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नंगों की बस्ती में नंगापन, एक गुनाह!

साधना के पथ पर
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नंगों की बस्ती में नंगापन, एक गुनाह! ( चित्र गूगल इमेज साभार )

) पर उनकी बहुमूल्य टिप्पड़ी द्वारा रखा गया था. जिसके प्रेरणा से मैं एक कटु सत्य को व्यक्त करती कहानी को जन्म देने में सक्षम हो पाया हूँ और इस बात के लिए हमेशा उनका आभारी रहूँगा. साथ ही यह भी चाहूँगा कि भविष्य में ऐसे ही सवालों के माध्यम से मुझे एक कटु सत्य को व्यक्त करती हुई कहानी लिखने को प्रेरित करते रहें. उनका सवाल उन्ही सवालों में से एक है जिसको सवालों के माध्यम से ही समझा जा सकता है. आइये अपनी बात रखने से पहले उनकी टिप्पड़ी और उस टिप्पड़ी पर मेरे तत्कालीन विचार पर एक नज़र डाला जाएँ….
मान्यवर अनिल जी,
सादर !
भूख से बिलबिलाते व्यक्ति के सामने भोजन भी है, पानी भी
है, पर उन के सामने खूंखार कुत्ते खड़े हैं !
वह व्यक्ति क्या करे ?

सादर चरण स्पर्श!
कुछ सवालों का जवाब सवालों में ही दिया जाय तो बेहतर. जब कोई फोड़ा ला इलाज हो जाता है तो उसका ओपरेशन करना ही उचित होता है. परन्तु यदि यही फोड़ा बार-बार हो तो समझ लेना चाहिए कि गड़बड़ी पुरे खून में है. तो इस परिस्थिति में क्या करना चाहिए?…..आज जरुरत है Proactive Process की न कि Reactive Process की. अपनी अगले लेख में इस बात को और बेहतर तरीके से स्पष्ट करने की कोशिश करूँगा.
आपका अनुज, अलीन
बड़ों के सवालों का जवाब नहीं दिए जाते और न ही सवाल के बदले सवाल किये जाते हैं. परन्तु जो सवाल-जवाब व्यक्तिगत न होकर पुरे समुदाय के हित से जुड़े हो तो उनका सामने आना ही बेहतर होता हैं. मैं अपनी बातों को एक बस्ती की कहानी के माध्यम से स्पष्ट करना चाहूँगा. यह कहानी है मान-मर्यादा नामक बस्ती की. जो पिछले १५ सालों से मेरे मन-मस्तिष्क में सुबह की पहली किरण के साथ उभरती है. फिर शाम होते-होते सूरज की आखिरी किरणों की भाँति सिमटती चली जाती है. अब आप सोच रहें होंगे कि अनायास ही यह कहानी इसकी मस्तिष्क की उपज होगी. इस पर कहना चाहूँगा कि यह कोई अनायास ही नहीं बल्कि एक हकीकत हैं. जिसे हम स्वीकार नहीं करना चाहते क्योंकि यह हमारे स्वार्थों से जुड़ा है. हाँ तो मैं बात कर रहा था, मान-मर्यादा नामक नगरी की जोकि काल्पनिक तो है पर बिल्कुल हमारे हकीकत के दुनिया जैसी. जहाँ लोग एक-दुसरे के टांग खीचने में लगे हुए है. हरेक व्यक्ति किसी न किसी व्यक्ति और व्यवस्था से त्रस्त हैं. प्रत्येक व्यक्ति खुद को भूख से बिलबिलाता हुआ और सामने वाले को खूंखार बताता है. ऐसे में एक दुसरे का शिकार करना और उसकी आगे की थाली को अपनी तरफ खींचना ही वाजिब समझता हैं. दुसरे शब्दों में हरेक व्यक्ति राम हैं या फिर राम का भक्त. ऐसे में मुझे यह समझ में नहीं आता कि रावण कौन है और चारों तरफ हाहाकार कैसा ? जब कोई रावण ही नहीं है तो यह युद्ध कैसा. यदि रावण हैं तो इसका मतलब कि राम के खाल में रावण छुपे हैं जो खुद को राम बताकर पुरे भारतीय समाज को रावणरूपी प्रवृति का गुलाम बना रहे हैं. कहने का तात्पर्य यह हैं कि जब कोई समस्या ही नहीं है तो समाधान किस बात का. यदि समस्या हैं तो फिर हमें इस बात को स्वीकारना होगा कि समस्या की जनक हमारी विचारधारा है. मैं समझ सकता हूँ कि मेरे द्वारा हमारी भारतीय समाज के ऊपर की गयी इस टिप्पड़ी से बहुतों की तकलीफे बढ़ गयी होगी और बहुतों के हाथ-पाँव के साथ-साथ साँसे फूलने लगी होगी. तो भैया मेरी बातों से जिनकी समस्याएं बढ़ गयी होगी उनको फ्री में सलाह देना चाहूँगा कि वो किसी अच्छे मनोरोग चिकित्सक को दिखा कर अपना इलाज प्रारंभ कर दे क्योंकि आने वाले दिनों में उनकी समस्या और बढ़नेवाली है. जो हम शराफत की चादर तन पर डाले बैठे है. वह अब हटने ही वाली है और जिस हकीकत को हम पैदा किये हैं उसका सामना हमें करना ही होगा. अरे अजय भैया, जरा देखना की शराफत चाचा को क्या हुआ? मेरी बात सुनकर छट-पिटा क्यों रहें हैं. वो अन्दर ही अन्दर मुझे जरुर कोस रहे होंगे कि मुवां आज मेरी जान लेकर रहेगा. अरे भैया हम जानते है कि आप अमीर हो गए हैं. पिछले दिनों आपकी पोस्टिंग ‘अब हम अमीर हो गए हैं….’ पढ़कर ज्ञात हुआ. लेकिन इसमें चाचा जी का क्या दोष है ?जो इनको छूने से घबड़ा रहे हैं. जल्दी से उन्हें किसी अच्छे डाक्टर को दिखाओं . इनकी तो तबियत एकदम से बिगडती ही जा रही है. अभी तो उनको बहुत चीजों का सामना करना है.. ………भैया जरा संभालकर, बुजुर्ग आदमी है, कही पसली-वसली इधर-उधर खसक गयी तो बुढ़ापे में लेने के देने पड़ जायेंगे. अरे भैया आप लोग क्यों खड़े हो गए. कोई तमाशा थोड़े नहीं हो रहा है. चाचा जी तकलीफ में है और आप लोग उनको ऐसे घेरे हैं जैसे कि वो प्रसव पीड़ा में हो और आप सभी उनको उस पीड़ा से निजात दिलाने आये हो. ताकि जल्दी से जल्दी उनको उस दर्द से मुक्ति दिलाया जाय. इतना ही आप सबको उनकी तकलीफ का ख्याल हैं तो एक-दो लोग अजय भैया के साथ हास्पिटल चले जाओ और बाकि लोग स्वामी अन्जनानंद ( अंजना + आनंद = अंजना को आनंदित करने वाले अर्थात अनिल ) के प्रवचन सुनकर प्रसाद ग्रहण करने के बाद ही जायेंगे और साथ ही कुछ दक्षिणा देकर जायेंगे. लो बातों ही बातों में आप लोग स्वामी जी के मुख से उनकी प्रेमिका का नाम भी जान गए, जो अबतक वो आप सभी से छुपायें फिर रहें थे.चलिए कोई बात नहीं. स्वामी जी गुनाह थोड़े नहीं किये हैं जो आप लोगों से डरेंगे. भलें ही आप लोगों के नज़र में प्यार एक गुनाह हो पर इनके नज़र में तो इबादत हैं और इबादत ही रहेंगा. आज इसी के चलते तो आप लोग इस महान पुरुष के प्रवचन सुन रहें हैं………. अरे अजय भैया चाचाजी की धोती और पगड़ी को जरा संभालना. भले ही आज अपनी तकलीफ के कारण अपनी इज्जत का ख्याल नहीं रहा हो . परन्तु यही उनकी जिंदगी भर की कमाई हुई इज्जत हैं. भला मैं कैसे भूल सकता हूँ. इसी इज्जत की खातिर अपनी बेटी और उसके प्रेमी को इसी जमीं के अन्दर जिन्दा दफ़न कर दिए. यह अलग बात है कि खुद जिंदगी और मौत के बीच लटके हुए हैं तो इस बात की सुध-बोध जाती रही हो, . भैया जरा देखना……..भले ही इनकी जान चली जाएँ पर धोती और पगड़ी नहीं खुलनी चाहिए. नहीं तो खुद को जिन्दा पाकर शर्म से मर जायेंगे. हाँ तो महान देश के महापुरुषों हमारा प्रवचन कहा तक हुआ था. याद आया तो हम बात कर रहें थे, मान-मर्यादा नामक बस्ती की जहाँ नंगों के बीच नंगापन एक गुनाह है. मैं यहाँ कसम खाकर आया था कि कम से कम आज तो भारतीय समाज पर कोई टिप्पड़ी नहीं करूँगा. तो चलिए सीधे आप सभी का रुख नंगों की बस्ती मान-मर्यादा की ओर करते हैं. भक्तों सूरज के डूबने के साथ ही मेरे मन से यह कहानी पूरी तरह से मिट चुकी हैं. अतः बाबा नंगों की कहानी सुनाने से पहले ही आज का सत्संग यही पर ख़त्म करने की घोषणा करते हैं. फिर किसी दिन सूरज की रोशनी के आगमन के साथ इस कहानी की शुरुवात होगी. साथ ही बाबा इस बात का यकीं दिलाते हैं कि अगले सत्संग में शाम होने से पहले आपके कानों को तृप्त कर देंगे. वैसे इसमें बाबा की कोई गलती नहीं है क्योंकि बाबा तो पहले ही कह चुके थे कि सूरज डूबने के बाद उनके मस्तिष्क से कहानी ओझल हो जाएगी. सारा दोष तो शराफत चाचा का है जो सुबह से शाम और फिर शाम से रात हो गयी. जिसके साथ ही बाबा के मन की बैटरी भी डिस्चार्ज हो गयी. अभी बाबा दो-चार दिन के लिए यात्रा पर जा रहें हैं. जब तक बाबा लौट कर नहीं आ जाते तब तक आप सभी मिलकर दुआ करिए कि शराफत चाचा जल्दी से ठीक हो जाएँ और पहले से ज्यादा मजबूत भी. वरना अगले सत्संग में नंगों की कहानी सुनने के बाद उनका जाने क्या हो? वो तो खुदा ही जानता है…….और अंत में बाबा अपनी एक पुरानी कृति के माध्यम से कुछ सवाल रख रहे हैं. उस पर चिंतन-मनन करते रहिये……….तो एक बार प्रेम से बोलिए भारतीय संस्कृति की….जय! भारत के महान मान-मर्यादा वालों की ……जय! शराफत चाचा की …….अरे भाई उनकी तकलीफ देखकर गलती से मुंख से निकल गया. चाचा की जय नहीं बोलना हैं…..अब बोलिए स्वामी अन्जनानंद की ………… ! अब आप सभी बाबा को दंडवत प्रणाम करिए ताकि आपके सारे पाप कट जाएँ और आप पुनः कल से पाप करना शुरू कर दे.
उनसे पूछता हूँ जो पूछते हैं, इन्सां क्या है?
अँधेरे को जो मिटायें वो रोशनी क्या है?
आदमी तो हम सभी, क्या बताएं इन्सां क्या है?
बस इतना समझ लो रोशनी क्या है?

उनसे पूछता हूँ जो पूछते हैं, आत्मा क्या है?
चेहरा को जो दिखाए वो आइना क्या है?
जीवन तो सभी में, क्या बताएं आत्मा क्या है?
बस इतना समझ लो, आइना क्या है?
शुभ रात्रि!

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