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फ़ैली हुई स्याही

SAITUNIK
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पन्नों पर फ़ैली हुई स्याही
करती है इशारा हमारी ओर
जीवन के बहते लम्हों में
बिखरे हुए उन पलों की ओर
स्याही में डूबे हुए इन पन्नों को
कितना मुश्किल काम है निकालना
जीवन की कड़वी यादों को हर पल
गले से है धीरे धीरे उतारना

बचपन होता है कोरी किताब सा
जवानी तक आते भर जाते हैं कुछ सफा
जब बिगड़ने लगते हैं जीवन के हालात
तब शुरू होता है मुश्किलों का सफर
हल करते करते गंदे हो जाते हैं ये पन्ने
परेशानी की हालत में बिगड़ जाते हैं ये पन्ने
अक्सर बदहवासी में फ़ैल जाती है जिंदगी की स्याही
रूठ जाते हैं अपने सभी मित्र और साथी

ख़त्म होने पर जब आ जाते हैं ये पन्ने
तो जीवन की ढलती उम्र जैसे लगने लगते हैं
ख़ूबसूरत और साफ़ दिखने वाली ये किताब
अब जर्जर और बूढ़ी दिखने लगती है
जीवन और किताब हैं तस्वीर के दो पहलू
मुश्किलों और चुनौतियों से भरे तो दोनों ही हैं
किताबी चुनौती को तो हम पार कर सकते हैं
परंतु चुनौतियों से भरे जीवन का क्या
परेशानियों में बिखरी उस स्याही का क्या
इन बिखरे पलों को हम कैसे पिरोएँ
इस जीवन में बिखरी स्याही को हम कैसे धोएँ
इस जीवन में बिखरी स्याही को हम कैसे धोएँ …………..
कवयित्री – मीता गोयल
meetagoel.in

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