली हृष्ट पुष्ट डील डौल वाला वह किसी का इंतज़ार कर रहा था सुबह की अरुणिमा और पवन की मतवाली चाल पक्षियों का कलरव और सर्दियों का गुलाबी सजाव गली के छोर पर बिकती चाय और उस पर गरमा गर्म समोसों का स्वाद इस माहौल में वह नुक्कड़ पर खड़ा था उसका चेहरा सपाट था न किसी तरह के भाव न कोई लालसा न कोई चाव समझ नहीं आ रहा था इतने घंटों से वह क्यों खड़ा था और किसका इंतज़ार कर रहा था तभी अचानक एक गाड़ी आकर रुकती है और उसमें से एक छोटी बच्ची उतरती है दौड़ लगाकर उस आदमी से लिपट जाती है वह आदमी उसे गोद में उठाकर चूमता है यह सब देख मुझे उस आदमी के बारे में जानने की उत्सुकता होती है परंतु कैसे उस के बारे में पता लगाएँ यह समझ नहीं आ रहा था वहाँ पिता और पुत्री कुछ क्षणों के बाद फिर बिछड़ जाते हैं वह आदमी गंभीर चेहरा लिए एक ओर चल पड़ता है मैं दौड़ाकर उसका पीछा करता हूँ परंतु वह नुक्कड़ की किसी गली में गायब हो जाता है इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल था मैं अपना सा मुँह लेकर चायवाले की दुकान पर वापस आ जाता हूँ और छोटू को एक कड़क चाय समोसे के साथ लाने को कहता हूँ छोटू कुछ पलों में हाजिर हो जाता है बातों बातों में मैं छोटू से उस आदमी के बारे में पूछता हूँ छोटू जिसकी उम्र केव बारह वर्ष थी एक बुजुर्ग की तरह सब कुछ बताता चला जाता है साहब वह अशोक है वह एक बहुत बड़ा व्यापारी था हर तरह की सुख सुविधा उसके पैर चूमती थीं माता पिता के देहांत के बाद सारा व्यापार उसके कंधों पर था सारा दिन काम करने के बाद उसे अपने बारे में सोचने का वक़्त ही नहीं मिलता था लेकिन कहते हैं न सभी दिन एक समान नहीं होते उसका दिल एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार की चित्रा नामक लड़की पर आ गया आप सोच रहे होंगे की चित्रा अशोक को कहाँ और कैसे मिली तो सुनिए जब अशोक ने अपने घर में एक बिज़नस पार्टी रखी तो उस पार्टी का आर्डर जिस कंपनी को दिया गया था चित्रा वहीं काम करती थी चित्रा एक ही नजर में अशोक को भा गयी और जल्द ही अशोक ने चित्रा के सामने विवाह प्रस्ताव रखा चित्रा पहले तो हड़बड़ाई परंतु अशोक की दमदार छवि के सामने कुछ न बोल पाई और इस तरह दोनों एक हो गए शादी हुई शादी के बाद दोनों एक दूसरे के प्यार में इस तरह रंग गए कि समय पंख लगाकर कहाँ उड़ गया उन्हें पता ही नहीं चला चित्रा माँ बनने वाली थी दोनों बेसब्री से आने वाले मेहमान की प्रतीक्षा कर रहे थे वह पल भी आया जब चित्रा को अस्पताल लाया गया पैसों की कमी तो उन्हें थी नहीं इसलिए अच्छे से अच्छा अस्पताल अनुभवी डॉक्टरों की देखरेख में चित्रा ने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया उस नन्ही बच्ची के नयन नख्श बिलकुल अशोक जैसे थे और रंग बाल सभी चित्रा जैसे हूर की इस परी को हर तरह का ऐशोआराम देने ये माता पिता तैयार थे बच्ची धीरे धीरे बड़ी होने लगी कुछ महीनों बाद अशोक और चित्रा को महसूस हुआ कि उनका लाड़ली जिसका नाम उन्होंने स्वरांगिनी रखा था उसका स्वर से कोई नाता ही नहीं है वह बोल नहीं सकती थी क्या इसका मतलब है वह सुन भी नहीं सकती इस दुविधा में पड़े दोनों डॉक्टर की सलाह लेने जाते हैं जाँच के बाद पता चलता है कि स्वरांगिनी बोल नहीं सकती किन्तु थोड़ा बहुत सुनने की शक्ति उसमें है अगर समय पर इलाज न हुआ तो यह शक्ति भी जा सकती है माता पिता के जैसे तो होश ही उड़ गए उन्होंने तुरंत उसे विदेश ले जाने की सोची जिससे उसका सही तरीके से इलाज हो सके विदेशों में पैसा पानी की तरह बहाया परंतु कोई भी इलाज काम नहीं आया उन्होंने वापस आने का फैसला किया धीरे धीरे स्वरांगिनी बड़ी होने लगी अशोक भी अपने व्यापार में व्यस्त हो गया चित्रा और स्वारंगीनी नौकर चाकरों की भीड़ में कहीं खो गए चित्रा का व्यवहार धीरे धीरे बदलने लगा अशोक और चित्रा में दूरियाँ बढ़ने लगीं धीरे धीरे तनाव शुरू हुआ और फिर झगड़े उफ़ चित्रा को लगता था यह सब छोड़ कर भाग जाए पर फिर स्वारंगीनी का क्या उसे कौन देखेगा यही सोचते सोचते कुछ समय और बीत गया चित्रा ने अशोक से अलग होने का फैसला लिया पहले तो अशोक को समझ नहीं आया कि क्या करे परंतु फिर सोचा इसी से उसकी जिंदगी में भी शांति वापस आएगी दोनों अलग हो गए स्वारंगीनी चित्रा के साथ थी घर की लक्ष्मी के जाते ही अशोक को व्यापार में एक के बाद एक नुकसान उठाने पड़े धीरे धीरे वह सड़क पर आ गया अब उसे अपने पत्नी और बेटी की कमी महसूस होने लगी वह रोज चित्रा को पब्लिक बूथ से फ़ोन करता कि एक बार वह स्वरांगिनी से मिलना चाहता है परंतु चित्रा तो जैसे पत्थर की हो गयी थी उसका दिल ज़रा नहीं पिघला बार बार गिड़गिड़ाने पर एक दिन चित्रा ने स्वारंगीनी से मिलाने की इजाजत दे दी अशोक गली के नुक्कड़ पर खड़ा अपनी बेटी का इंतज़ार कर रहा था घंटों के इंतज़ार के बाद उसे स्वरांगिनी मिली परंतु कुछ पलों के लिए इन पलों को दिल में सजोए अब अशोक रोज गली के नुक्कड़ पर उसका इंतज़ार करता छोटू के यह सब बताने पर मुझे अशोक पर तरस आ रहा था मैं कुछ समय वहाँ बिताने के बाद वहाँ से चला गया पंद्रह बरस बीत गए मुझे किसी काम से उसी गली से निकलना पड़ा वहाँ से गुजरते हुए मेरी नजर अशोक पर गयी वह एक कमजोर हो गया था उसी चाय की दुकान पर छोटू से भी मुलाक़ात हुई छोटू ने बताया अशोक छोटा मोटा काम कर अपने जीवन का गुजारा कर रहा है परंतु हर रोज नुक्कड़ पर खड़े होकर इंतज़ार करना नहीं छोड़ता दिसम्बर की एक सुबह कड़कड़ाती ठंड में सूरज की किरणें भी गर्मी नहीं दे पा रहीं थीं फिर भी अशोक नियत स्थान और नियत समय पर खड़ा था कि अचानक एक कर आकर रुकी और उसमें से एक नवयुवती उतरी अशोक के मुँह से निकाला – चित्रा ? परंतु उस नवयुवती ने इशारे से कुछ कहा अशोक की आँखों से आँसुओं की धारा बह निकली उसने उसे गले से लगा कर भींच लिया यह नजारा देख सभी स्तब्ध रह गए अशोक जोर जोर से कह रहा था मेरी बेटी मेरी लाड़ली स्वरांगिनी देखने वालों की आँखों में भी आँसू न ठहरे बाप बेटी का मिलन फिर उस गली के नुक्कड़ पर हुआ और देखने वाले सभी लोगों की आँखों में पिता का पुत्री के प्रति असीम प्रेम देख श्रद्धा से सिर झुक गया

लेखिका – मीता गोयल
meetagoel.in

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