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मेरा बचपन का साथी बबूल का पेड़

Vinayd
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बबूल का पेड़
द्वार पे खड़ा है, मेरे एक बबूल का पेड
ये मेरा हमदम है और मेरा साथी भी

हर एक बात मैं इसके आगे कर सकता हूं
ये मेरे हर गम, और खुशी में शामिल है

वफ़ा है करता सदा ये जफा नहीं करता
दबाए रहता है मेरे सारे राज दामन में

दर्द हो तो ये उफ्फ भी नहीं करता है
और खुशी में झूम के खूब लहराता है

ख्याल रखता है ये आने जाने वालों का
कड़कती धूप में ये छांव उन्हें देता है

लोग कहते है कि इसमें सिर्फ कांटे है
पर ये मुझे हरदम अपना प्यार ही बांटे है

सुबह मैं मारता इसे बेहिसाब डंडों से
और ये मुझे प्यार से एक दातुन देता है

ये मेरी उम्र का भी हिसाब रखता है
मैंने बचपन इसी की छांव में गुजारा है

वैसे तो लोग इसकी कद्र नहीं करते है
पर ये मेरे लिए हीरों से भी अच्छा है
ये मेरा हमदम ….
द्वार पे खड़ा है मेरे….

विनय कुमार द्विवेदी”कान्हा”

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