SAITUNIK
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इंसान करता है जी हुजूरी जब
इंसान बनता है नतलबी तब
जब काम नहीं बनता उसका
जब दिमाग नहीं चलता उसका
तब मन की कमजोरी को छिपा
करता है वह जी हुज़ूर जी हुज़ूर
चलता नहीं जब बस उसका
अपने किए हुए कर्मों पर
तब चंचल मन उसका कहता है
जी हुज़ूर जी हुज़ूर जी हुज़ूर
घटता नहीं शर्म का स्तर उसका
बढता नहीं कर्म का जज्बा उसका
जब गर्म होता है बॉस का माथा
तब वह कहता और करता है
जी हुज़ूर जी हुज़ूर जी हुज़ूर
कवयित्री – मीता गोयल
meetagoel.in
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