Vinayd
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अंतर मन में द्वंद छिड़ा है
कठिन परीक्षा मेरी है
अकुलाता मन संकुच सा
कुछ कहने को आतुर है
कहूं अभी पल भर में सब कुछ
या शायद कहने में देरी है
अंतर मन में द्वंद छिड़ा है
कठिन परीक्षा मेरी है
व्याकुल मन से कूके पपिहा
मेघों का भी क्रंदन है
बरसेंगी स्वाति की बूंदें
या प्रभात की फेरी है
अंतर मन में द्वंद छिड़ा है
कठिन परीक्षा मेरी है
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